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Dr.santosh Tripathi
Anuj Gautam
गंगा नदी के किनारे एक तपस्वियों का आश्रम था । वहाँ याज्ञवल्क्य नाम के मुनि रहते थे । मुनिवर एक नदी के किनारे जल लेकर आचमन कर रहे थे कि पानी से भरी हथेली में ऊपर से एक चुहिया गिर गई । उस चुहिया को आकाश मेम बाज लिये जा रहा था । उसके पंजे से छूटकर वह नीचे गिर गई । मुनि ने उसे पीपल के पत्ते पर रखा और फिर से गंगाजल में स्नान किया । चुहिया में अभी प्राण शेष थे । उसे मुनि ने अपने प्रताप से कन्या का रुप दे दिया, और अपने आश्रम में ले आये । मुनि-पत्नी को कन्या अर्पित करते हुए मुनि ने कहा कि इसे अपनी ही लड़की की तरह पालना । उनके अपनी कोई सन्तान नहीं थी , इसलिये मुनिपत्नी ने उसका लालन-पालन बड़े प्रेम से किया । १२ वर्ष तक वह उनके आश्रम में पलती रही । जब वह विवाह योग्य अवस्था की हो गई तो पत्नी ने मुनि से कहा----"नाथ ! अपनी कन्या अब विवाह योग्य हो गई है । इसके विवाह का प्रबन्ध कीजिये ।" मुनि ने कहा----"मैं अभी आदित्य को बुलाकर इसे उसके हाथ सौंप देता हूँ । यदि इसे स्वीकार होगा तो उसके साथ विवाह कर लेगी, अन्यथा नहीं ।" मुनि ने यह त्रिलोक का प्रकाश देने वाला सूर्य पतिरुप से स्वीकार है ?" पुत्री ने उत्तर दिया----"तात ! यह तो आग जैसा गरम है, मुझे स्वीकार नहीं । इससे अच्छा कोई वर बुलाइये।" मुनि ने सूर्य से पूछा कि वह अपने से अच्छा कोई वर बतलाये। सूर्य ने कहा----"मुझ से अच्छे मेघ हैं, जो मुझे ढककर छिपा लेते हैं ।" मुनि ने मेघ को बुलाकर पूछा----"क्या यह तुझे स्वीकार है ?" कन्या ने कहा----"यह तो बहुत काला है । इससे भी अच्छे किसी वर को बुलाओ ।" मुनि ने मेघ से भी पूछा कि उससे अच्छा कौन है । मेघ ने कहा, "हम से अच्छी वायु है, जो हमें उड़ाकर दिशा-दिशाओं में ले जाती है" । मुनि ने वायु को बुलाया और कन्या से स्वीकृति पूछी । कन्या ने कहा ----"तात ! यह तो बड़ी चंचल है । इससे भी किसी अच्छे वर को बुलाओ ।" मुनि ने वायु से भी पूछा कि उस से अच्छा कौन है । वायु ने कहा, "मुझ से अच्छा पर्वत है, जो बड़ी से बड़ी आँधी में भी स्थिर रहता है ।" मुनि ने पर्वत को बुलाया तो कन्या ने कहा---"तात ! यह तो बड़ा कठोर और गंभीर है, इससे अधिक अच्छा कोई वर बुलाओ ।" मुनि ने पर्वत से कहा कि वह अपने से अच्छा कोई वर सुझाये । तब पर्वत ने कहा----"मुझ से अच्छा चूहा है, जो मुझे तोड़कर अपना बिल बना लेता है ।" मुनि ने तब चूहे को बुलाया और कन्या से कहा---- "पुत्री ! यह मूषकराज तुझे स्वीकार हो तो इससे विवाह कर ले ।" मुनिकन्या ने मूषकराज को बड़े ध्यान से देखा । उसके साथ उसे विलक्षण अपनापन अनुभव हो रहा था । प्रथम दृष्टि में ही वह उस पर मुग्ध होगई और बोली----"मुझे मूषिका बनाकर मूषकराज के हाथ सौंप दीजिये ।" मुनि ने अपने तपोबल से उसे फिर चुहिया बना दिया और चूहे के साथ उसका विवाह कर दिया । ©Anuj Gautam Apni Samajadari nos Anuj Gautam
sahib
Aafiya Jamal
sûmìt upãdhyåy(løvë flūtê)
Ankit Chaubey
Shivani saini
Gyanendra Kukku Pandey
Anamitra Mondal