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DrUsha Kushwaha
इतनी नाराजगी, इतना रूठना ठीक नही हालाँकि मेरा तुमसे ये कहना ठीक नही ठीक नही रिश्ते अब तेरे मेरे दरमियाँ पर जमाना देखे ये तमाशा ठीक नही बिखर चुके हर एक मोती तेरे मेरे बंधन के व्यर्थ मे अब अफशोष जताना ठीक नही समझ सके न तुम हमको ये समझे हम देरी से व्यर्थ मे अब तुम पे ये आरोप लगाना ठीक नही मिले एक मौका और सब कर दु मै ठीक बस ख्याली पुलाव है इसे पकाना ठीक नही वक़्त ही जाया होना है अजय और होना कुछ नही जाने वाली जा चुकी है, अब उसे बुलाना ठीक नही ©DrUsha Kushwaha इतनी नाराजगी, इतना रूठना ठीक नही हालाँकि मेरा तुमसे ये कहना ठीक नही ठीक नही रिश्ते अब तेरे मेरे दरमियाँ पर जमाना देखे ये तमाशा ठीक नही
Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma
आज के ज़माने में इसे पॉपकॉर्न के नाम से जाना जाता है। लग बड़े चाव से खाते हैं। आज इसकी कीमत सो रूपये तक मिल जाते होंगे यां इससे कम और ज्यादा भीं हों सकते है। पर हमारे ज़माने में यह होली के त्यौहार पर जब किसी बच्चें का जामना हुआ, ढूंढ हुआ, ऐसे में अगर यह नहीं हों तो त्यौहार अधूरा सा लगता था और हैं भीं.. यह केवल इसी काम ही नहीं जब हमे कभी सर्दी हों जाती थी तो हमारी मां हमें मिटटी की खेलडी ( मिट्टी का तवा) उस पर सेक कर देती थीं हम उसकी खुशबू को सुंघते थे। जब सिकाही होती थी। और उसको ख़ूब खाते थे। कभी मक्की के तो कभी बाजरे के फुले (पोर्पकोर्न) खाते थे। उस वक्त सोचते थे की बड़े हो जाएंगे तो इसी को बेचेंगे। और आज वाकई में बिक रहे हैं। और भीं कई चीजें थी जो उस ज़माने बनाते थे और खाते थे। आज हमारे बच्चों को नए तरीके से खिलाना पड़ता है। पहले पैसे इतने नहीं थे पर अधिकांश चीज़े घर पर ही बना कर खाते थे। आज वहीं चीज़ बाजार में महंगे दाम पर लेकर खाते हैं। क्या आपने भीं कभी ऐसा किया है। ©Chandrawati Murlidhar Gaur Sharma #80, 90की मीठी यादें ( बचपन Again) आज के ज़माने में इसे पॉपकॉर्न के नाम से जाना जाता है। लग बड़े चाव से खाते हैं। आज इसकी कीमत सो रूपये तक म
Homenese kitchen