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Shailendra Anand
रचना दिनांक १४,,,,,१०,,,२०२३ वार शनिवार समय ््छह बजे ्् शीर्षक ्््शीर्षक ्््््भावचित्र ्््् अंथेरी रात में रौशनी को निहारती हुए,, अपने हस्त की रेखाओ से अमावस्या का सूर्य गृहण का प्रहर और रात के मध्य काल में।। भाग्येश गोचर में साधक यजमान के भावों में स्थित योगिस्थ केन्द़ीत रेचक में साधना तपस्या खुद मंत्र शक्ति से सिद्धिदात्री दैवीय शक्तियों से युक्त नवरात्र पर्व पर कामाक्षी देवी भवानी गिरजा शंकर साकार लोक में भ़मण करते हुए जीवन का कमंयोग आंनद की लक्ष्मी कनकधारा स्तोत्र मंगलकारक रहैगा।। शनिवार सूर्य ग़ृहण सर्व पितृ पक्ष और शारदीय नवरात्र रविवासरे जगलक्ष्मि भाव में स्थित योगिस्थ होकर कूण्डलिनी जागृत कर मनोकामना पूर्ति हेतु मानस रंजन साधक साधना करे।। ्््््््् कवि शैलेंद्र आनंद १४अककटुम्बर२०२३ ©Shailendra Anand #dhoop छाया चित्र में आंखें डाल कर देख रही है भाग्य रेखा,, और कर्मयोग की अंधेरी रात और ज्ञान का प्रकाशोत्सव यजमान और गुरु साथक के बीच यथेष्ठ
Sneh Prem Chand
कितना प्यारा कितना अपना ये परिवार हर उम्र मुस्कुराती हैं यहां,सहयोग ही इनकी सोच का आधार ©Sneh Prem Chand सहयोग ही है कर्मयोग
Motivational indar jeet group
जीवन दर्शन 🌹 कर्मयोग का आनंददायक सूत्र यह है कि सदा प्रसन्न रहिए और ईश्वर को स्मरण रखिए !.i. j ©Motivational indar jeet guru #जीवन दर्शन 🌹 कर्मयोग का आनंददायक सूत्र यह है कि सदा प्रसन्न रहिए और ईश्वर को स्मरण रखिए !.i. j
Kulbhushan Arora
*गीता*...मेरे लिए हो सकता है आपमें से कोई भी, मेरी बातों से सहमत न हो। मैंने कभी भी *गीता* को उस दृष्टि से नहीं देखा है, कि *गीता* को एक सुंदर से वस्त्र में बांध कर एक साफ सुथरी जगह पर उस तरह सुस्सजित किया जाए.... शेष अनुशीर्षक में पढ़िए 🙏 *गीता*...मेरे लिए हो सकता है आपमें से कोई भी, मेरी बातों से सहमत न हो। मैंने कभी भी *गीता* को उस दृष्टि से नहीं देखा है, कि *गीता* को एक स
Unknown
मैं राह चलते जब नहीं देखता हूँ तो बहुत सी आँखें देखने लगतीं उनसे मैं तपिश सी पाने लगता हूँ आखिर ये कौन सा रसयोग है जो अदृश्य रुप से हो जाता है कहीं भी कभी भी रात और दिन ये अनाचार है कि अतिसार तुम्ही बतला दो ना जगतार अनासक्त लोग
Sarita Shreyasi
शब्दों से तुमको तौल लूँ, शब्दों से अपने मोल लूँ, कर दूँ, शब्दों से निःशब्द, मेरी पूंजी, चार शब्द। #मेरी पूंजी चार शब्द, शब्द ही अभिव्यक्ति मेरी, शब्द से ही आसक्ति, शब्द ही से हूँ सशक्त, मेरी पूंजी चार शब्द। शब्द औषधि शब्द व्याधि, शब्द शक
Deepak Kanoujia
संवाद... कृष्ण का , कृष्ण से | केशवी ! देखो न मैं आज फिर इस कलयुग में भी इस यमुना के तीर पर लगे कदम्ब के वृक्ष तले सबसे छुपकर आ गया हूं अपना महंगा वाला i-phone मोबाइल लेक
N S Yadav GoldMine
अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोका 41 तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।। अर्थ :- {Bolo Ji Radhey Radhey} हे अर्जुन, आरम्भ में ही इन्द्रियों को वश में कर, ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार के पापी विनाशक इस काम को निश्चय ही मार डालो हे अर्जुन, भरतों में से सर्वश्रेष्ठ, शुरुआत में ही इंद्रियों को नियंत्रित करने से आपको इस काम या इच्छा को मारने में मदद मिलेगी, जो पाप का अवतार और ज्ञान और आत्म-साक्षात्कार का विनाशक है।। जीवन में महत्व प्रभु उस रहस्यमय शक्ति का रहस्य बताते हैं जो मनुष्य को पाप करने के लिए मजबूर करती है, हालाँकि वह ऐसा नहीं करना चाहता। भगवान बल का विश्लेषण करते हैं, और कहते हैं कि काम और क्रोध की जुड़वां बुराइयां मनुष्य द्वारा किए गए सभी पापों के पीछे की शक्ति का निर्माण करती हैं। आवेग हमें यह विश्वास दिलाता है कि भौतिक सुख हमें सुख देंगे, और इस प्रकार यह उन्हें प्राप्त करने की इच्छा पैदा करता है। और फिर जब हम उन्हें हासिल नहीं करते हैं, तो यह क्रोध की ओर ले जाता है। पहला कारण है और दूसरा प्रभाव है। जब काम होता है, तो क्रोध होता है। इसलिए काम को मनुष्य की छह बुरी प्रवृत्तियों में से पहला कहा जाता है - काम, क्रोध, लोभा, मोह, मद और मत्स्य। काम शत्रु शक्तियों की टीम का कप्तान है जो मानव जाति को परेशान करती है, और सीधे आत्म-साक्षात्कार के रास्ते में खड़ी होती है। काम मांस की वासना नहीं है, बल्कि सभी सांसारिक सुखों का प्रतिनिधि है - अमीर होने की इच्छा, शक्ति और प्रतिष्ठा की वासना, शारीरिक आग्रह आदि। इसलिए भगवान काम, इच्छा और क्रोध के शत्रु को साहस और दृढ़ संकल्प के साथ जीतने के लिए प्रेरक वचन बोलते हैं, चाहे संघर्ष कितना भी लंबा और कठिन क्यों न हो। "जाहि सतरुम महाबाहो" के साथ समाप्त होने वाले आने वाले छंद हर तरह से दुश्मन को हराने और नष्ट करने के लिए भगवान का शानदार उपदेश है। श्री कृष्ण इच्छा को वश में करने की एक विधि प्रदान करते हैं। उन्होंने अर्जुन को पहले इंद्रियों के स्तर पर इच्छा को नियंत्रित करने की सलाह दी। इच्छाएं इंद्रियों में मौजूद पसंद और नापसंद में उत्पन्न होती हैं, और इसलिए हमें उनके पीछे जाना चाहिए। इसके लिए हमें अपनी पसंद-नापसंद के बारे में लगातार जागरूक और सतर्क रहने की आवश्यकता है, और एक बार जब हम उन्हें देखते हैं तो उनके ऊपर हावी नहीं होते हैं। उदाहरण के लिए, हम अपने मन में किसी ऐसे व्यक्ति के प्रति क्रोध का पता लगा सकते हैं जिसे हम नापसंद करते हैं। हम क्रोधित विचारों को दबाने की कोशिश कर सकते हैं, लेकिन यह संभव नहीं है। इसलिए हमें पहले उस व्यक्ति के प्रति कोई कठोर शब्द न बोलकर जीभ के स्तर पर क्रोध को नियंत्रित करना सीखना चाहिए। हमें सचेत करने और वर्तमान क्षण में लाने के लिए कई तकनीकें हैं। सबसे सरल तकनीक है कुछ सांसें लेना और केवल सांस लेने और छोड़ने पर ध्यान केंद्रित करना। यह सभी मानसिक "बकबक" को तुरंत रोक देगा। श्री कृष्ण ने यहां यह भी उल्लेख किया है कि इच्छा न केवल ज्ञान बल्कि ज्ञान को भी नष्ट कर देती है। ©N S Yadav GoldMine अध्याय 3 : कर्मयोग श्लोका 41 तस्मात्त्वमिन्द्रियाण्यादौ नियम्य भरतर्षभ। पाप्मानं प्रजहि ह्येनं ज्ञानविज्ञाननाशनम्।। अर्थ :- {Bolo Ji Radhey
AB
" ओ जिज्ञासु " :- मैंने नहीं देखि कहीं जिज्ञासा की पराकाष्ठा जो देखि मैंने तुम में,! ( अनुशीर्षक ) Avinash Sharma, अपने समय से थोड़ा सा कीमती समय निकालना और विचरण करना दुनिया के उस कोने में जहां केवल और केवल सुंदर मन और पवित्र ह्रदय वा
AB
कृष्ण मेरे ओ, मुकुंद मुरारी.. ( अनुशीर्षक ) ओ मेरे कान्हा बंसी बजैया, साँवरे ओ साँवरे तोसे प्रीत मोहे लागी होती जाऊं मैं बस बावरी -बावरी, सुंदर मुख, छैल छबीले रास रसीले माधव मोरे काल