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gaTTubaba
New Year 2025 दिन बदल जाते हैं साल बदल जाते हैं चेहरे ही क्यों ? आइने भी बदल जाते हैं दुनिया बदलने की सोच रखनेवाले क्यों थक हारकर एक दिन ? सबको बदलते बदलते खुद ही बदल जाते हैं हंसने लगे थे सब पत्थर पर की, "ये बदलता क्यों नहीं ?" पहचान मिटाकर दौड़ में वो भी शामिल हुआ कहने लगा , "सब बदल रहे हैं चलो हम भी बदल जाते हैं....!" ©gaTTubaba #Newyear2025 दिन बदल जाते हैं साल बदल जाते हैं चेहरे ही क्यों ? आइने भी बदल जाते हैं दुनिया बदलने की सोच रखनेवाले
#Newyear2025 दिन बदल जाते हैं साल बदल जाते हैं चेहरे ही क्यों ? आइने भी बदल जाते हैं दुनिया बदलने की सोच रखनेवाले
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Unsplash वाकई में तुम बेमिसाल हो ? या फिर ये गलतफहमी हैं क्या सच में भगवान मिल गया हैं या फिर ये गलतफहमी हैं ? यकीन को यकीन पर इतना यकीन क्यों हैं या फिर ये गलतफहमी हैं कितनी खूबसूरत हैं चाहे फिर भी अगर ये गलतफहमी हैं ©gaTTubaba #lovelife वाकई में तुम बेमिसाल हो ? या फिर ये गलतफहमी हैं क्या सच में भगवान मिल गया हैं या फिर ये गलतफहमी हैं ?
#lovelife वाकई में तुम बेमिसाल हो ? या फिर ये गलतफहमी हैं क्या सच में भगवान मिल गया हैं या फिर ये गलतफहमी हैं ?
read moreGhumnam Gautam
"मैं फ़ानी हूँ, ये सच मैं जानता हूँ" मगर क्यों दुनिया फ़ानी लग रही है? सुना है पहले भी,पर तुमसे सुनकर कहानी-सी कहानी लग रही है ©Ghumnam Gautam #सच #दुनिया #क्यों #ghumnamgautam
#सच #दुनिया #क्यों #ghumnamgautam
read moreLotus Mali
"बर्फ तो पानी बन बह जाता हैं लेकिन ना जानें क्यों....? ये हिमालाय किसका दर्द अपने सीने मैं संभाले खड़ा हैं!" https://lotusshayari.blogspot.com/ ©Lotus Mali "बर्फ तो पानी बन बह जाता हैं लेकिन ना जानें क्यों....? ये हिमालाय किसका दर्द अपने सीने मैं संभाले खड़ा हैं!" https://lotusshayari.blogspot.
"बर्फ तो पानी बन बह जाता हैं लेकिन ना जानें क्यों....? ये हिमालाय किसका दर्द अपने सीने मैं संभाले खड़ा हैं!" https://lotusshayari.blogspot.
read morePraveen Jain "पल्लव"
White पल्लव की डायरी घोसले जानवरो जैसे पिंजरो जैसे फ्लैटों में मानव का अब मकान है रहता जिसमे हवा पानी का अभाव घुटन भरी शाम है ना सूरज ना चाँद का दीदार है अगर जिंदगी की गुजर बसर के लिये कुछ टुकड़े लालच के फेककर गाँवो से होता पलायन है सजे है शहर भीडो से, तरक्की के नाम से मगर हो चला गुमशुदा आदमी यहाँ अपनी पहचान से प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #alone_sad_shayri रहता जिसमे हवा पानी का अभाव है
#alone_sad_shayri रहता जिसमे हवा पानी का अभाव है
read moreShiv Narayan Saxena
White पानी की हो किल्लत जितनी, नेता को यह भाता है। पानी - पानी कर देने के, वादों पर इतराता है।। पानी स्वयं तत्व होने का अपना बोध कराता है। जिनका पानी उतर गया वह ईंधन ही हो जाता है।। ©Shiv Narayan Saxena #good_night पानी की बात. hindi poetry
#good_night पानी की बात. hindi poetry
read moreHimanshu Prajapati
नफरत क्यों करना किसी से, क्यों किसी के बारे में बुरा सोचना, जब हम सामने से गाली दे सकते हैं, उसको पटक पटक के मार सकते हैं..! ©Himanshu Prajapati #Funny नफरत क्यों करना किसी से, क्यों किसी के बारे में बुरा सोचना, जब हम सामने से गाली दे सकते हैं, उसको पटक पटक के मार सकते हैं..! #36gyan
गणेश शर्मा 'विद्यार्थी'
घुट-घुटकर यूँ तो रोज, हमी जीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। जीवन में मुश्किल रोज, नयी आती हैं। नदियाँ भी तट पर मैल, बहा लाती हैं। दिन भर दिमाग में ऊँच-नीच चलती है। दुनिया की तब हर एक बात खलती है। ऐसे ही कितने साल यहाँ बीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। अदरक-इलायची संगति कर दी जाती। जब गर्म चाय कुल्लड़ में भर दी जाती। कर देता है मदहोश चाय का प्याला। न्यौछावर इस पर कई-कई मधुशाला। यूँ ही हम छोटे - बड़े घाव सीते हैं। बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं। इससे बढ़कर फल, फूल, नहीं मेवा है। इससे बढ़कर दूसरी नहीं सेवा है। इससे बढ़कर के पुण्य नहीं दूजा है। इससे बढ़कर कुछ अन्य नहीं पूजा है। क्यों अब तक सबके चाय-पात्र रीते हैं? बस बहुत हो चुका, चलो चाय पीते हैं।। ©गणेश शर्मा 'विद्यार्थी' चलो चाय पीते हैं!!! #Tea #HindiPoem #hindipoetry #hindikavita कविताएं कविता हिंदी कविता
चलो चाय पीते हैं!!! #Tea #HindiPoem #hindipoetry #hindikavita कविताएं कविता हिंदी कविता
read moreGanesh Din Pal
White इंसान समय से पहले बूढ़ा हो जाए तो समझ लेना उसे अपनों ने और अपनी जिंदगी ने बहुत दुख दिए हैं, जब वह किसी के लिए रात दिन खटता है और फिर सुनने को मिलता है कि तुमने मेरे लिए किया ही क्या ? बस यही बातें उसे दिन-ब-दिन दीमक की तरह खाने लगती हैं। ©Ganesh Din Pal #इंसान बूढ़ा क्यों होता है
#इंसान बूढ़ा क्यों होता है
read moreनवनीत ठाकुर
क्यों ज़िंदगी में ऐसे फ़ैसले कर रखे हैं, क्यों इतने बंधन पाल रखे हैं। इतनी लानतें बर्दाश्त करते हैं हम, जो हमारी इज़्ज़त पर रोज़ हमला करती है। रोज़ जूता मारती है ज़िंदगी मुँह पर, फिर भी हम उसे ख़ामोशी से सहते जाते हैं। ©नवनीत ठाकुर #क्यों बंधन पाल रखें हैं
#क्यों बंधन पाल रखें हैं
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