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Vikas Tiwari
मेघनाद - सुलोचना (अंतिम संवाद) प्रियशी दो अन्तिम बार विदा , यह सेवक ऋणी तुम्हारा है,, तुम भी जानो मैं भी जानू , यह अन्तिम मिलन हमारा है ၊ मैं मातृ चरण से दूर चला , इसका दारुण सन्ताप मुझे,, पर यदि कर्तव्य विमुख होऊँगा, जीने से लगेगा पाप मुझे, अब हार - जीत का प्रश्न नहीं, जो भी होगा अच्छा होगा ,, मर के ही सही पितु के आगे , बेटे का प्यार सच्चा होगा , भावुकता से कर्तव्य बड़ा , कर्तव्य निभेय बलिदानों से ၊ दीपक जलने की रीति नहीं, थोड़े डर के तुफानों से ,, यह निश्चय कर चला वीर , कोई उसको रोक न पाया ၊ चुपचाप देखता रहा पिता , माता का अर्न्तर भर आया ..। ၊ ❤💞❤ ©Vikas Tiwari रामायण का सबसे चर्चित अंश लक्ष्मण और मेघनाद का युद्ध , और मेघनाद व उनकी पत्नी सुलोचना का अन्तिम संवाद ၊၊ #Sunrise
ankit saraswat
जनम जनम का साथ, हम निभाऐंगे इसी वादे के साथ जिंदगी में आये थे, और बस एक साल में ही, अब वो वादा किसी और को था, और अब वो किसी और की अमानत थे।। #अंकित सारस्वत # #साथ जन्म जन्म का
✍️NOOR ✍️
जनम जनम का साथ, जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। मेरा दिल तोड़कर किसी और का खरीदा कैसे। तेरे मेरे गिर्द तो एक दायरा था कसमों का। अरे बेवफा तू ओ दायरा तोड़के निकला कैसे। जन्म जन्म का साथ था फिर तू बदला कैसे।। जन्म जन्म का साथ।।।
Amit Meghnad
मोहोब्बत से नफ़रत की आख़िरी दौर तक, मैं चला जाऊँगा दुनियां और तुम्हें छोड़कर। तुम याद तो करोगे मगर हमें भूलने की, मैं याद आऊंगा मेघनाद आख़िरी मोड़ तक। ©Amit Meghnad लेखक अमित मेघनाद ####
Amit Meghnad
तुम्हें पाना मुश्किल था मगर नामुमकिन नहीं टूट गया तेरी शर्तों के ख़ातिर भूलना मुमकिन नहीं लेखक अमित मेघनाद ©Amit Meghnad #Shayari लेखक अमित मेघनाद
Rajesh rajak
तुम भूखे रह कर,बेदना बिरह की सहकर, मेरी पायल,मेरी चूड़ी,रहे अमर, मांग में इक लंबी सिंदूर की रेखा खींचकर, ईश्वर से प्रार्थना करती हो मेरी दीर्घायु की, करती हो हमेशा मांग सिर्फ मेरे लिए, मन वचन प्राण वायु की हे प्रिय,ये मोहब्बत नहीं शक है तुम्हारा, तुझे मैंने सिर्फ एक बार में मांग लिया था खुदा से ये कह कर ,,तुझे देना ही पड़ेगा हक है हमारा। शंकित मन मत करो,जन्म जन्म का साथ है हमारा तुम्हारा। जन्म जन्म का साथ हमारा
Parasram Arora
महाभारत के बरबर युग से लेकर ब्रलिन के पतन तक न जाने कितने युद्ध हुए.... कई सभ्यताये जन्मी और नष्ट हुई कई राष्ट्र नए बने कई उजड़े रक्त रंजीत हुए.... सक्ताओ....के उलट फेर हुए शस्त्रों क़ी होड़ मे लाशों के मजमे लगे नर्क जीवंत हुए...अहं के कद बढ़ते चले गए ...नफ़रत के विषैले बीज़ पनपे और अंधी महत्वकक्षाओं क़ी दौड़ मे आदमी और आदमियत दर बदर हुए ज़मीन क़ी परतो मे सात सात तहे लाशों क़ी बिछती चली गई ...और आज हम आधुनिक युग मे पहुंच गए जहाँ आतंकित सांस्कृति ने जन्म लिया और बची खुची आदमियत भी नेस्त नाबूद होने के कगार पर पहुंच गई कदाचित भोर क़ी इस बेहद बहूदी सफेदी मे एक बिधवसक दानवी अपरिशकृत मानवता "आतंकवाद को जन्म देने मे सफल हुई है ©Parasram Arora आतंकवाद का जन्म