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Shubham Shah

फुर्सत मिले कभी तो,   आके बैठना उस खाली कुर्सी पे जो तुम उस दिन मेरी कहानी सुनते सुनते अचानक ही उस कुर्सी से उठ के चली गई थी, और उस अंधेरे कमरे में मुझे अकेला छोड़ गई थी। और सुनना उस अधूरी कहानी को जो तुम्हारे जाने के बाद से बस वहीं रुकी है। तुम्हारा जाना उस दिन बहुत खला था मुझे, इस बात की शिकायत मैने कभी तुमसे नहीं की, कोशिश किया था बहुत बार की शिकायत करू तुमसे और बताऊं कि तुमने वो बहुत ग़लत करा था उस दिन, फिर ख्याल आया अटक तो बार बार मै रहा था फिर ग़लत तुम कैसे हुई? और फिर इस सवाल का जवाब मिलने तक तुमपे इल्ज़ाम लगाने की टसक को ही टाल दिया था। वैसे उस दिन तुमने ही तो ज़िद की थी ना कहानी सुनने की और मैने कहा था तुमसे की मुझे अभी कोई कहानी सुनानी नहीं आती फिर भी तुम्हारे कहने पे मैंने कोशिश तो की थी, लेकिन जब बीच में मै अटका था तब तुम परेशान सी होकर वहां से उठ कर चली गई थी। शायद तुम्हें नहीं पता हो लेकिन उस दिन वो कहानी मै वहीं तुम्हारे सामने ही बैठ के बुन रहा था इसलिए बार बार अटक रहा था। उस कमरे में उसी खाली कुर्सी पर बैठ कर उस कहानी को पूरा करने वाले किरदार तो बहुत आयें लेकिन नजाने वो कहानी कभी पूरी हो ही नहीं पाई, शायद उस कहानी को भी तुम्हारा ही इंतज़ार हैं, की एक दिन तुम आओगी और उस कहानी का अन्त बता कर उस कहानी को पूरी करोगी। #story #kahani #hindi #love #pyar

Kaizen

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Rupesh P

बहादुर भाग 2

मुझे इंतज़ार रहता हर महीने उसके आने का, मैं अपनी पॉकेट मनी से 5 रु मिला देता, आखिर मेरे कई पेपर्स तो उसकी वजह से ही अच्छे गये थे,उसकी मुस्कान मेरे लिए टॉनिक का काम करती,सारा दिन खुशनुमा गुज़रता, उसके बाद तो वो कभी किसी चाय की दुकान,कभी सङक पर टकरा ही जाता, हाथ सहसा सर पर चला जाता उसका और वही 'शलाम शाब' वही मुस्कान , मैं चाह कर भी कभी मना न कर सका उसे हर वक्त ऐसा करने से , क्योंकि 'शलाम' और मुस्कान साथ ही कार्य करते थे और मुस्कान मैं नकारना नहीं चाहता था, धीरे धीरे बहादुर का घर आना जाना नियमित होने लगा, माँ कभी उसे बाज़ार से सब्ज़ी लाने का काम दे देती ,कभी बागवानी का,बहादुर भी खुशी खुशी करता ,पहली बार जब माँ ने उसे पैसे देने चाहे उसने मना किया, फिर माँ ने समझाया कि ये समाज सेवा का काम परिवार वालों का नहीं, उसके परिवार के बारे में पूछा तो वो शरमा गया, "जी मेम शाब,उशको भी ले आया हूँ,वैशे शशुर जी का खेती का काम भी मैं देखता हूँ" ये शायद उसका सबसे लंबा वार्तालाप था मेरी जानकारी में, नार्थ ईस्ट में कहीं महिला परिवार की मुखिया होती हैं और शादी के बाद मर्द उनके ही घर में रहते हैं ऐसा मैंने कभी पढा था, मैं अपने स्टडी रुम गया और मैप पर नार्थ ईस्ट ढूँढने लगा...
...मेरा एक जैसी चीनी शक्ल वाला भ्रम तो टूट चुका था और काफी अच्छी पहचान हो चुकी थी बहादुर से,फिर एक दिन पापा का ट्रांस्फर हो गया और हम पास के शहर में चले गये, बात आयी गयी हो गयी, मैं हर सप्ताहांत घर जाता,वो मेरा इंजीनियरिंग का आखिरी साल था, एक दिन अचानक ही, सुबह जॉगिंग करते वक्त बहादुर टकरा गया, कोने मैं उदास सा बैठा बीङी फूँकता,मैंने रुक कर पूछा तो उसने उदासी छुपाते हुए भी वही मुस्कान बिखेर दी, पता चला बीवी गुज़र गयी , और दो बच्चों की परवरिश और काम की कमी ने उसे तोङ कर रख दिया था,मैं उसे घर लेकर गया, माँ ने भी हालचाल पूछा, हमें एक आदमी की तलाश थी जो घर के रोज़ाना के काम कर सके, बहादुर के लिए ये वैसा ही था जैसे किसी सॉफ्टवेयर इंजीनियर को लोन बेचने के काम में लगा दो , पर मजबूरी इंसान से क्या नहीं करवाती,वैसे तो बहादुर का काम बाज़ार या बागवानी का ही था पर घर के बाहर बने सर्वेण्ट क्वार्टर में रहने की वज़ह से एक चौकीदार की कमी भी पूरी कर देता वो, बच्चों को गाँव भेज दिया और रोज़ी रोटी कमाने में लग गया, कॉलेज में भी चुनाव के एक हफ्ते पहले छुट्टी कर दी गई और मैं घर आ गया।छुट्टियों ठीक बाद इम्तहान थे सो मज़े करने की ज़्यादा गुंजाईश न थी,हमारे शहर में उस दिन चुनाव होना था, मम्मी पापा सुबह ही वोट देकर आ गये थे और हम लोकतांत्रिक अवकाश का आनंद ले रहे थे,टी वी पर सुबह से ही चुनाव हावी था, आखिरी के आधे घण्टे बचे थे, ठीक 4:30 PM, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, एक आदमी भरी धूप में कंबल ओढे आया था, मुझे कुछ शक हुआ पर मेरे कुछ भी समझने के पहले तीन और आदमी घर में आ धमके और कङी लगा दी,उनके हाथ में लोहे के बक्से थे, समझते देर न लगी कि ये 'बूथ केप्चरिंग' करके भागे हैं, अंदर आते ही उन्होंने मोर्चा सँभाल लिया,मम्मी और पापा को अलग अलग कमरों में बंद किया और मुझे लगा दिया चाय पानी में, टी वी में एक्ज़िट पोल आ रहे थे, उनमें से एक जो उनका लीडर लग रहा था हँसा और बोला-"ये क्या भविष्यवाणी करेंगे,भविष्य तो हमारे पास बंद है इन पेटियों में..." फिर ज़ोर के ठहाके शुरु हो गये, मैं कोई तरकीब सोच रहा था इनसे छुटकारा पाने की, पारकिंसन लॉ याद आ रहा था"work strteches according to time...something like this. " मेरा दिमाग एक्सप्रेस की तरह चल रहा था, तभी दरवाज़े पर दस्तक हुई, ठहाकों की आवाज़ बंद हो गई, उनमें से एक ने मेरी कनपटी पर बंदूक रखी और दरवाज़ा खोलने को कहा...
क्रमशः #Art #Hindi #story #kahani

