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THE SUNSHINE BELIEVER
Arvind The Funkaar
Gaurav Sharma
बे-तकल्लुफ था उनका मिजाज जरा हटके, बेवफाओं पे शब्दों का कहर ढाते थे। जब बात खुद पर आती थी पलटकर कभी भी, तकल्लुफ की खता को अदा फ़रमाते थे।। ©Gaurav Sharma बे तकल्लुफ
uvsays
THE SUNSHINE BELIEVER
Aasif Khan
Dr Ashish Vats
Amir Sohel
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा फ़रेब दे के तिरा जिस्म जीत लूँ लेकिन मैं पेड़ काट के कश्ती नहीं बनाऊँगा गली से कोई भी गुज़रे तो चौंक उठता हूँ नए मकान में खिड़की नहीं बनाऊँगा मैं दुश्मनों से अगर जंग जीत भी जाऊँ तो उन की औरतें क़ैदी नहीं बनाऊँगा तुम्हें पता तो चले बे-ज़बान चीज़ का दुख मैं अब चराग़ की लौ ही नहीं बनाऊँगा मैं एक फ़िल्म बनाऊँगा अपने 'सरवत' पर और इस में रेल की पटरी नहीं बनाऊँगा ©Amir Sohel पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा मैं भीग जाऊँगा छतरी नहीं बनाऊँगा अगर ख़ुदा ने बनाने का इख़्तियार दिया अलम बनाऊँगा बर्छी नहीं बनाऊँगा
Yashpal singh gusain badal'
गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने । जमीर जो जाग गया था, आखिर कहाँ जाता ? तुमने बना दिया, इंसान से देवता मुझको ! आखिर इंसान ही तो था, कहाँ तक निभा पाता ? मतलब के खातिर, बनाई थी दोस्ती हमने । बे मतलब उसे लेकर किधर जाता । कितना तंगदिल बना दिया, मैँने खुद को ! रौशनी हाथ में उठाता, तो किधर जाता । टूट गये आखिर, नाम भर के थे जो रिश्ते ! फूलोँ को छोड़, आखिर काँटोँ कैसे सहलाता ? फाकाकशीँ निगल ही गई, उसे आखिर । मुफलशी का दौर था, कितना और जी पाता ? वो लौटा नहीँ "बादल", किस बात का डर था उसको । गम-ए- यार होता ,तो ! कुछ तो बता जाता । यशपाल सिँह "बादल ©Yashpal singh gusain badal' गुनाहोँ से कर लिया तौबा हमने । जमीर जो जाग गया था, आखिर कहाँ जाता । तुमने बना दिया, इंसान से देवता मुझको ! आखिर इंसान ही तो था, कहाँ तक