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Ek villain
भारतीय संस्कृत में पेड़ों का अपना महत्व यदि भारतीय संस्कृति के अनुसार गौर करें तो पता चलेगा कि पेड़ों में पूजनीय उनको ईश्वर का दर्जा देने के साथ ही आयुर्वेद में भी उनका भरपूर स्माल होता है इसलिए आज के बाद करें तो यह ज्ञात होता है कि 1970 में पहली बार पृथ्वी को बचाने की मुहिम शुरू की गई हालांकि ताज्जुब की बात यह भी है कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं वायु प्रदूषण फैला कर इन आयोजनों पर लाखों करोड़ों के खर्च किए जाते हैं फिर बाद आवरण हित में निर्णय लिया जाता है इस बात की उससे अनजानी नहीं है पहले हम सब पेड़ को काटकर पेपर बनाते हैं और फिर उसी पेपर से यह ज्ञान दिया जाता है कि वृक्षों को बचाना चाहिए आज पेड़ लगाना एक शोभा और आकर्षक का केंद्र बन चुका है यही कारण है कि जब कोई नई शुरुआत होती है तो फिर किसी देश की राष्ट्रीय अध्यक्ष आते हैं या जाते हैं तो पौधों को लगाकर भी नई मिसाल पेश करते हैं ©Ek villain #पेड़ों का महत्व हमारे जीवन में #EarthDay
vibrant.writer
शहर से गुजरते हुए.. कुछ अजीब से हालात दिखे, शहर से गुजरते हुए.. न एक दूसरे की पहचान, न एक दूसरे पर भरोसा, हर एक है पैसों की दौड़ में, हर एक पे छाया ताकत का नशा। इंसान इंसान नहीं रोबोट बन गया है, पागलों की तरह काम कर रहा है। मशीनों में रहकर मशीन हो गया है, मशीन की तरह व्यवहार कर रहा है। पास में कौन रहता है उसकी खबर नहीं, दुनिया में क्या हो रहा है उसका पता है। एक ही शहर में अपने मां बाप से दूर रहता है, सुबह शाम बस उनके लिए खाना भेज देता है। रिश्तो का मरना यहां आम सी बात है क्योंकि, रिश्तो का चलन यहां जरूरतों के साथ है। दोस्ती नहीं यहां प्रतियोगिताएं ज्यादा है, आदमी यहां हर रोज नए दुश्मन बनाता है। हर घटिया चीज का यहां व्यापार होता है, चीजों का क्या यहां तो इंसान बिकता है। त्योहारों के नाम पर राजनीति खेल होता है, चुनाव के वक्त राजनेता सब के पैर धोता है। कंक्रीट के जंगल कुदरत पर हंसते हैं, बरसाती बादल अब यहां नहीं गरजते हैं। आदमी पेड़ों का महत्व भूल गया है इसीलिए, पेड़ों ने यहां से अब अलविदा कह दिया है। कब पैसे और ताकत की दौड़ खत्म होगी, कब इंसानियत कुदरत की और मुड़ेगी। #शहर_से_गुजरते_हुए.. कुछ अजीब से हालात दिखे, शहर से गुजरते हुए.. न एक दूसरे की पहचान, न एक दूसरे पर भरोसा, हर एक है पैसों की दौड़ में,
Shailesh Aggarwal
क्यूं काटते हो हमको,क्या हमको हक नहीं है जीने का इस धरा पे,क्या आपकी जमीं है क्या आपका बिगाड़ा, क्या आपसे लिया है सोचो जरा ये मन से ,क्या आपको दिया है कड़ी धूप हो या बारिश हम आपको बचाते पंछी भी छोटे छोटे हम पर ही घर बनाते फल फूल की जरूरत हमसे ही पूरी होती हो औषधी या लकड़ी हमसे तमाम मिलती दूषित हवा का सेवन हम उम्र भर हैं करते पर आपको हमेशा शुद्ध वायु प्रदान करते सड़के बनानी हो या खदान,कारखाने आरे,मशीनें लेकर आ जाते हमे हटाने मजबूर है मगर हम बेजुबान बेसहारे चुपचाप देखते है इस शहर को तुम्हारे हम बेबसों के हक़ में कोई तो आगे आओ "शैलेश" भी ये चाहें, पर्यावरण बचाओ.... ©Shailesh Aggarwal पर्यावरण(पेड़ों का प्रश्न?)
ajit
लोग घूमने के लिए जंगल में नहीं बल्कि बगीचे में जाते है क्योंकि वहां सभी पौधे अच्छे ढ़ंग से लगे होते है इसी प्रकार जीवन में योग्यता के साथ साथ अनुशासन भी आवश्यक है । ©ajit अनुशासन का महत्व
अद्वैतवेदान्तसमीक्षा
राहें उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः | नहि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः || - सुभषितरत्नाकर भावार्थ - निरन्तर उद्यम करने से ही विभिन्न कार्य सम्पन्न (सिद्ध) होते हैं न कि मात्र मनोरथ (इच्छा) करने से | निश्चय ही एक सोये हुए सिंह के मुख में हिरण स्वयं प्रविष्ट नहीं होते हैं | (एक सिंह को भी अपनी भूख मिटाने के लिये प्रयत्न पूर्वक हिरणों का पीछा कर उनका वध करना पडता है | निष्क्रिय व्यक्तियों की की तुलना एक सोये हुए सिंह से कर इस सुभाषित में उद्यमिता के महत्व को प्रतिपादित किया गया है ।. Udyamena = by continuous and strenuous efforts, Hi= surely. Sidhyanti = are accomplished. Kaaryaani = various tasks Na = not. Manorathaih= by simply desiring. Nahi = by no means. Suptasya = sleeping. Simhasya = a loin's Pravishanti = enter, Mukhe = mouth. Mrugaah = antelopes. i.e. We can accomplish var प्रयत्न का महत्व