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Riya Tak
White .....जीवन की सबसे महंगी खुशी घर के एक प्रसन्नतापूर्ण वातावरण मे ही पनपती है! नहाए धोए हरि मिले तो मैं नहाऊ सौ बार, हरि तो मिले निर्मल हृदय से प्यारे मन का मेल उतार .....जीवन में जो बदला जा सकता है, उसे बदलना चाहिए और जो बदला नहीं जा सकता है, उसे स्वीकारना चाहिए l वहम (बहम) था कि सारा बाग अपना है:: तूफान के बाद पता चला सूखे पत्तों पर भी हक हवाओं का है ..... दुनिया को डूबाने की ताकत रखने वाला समुद्र भी तेल की एक बूंद को नहीं डूबो पाता है l "अच्छाइयाँ" हम में नहीं बल्कि हमें देखने वालों में होती हैं वरना कैसे कोई एक इंसान किसी के लिए "दोषों का भंडार" और किसी के लिए "अच्छाइयों का खज़ाना" हो सकता है। .....जीवन में हमें अपनी अच्छाइयों को सिद्ध करने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए क्योंकि यदि हमारे व्यक्तित्व में कुछ खास होगा तो समय हमारा मूल्य स्वयं बता देगा .....जीवन में रिश्तों के मायाजाल में एक रिश्ता नीम के पेड़ जैसा रखना चाहिए जो सीख भले ही कड़वी देता है परन्तु परेशानी में वो ठंडी छाव तो देता है l ©Riya Tak # जीवन के रहस्य
# जीवन के रहस्य #विचार
read morephilosopher Amar
जिस व्यक्ति के पास जीवन जीने का कोई कारण रहा हो, उसके लिए वह सब सहन करना सरल हो जाता है, जो करना ज़रूरी हो।’ #जीवन के रहस्य
Thakur Deepak Kumar
जीवन के रहस्य को जाने बगैर जीने का कोई अर्थ नहीं। जीवन के रहस्य जाने ..............#lifequotes #lifestory
जीवन के रहस्य जाने ..............#lifequotes #LifeStory
read moreअद्वैतवेदान्तसमीक्षा
ब्रह्मचारिणी शब्द दो पदों से मिलके बना है ।ब्रह्म= बड़े लक्ष्य में ।चारिणी = तन्मय ।ऐसे ही एकाग्रता का भी यही अर्थ होता है जैसे एक= अर्थात एक अपने लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान फील करना।अर्थात माँता अपने (एक)परम लक्ष्य भगवान शिव में इतनी (अग्र)तन्मय हो गई की शरीर की आवश्यक चीजों जैसे भोजन फल पानी पत्ते हवा आदि ग्रहण के लिए भी शरीर को प्रेरित करने का ख्याल नही आया परंतु लगभग सभी साइट्स पर लिखा है की ब्रह्म=तप के आचरण के कारण ब्रह्मचारिणी नाम हुआ पर महाभारत में कहा है कि मन एवं इंद्रियों की एकाग्रता ही श्रेष्ठ तप है।"मनसश्चेंद्रियाणां ह्यैकाग्रयं परमं तपः" एक= अर्थात एक अपना लक्ष्य ही को, अग्रता=माने अधिक अर्थात समस्त ब्रह्मांड से भी अधिक मूल्यवान (अपना लक्ष्य )फील करना ही परं (श्रेष्ठ)तप है। माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का रहस्य
माँ ब्रह्मचारिणी के नाम का रहस्य
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