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Technocrat Sanam
वो जो तुझे हर बखत छू- छूकर गुज़रती है वज़ह यही है कि मेरी 'हवा' से नहीं बनती है तेरी जुल्फों को छेड़कर जब लटें उलझा देती है तुम्हें ख़बर भी है-'हवा' मुझे कितना जला देती है तेरे हट जाने के बाद मुझसे बड़ी-बड़ी फेंकता है ये 'आईना' किसकी इजाज़त से तुम्हें देखता है? हाँ ये तो है कि तुम्हें और खूबसूरत कर देता है.. लेकिन कमबख्त 'काजल' तुम्हारी आँखें भर देता है! हाथ आते तो बताता, किस्मत है नमक-हलालों की सुनो आजकल नज़र है तुम पर 'चांद के दलालों' की ©technocrat_sanam बखत =वक्त (time) चांद के दलाल =सितारे (stars ✨) Each 1st line is short expression and linked to the 2nd line.. 😇 खुन्नस.. वो जो तुझे ह
Divyanshu Pathak
मैं एक फ़र्द हूँ और एहसास भी जिस्म हूँ और रूह की प्यास भी तत्व की तलाश में भटकता परिंदा मैं कोई उम्मीद हूँ एक नया प्रयास भी ! मातृभाषा- हिंदी (कैप्शन)💐😊 🍀😍🍨🍹#शुभप्रभात🍹☕☕🍵🍥😊#हरेकृष्ण🌿😁😂😌🍵#हिंदी🙏🌲#पंछी🤐😥😓🌴🌳#पाठक☘😄🍁😃 :🍨🍵🍀🍹😊🌳🌿🌲🙏 हिन्दी हमारी राष्ट्र भाषा है। कितने गौरव की बात है! जैसे कि वेद हमा
Aashish Mohite
chandan
देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस किसी त्योहार के मेले में एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों, दलालों के जेब में कितना पैसा है ! , ©chandan #blindtrust देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों दलालों के जेब में कितना पैसा है !
chandan
देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस किसी त्योहार के मेले में एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों, दलालों के जेब में कितना पैसा है ! , ©chandan देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों दलालों के जेब में कितना पैसा है ! #blindtrust
chandan
देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस किसी त्योहार के मेले में एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों- दलालों के जेब में कितने पैसे हैं ! ©chandan देव नगरी भारत बहुत गरीब है ! बस किसी त्योहार के मेले में एक लड़की को नचा दो फिर देखो चोरों- दलालों के जेब में कितने पैसे हैं !
Rahul Raj
Rakesh frnds4ever
उलझन इस बात की है कि हमें .......उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की दुनिया के झमेले की या मन के अकेले की पैसों की तंगी की या जीवन कि बेढंगी की रिश्तों में कटाक्ष की या फिर किसी बकवास की दुनिया की वीरानी की या फिर किसी तनहाई की अपनी व्यर्थता की या ज़िन्दगी की विवशता की खुद के भोलेपन की या फिर लोगो की चालाकी की अपनी खुद की खुशी की या दूसरों की चिंता की खुद की संतुष्टि की या फिर दूसरों से ईर्ष्या की खुद की भलाई की या फिर दूसरों की बुराई की धरती के संरक्षण की या फिर इसके विनाश की मनुष्य की कष्टता की या धरती मां की नष्टता की मानव की मानवता की या फिर इसकी हैवानियत की बच्चो के अपहरण की या बच्चियों के अंग हरण की प्यार की या नफरत की ,,जीने की या मरने कि,,, विश्वाश की या धोखे की,, प्रयास की या मौके की बदले की या परोपकार की,,, अहसान की या उपकार की ,,,,,,ओर ना जाने किन किन सुलझनों या उलझनों या उनके समस्याओं या समाधानों या उनके बीच की स्थिति या अहसासों की हमें उलझन है,,, की हम किस बात की उलझन है..==........... rkysky frnds4ever #उलझन इस बात की है कि,,, हमें ...... उलझन किस बात की है अपनों से दूरी की या फिर किसी #मज़बूरी की खुद की नाकामी की या किसी परेशानी की #दुनि
आलोक कुमार
बस यूँ ही चलते-चलते ......... जरा सोचिए कि आजकल हमलोग खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन-कौन से गलत/अभद्र नुस्खें अपनाते जा रहे हैं. ना ही उस नुस्खें के चरित्र, प्रकरण एवं उसके कारण दूसरे मनुष्य, आसपास, समाज, देश व आगामी पीढ़ी पर असर का ख्याल रख रहें हैं, न ही ख़यालों को किसी को समझने का मौक़ा दे रहे हैं. बस अपने ही धुन में उल्टी सीढ़ी के माध्यम से अपने आप को आगे समझते हुए सचमुच में बारम्बार नीचे ही चलते जा रहे है. तो जरा एक बार फिर सोचिए कि उल्टी सीढ़ी उतरने और सीधी सीढ़ी चढ़ने में क्रमशः कितनी ऊर्जा, शक्ति और समय लगती होगी. यह भी पता चलता है कि आज की पीढ़ी की ऊर्जा और शक्ति का किस दिशा में उपयोग हो रहा है और शायद यही कारण है कि आज का "गंगु तेली" तो "राजा भोज" बन गया और "राजा भोज", "गंगु तेली" बन कर सब गुणों से सक्षम रहने के बावज़ूद नारकीय जीवन जीने को मजबूर है. यही हकीकत है हम अधिकतर भारतवासियों का...... आगे का पता नहीं क्या होगा. शायद भगवान को एक नए रूप में अवतरित होना होगा. आज की पीढ़ी की सच्चरित्र की हक़ीक़त