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प्रतिभा Jain
निराशा के , गहन अंधेरे में , आशा की हल्की , रोशनी नजर आ गई , पास जाकर टटोला तो , आग की एक चिंगारी थी , जो मेरे हाथ को जला गई । को jla ©प्रतिभा Jain चिंगारी #
V Gurjar
शीशे में कैद है वो रोशनी , जो कभी शीशे में रुकी ही नही ? हैरत है ना ! वो कहती थी की कभी झुकी नही??? ©V Gurjar चिंगारी
Rupam Rajbhar
ख़ोप की चिनकरी से डर गई वो आजादी। 👉👈 हथकड़ी खुली ,हाथों पर मगर निशान छोड़ कर। #चिंगारी
Dosti Ibaadat E Khuda
चिंगारी जला भी सकती है केे जिला भी सकती है!! नाम मोहब्बत का चिंगारी नहीं यूँ ही कोई यारों!! कहना था बस कह दिया ~~~ निशान्त ~~~ चिंगारी
vimlesh Gautam https://youtube.com/@jindgikafasana6684
मोहब्बत का जुनून बारूद पर बैठने जैसा है विश्वास की एक चिंगारी दो दिलों में आग लगने से प्यार स्फुटित होकर ही रहता है।। ©Vimlesh Gautam # चिंगारी
Vimlesh Miledar Saroj
शर्दियों में सबसे खूबसूरत दोपहर का पहर होता है, गाँव के हर एक घर में एक छोटा सा शहर होता है। बड़ी होशियारी से सम्भल कर रहना मेरे यारों, क्योंकि, गैरों से घातक अपनों का ज़हर होता है।। -सरोज #चिंगारी
ठाकुर नीलमणि
चिंगारी ------------------------------------------------------- ये उजलि ये काली, धुआ संग लाली, लपटो से बिखरती हूई ये चिंगारी, बस्ती को जला के मचल क़्यो रही है ! कभी इस गली तो कभी उस मोहल्ले , हवा मैं तैरती हुई चल रही है, घरो से निकलकर , तो छत से फिसलकर,, चौराहे पे जा के .... सभंल क़्यो रही है! ये उजली ये काली..............................रही है! लपलपाती जिभ से कच्चे घरो को , छोटे - बडो को , दरवाजे से निकलकर तो, खिड्र्की से फिसलकर, खूद मे लपेटे निगल क़्यो रही है! जख्मि झुलसे बदन ये, चिथड्रो से कफन ये, रातो को घरो से, निकल कंधो पर बोझ , चल क़्यो रही है! करुणा का नजारा , था किसका दोस सारा, अजनबी मैं बेचारा , पूछ्ता किससे कि ये... बस्ती जल क़्यो रही है! ये उजली ये काली........................................रही है! by - Nilmani Thakur #चिंगारी