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Ravendra
प्रेम कुमार रावत
ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲 ©cg_poet_ prem _kumar #onenight ये मया हा ना भाचा पिक्चर, कहानी मे बने लागथे जी ... 😟 सिरतोन मा मया करके देख आधा आधा रात के उठ के रोये ला पढ़थे...🥲🥲🥲
Ravendra
ज़हर
ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा एक सीन पिक्चर का तो सारे बोल जाते हैं। नयी नस्लों के ये बच्चे जमाने भर की सुनते हैं। मगर माँ बाप कुछ बोले तो बच्चे बोल जाते हैं। बहुत ऊँची दुकानों में कटाते जेब सब अपनी। मगर मज़दूर माँगेगा तो सिक्के बोल जाते हैं। अगर मखमल करे गलती तो कोई कुछ नहीँ कहता। फटी चादर की गलती हो तो सारे बोल जाते हैं। हवाओं की तबाही को सभी चुपचाप सहते हैं। च़रागों से हुई गलती तो सारे बोल जाते हैं। बनाते फिरते हैं रिश्ते जमाने भर से अक्सर। मगर जब घर में हो जरूरत तो रिश्ते भूल जाते हैं। कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। ©ज़हर ज़हर कहाँ पर बोलना है और कहाँ पर बोल जाते हैं। जहाँ खामोश रहना है वहाँ मुँह खोल जाते हैं। कटा जब शीश सैनिक का तो हम खामोश रहते हैं। कटा ए
Ravendra
Ravendra
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। मौत के जो नाम से डरते नहीं थे । वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।। बाप तक की चीख भी जिसने दबा दी । अब लगाए कान है वो धडकनों से ।। भूखी ही रोती रही माँ आज दिन भर । लौटकर आए न बेटे बंधनों से ।। बेचकर जागीर पुरुखों की सुना है । तुम न पाए क्यों निकल फिर उलझनों से ।। २२/०८/२०२३ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- अब नही आती शिकायत बर्तनों से । हो गये परिवार छोटे दर्जनों से ।। मौत के जो नाम से डरते नहीं थे । वह लगे डरने यहाँ तो गर्जनों से ।।