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Anjali Jain
विनम्रता की भी एक सीमा होनी चाहिए लोग जमीन खींच लेते हैं पैरों के नीचे से!! #पाण्डव #18. 04.20
Pankaj "Parinda"
श्री सबरी भजन मंडल
करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥ ©श्री सबरी भजन मंडल 🙏🌹करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पा
श्री सबरी भजन मंडल
करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पारधि कहॅं वह मिरग चरी। कोटि गाय नित पुन्य करत नृग गिरगिट-जोन परि॥ २॥ पाण्डव जिनके आप सारथी तिन पर बिपति परी। कहत कबीर सुनो भै साधो होने होके रही॥ ३॥ ©श्री सबरी भजन मंडल 🙏🌹करम गति टारै नाहिं टरी॥ मुनि वसिष्ठ से पण्डित ज्ञानी सिधि के लगन धरि। सीता हरन मरन दसरथ को बनमें बिपति परी॥ १॥ कहॅं वह फन्द कहॉं वह पा
Divyanshu Pathak
भाव शरीर में पैदा नहीं होते। बुद्धि में पैदा नहीं होते। मन में उत्पन्न होते हैं मन की चंचलता के कारण प्रतिक्षण बदलते चले जाते हैं। एक ही तरह के भाव जब बार-बार उठते हैं अथवा लम्बी अवघि तक वर्तमान रहते हैं तब भावना का रूप ले लेते हैं। नित्य स्वाध्याय के पीछे भावनाओं को पैदा करने की अवधारणा ही है। :💕👨 भावनाओं के लिए एक अच्छी कहावत है। मन चंगा तो कठोती में गंगा। जो कुछ घटित होता है, उसमें भाव क्रिया का बड़ा योग रहता है। कुन्ती ने एक बार
Shaarang Deepak
Zoga Bhagsariya
है उल्फत , मजनू की तरह,हिंदुस्तान से , करूं मुहब्बत ,लैला मानकर ,ईमान से ।। सजदा करता हूं ,ख़ाक "ए"वतन को रोज़ मेरी जन्नत तो यही है , क्या लेना जहान से ।। राम ,सीता , लक्ष्मण ,भरत , श्रवण , सबूरी हम हुए , मूतासिर ,बजरंग बली ,हनुमान से ।। कृष्न ,कंस ,प्रहलाद ,अभिमन्यु,पांच पाण्डव , हुए मुखातिब यहां , युधिष्ठिर जैसे ,सूझवान से ।। सूरदास ,कबीर , पलटू ,मीरां , बाई सहजो , दादू दीनदयाल ,सभी पले ,यहीं के धान से ।। इस वतन रहे थे जो, फरीद , खुसरो , औलिया , ख़्वाजा चिश्ती पीर को ,सलाम दिलो - जान से , बाबा नानक ,रविदास ,गुर अर्जुन देव जी ,और गुरु गोबिंद सिंह ,जी का नाम लेता हूं ,शान से ।। नाम और भी हैं , बेहद् , लिखे ना जाते है , अब तारूफ करवाएं, किस किस ,विद्वान से ।। जोगा ,तो बस चाहता है ,सब मिलकर रहे , ना हो मस अला ,कोई ,आरती"ओ"अज़ान से ।। जोगा , बांस से बांस , लड़कर जंगल ,जले , है दुआ कभी ना लड़े , इंसान ,इंसान से, ।। ।। जोगा भागसरिया ।। ZOGA BHAGSARIYA RAJASTHANI KAFIR ZOGA GULAM है उल्फत , मजनू की तरह,हिंदुस्तान से , करूं मुहब्बत ,लैला मानकर ,ईमान से ।। सजदा करता हूं ,ख़ाक "ए"वतन को रोज़ मेरी जन्नत तो यही है , क्या
कवि प्रेमसागर
शालिनी सिंह
याज्ञसेनी के गोविंद.. जब दुशासन ले आया था खींच केश सभा में.. नारी समान पुरुष को भी अबला मैंने पाया.. विवश सबकी काया थी झुके हुए सबके शीश थे.. पाण्डव सब हार चुके थ