Sajitha eswaramangalath

Hindi kahani #mallu story #Mylanguage #Life_experience

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Shubham Dwivedi

Prateek Praveen

उसने  मुझे  दोनों  हाथों  से  चाय  पकड़ाई। और  फिर  वो  बाकी  काम  में  व्यस्त
हो गई। दोनों  हाथों  से  देने  में  उसका  मेरे प्रति कोई  प्रगाढ़  स्नेह  नहीं  था  बल्कि  उसने  ऐसा  इसलिए  किया  था  क्यूंकि  वो  कागज़  का  कप  थोड़ा  कमजोर  था ,और  चाय  छलक  के  गिर  न  जाए  इसलिए  उसने  एहतियात  बरती  थी । लेकिन  जितनी  सहजता  के  साथ  उसने  ऐसा  किया  था  वो  आकर्षित  करने  वाला  था। पीते  पीते  मैं उसको  देख  रहा  था। उसने  बालों  को  बाँध  रखा  था ,ठीक  वैसे  ही  जैसे  लड़कियाँ  अपने  हाथों  से  बाल  बना  कर  पीछे  गांठ  सी  बनाती  हैं। पतली  सी  उसकी  काया  पर  साड़ी  ने  उसकी  उम्र  में  एक  दो  बरस  का  इजाफा  जरूर  किया  था। उसने  साड़ी  के  पल्लू  को  अपनी  कमर  पर  बाँध  रखा  था , ताकि  बाकी   काम  धाम  वो  आराम  से  कर  सके।इतने  में  कुछ  लोग  और  आ  गए। पहले  ने  चाय  ली  और  दुकान  की  साइड में  चाय  पीने  लगा। बाकी  दो  उसके पीछे  खड़े  हो  गए। उन्होंने  शायद  अपने  होने का  आभास  उसे  होने  नहीं  दिया  था। वो  चाय  वाले  स्टोव  के  ठेले  के  नीचे  के  झोले  से  एक  बिस्किट  का  डब्बा  निकाल  रही  थी ,ताकि   उसे  सामने  रख  सके। और इसी  बीच  उन  तीनों  की  नज़रें  कुछ  ऐसा  देखने  को  इच्छुक  थीं  जिससे  उनकी  वहशी  वासना  को  और  बल  मिले। इन  सबसे  वाकिफ  होने  के  बाद  भी  उसने खुद  को  ढकने  की  कोशिश  नहीं  की।  और  ऐसा  कुछ  होना  उसके  लिये  नयी  बात  नहीं  थी ।   

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Aafiya khan

Ravi Rathore films

जादुई जंगल हिंदी कहानी Jadui Jungle Hindi Kahani story Hindi kahani #Comedy

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R.J...Laik Ahmed

kahani kuch aisi bhi #kavita #story #story #Hindi #Love

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फिर एक शाम, 

जिंदगी के नाम...!

©Laik Ahmed kahani kuch aisi bhi
 #kavita #story
#story #Hindi

Akku Goswami

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