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SHIVAM SEN
"एक बचपन" कभी किसी वक्त में, एक बचपन हुआ करता था, तब ना कोई सब्र, ना कोई डर, और ना कहीं कोई एक, सिर्फ अपना हुआ करता था, ख़ामोश भले तब ज़रूर थे, बोल भले कुछ ना पाते थे, समझ भले कुछ ना आता था, लोग भले बच्चा समझकर, प्रेम ओर गोद का सहारा बताते थे, मगर फिक्र, डर, दस्तूर, अंदाज़, फासले, मोहब्बत, दर्द, शिकवे, दूरी, इनका ना दौर था और ना शौक, ना सोच थी और ना समझ, तब भले अक्ल से कच्चे जरूर हों, मगर मन से सच्चे तो थे, तब बस एक गोद, एक दामन, एक आँचल में सारे ज़माने का सुकून और खुशी समाहित थी हमारे खातिर, किसी ओर के लिए हम उनके थे या नहीं, पता ही नही था, बस हमारे लिए सब बेवजह अपना हुआ करता था, भले कोई भी जख्म हो, चाहे गहरा कितना, कभी नासूर नही होता था, तब एक आँसू की भी कीमत होती थी, उसका भी क़िरदार हुआ करता था, गिरना – गिर कर उठना, शरारतें करना, वहीं एक मिट्टी में अपने सपने बुनना, बेवजह चेहरे पर एक मुस्कान लेकर चलना, ना कुछ पाने की ख्वाइश, ना कुछ खोने का डर, ना कोई लत, ना कोई कमज़ोरी और उन्ही शरारतों के बीच एक हल्की सी आवाज और मुस्कान को देख कर, अपनी सारी थकान को भूलना, वो बचपन हुआ करता था साहब, और मैं आज भी यही कहता हूं, की वो जो बित गया लम्हा, वो जो लौट कर नहीं आएगा, आज अब इस जिन्दगी में, अपने पर वो, फिर ना फैलाएगा। ©SHIVAM SEN "EK PYAR EK DARD"
"EK PYAR EK DARD" #Shayari
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नही जानता, की वो प्रेम था, प्रार्थना थी, या खुदा था मेरा, मगर उसे पाने की चाहत, और उसे खोने का डर, उसके दूर जाने के बाद, आज भी, दोनों, जहन में हर पल, घर किए फिरती हैं, नही जानता, की इस मोहब्बत में कुछ बात अधूरी रही, या उसकी वफादारी खत्म हुई, या फिर मोहब्बत ही गुम हो गई किसी किनारे पे जा कर, मगर मजबूरी का सहारा लेकर, उसका यूँ छोड़ कर जाना, और इस दिल से खफा हो कर भी, उसका यूँ बेवफ़ाई कर जाना, खुद को खुद से ही अनजान, और हर पल की तकलीफ़ से पूरा कर गया हमें, नही जानता, की ये फैसला मेरे हक़ का था भी, या नहीं, नही जानता, की इस सच्ची मोहब्बत का ताज लेकर, मैं सही हो कर भी, सही था भी, या नहीं, मगर जिस रिश्ते को बड़ी खूबसूरती से तराशा, जिस को बड़ी नजदीकी से, रूह तक में बसाया, वो सब, (फैसले, हक, रिश्ते, मोहब्बत, सच, वफा, खुदा और शायद मैं भी ) इन सब को उसने अपने कदमों का गुलाम, और बस, अपने खेलने का खिलौना मात्र ही समझा, नही जानता, की ये अपमान, प्रेम का था, विश्वाश का था, खुदा का था, या रिश्तों का था, मगर उसके लिए, या तो सिर्फ जिस्म का एक धंधा था, या सिर्फ वक्त गुजारने तक का सम्बन्ध, या तो प्रेम शब्द की सही परिभाषा ही व्यर्थ थी उसके लिए, या उसका ये हुनर बड़े कमाल का था, सब कुछ करके वो गया, और सारे इल्जाम, सारे गुनाह, नाम उसके कर दिए, जो सिर्फ उसकी एक मोहब्बत के खातिर बैठा रहा, नही जानता, की ये प्रेम था, प्रार्थना थी, खुदा था, या दुआ थी या बद्दुआ थी किसी की, मगर अगर ऐसा ही प्रेम होता है आज, ऐसा ही रिश्ता होता है आज, ऐसे ही फैसले होते हैं आज, और ऐसा ही खेल होता है आज, तो खुदा से बस एक ही खवाईश बाकी है फिर, की वो सही है जो बार बार अलग अलग शख्स से मिलता गया, सिर्फ नजर के एक खेल के दम पर, और अपनी चाल और चादर हर बार बदलता गया, और गलत हैं तो फिर हम, जो सिर्फ उस एक खातिर, उसकी एक मोहब्बत के खातिर, अपने जिस्म से लेकर अपनी रूह तक, उसके लिए, उसकी सलामती के लिए, और इस प्यार को जिंदा रखने के लिए, दाँव पर लगा देते थे, ऐसी मोहब्बत का, ऐसे रिश्ते का, और ऐसे शख्स का, जीने से ज्यादा, मर जाना ही बेहतर साहब, क्यूँ की आज प्रेम का सही मायने में मतलब, सिर्फ रिश्तों और जिस्मों की सौदेबाजी के अलावा कुछ ओर नही, आज सिर्फ अपने वक्त को गुजारने और हवस को पूरा करने के एकमात्र समय को, प्रेम का नाम दे दिया, अगर यही प्रेम है तो इससे अच्छा मर जाना बेहतर है साहब, प्रेम करना नही। ©SHIVAM SEN SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"
SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari
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अच्छी थी कहानी, अच्छी थी कहानी, पर अधूरी रह गई, कुछ पता ही ना चला, कब तबाह, और कब बरक़रार रह गई, हुस्न से परे, सिर्फ निगाहों के पन्नों पर लिपट कर, जिस्म से दूर, बस रूह की गहराइयों में उतर कर, ऐसी थी एक मोहब्बत, जो वफ़ा की तरह मजबूर, और बेवफ़ा की तरह मशहूर होकर भी, अधूरी रह गई, अगर इश्क़ में मिल जाना ही सबकुछ होता, तो लहू और इश्क़ के निशान एक ना होते, अगर हर मोहब्बत दो तरफा होती, तो उम्मीदों के हौसलों की दीवारों में दरारें ना होती, अगर वक्त पर हद्द में मोहब्बत होती, तो हाल ए जिन्दगी पर अफ़सोस ना होता, अगर काया रूपी सौन्दर्य से ऊपर उठकर मोहब्बत होती, तो इश्क़ की चादर बार बार बदलने की आदत ना होती, किसी की दर्द भरी यादों का बोझ उठाने की, हर रास्ते, हर जगह, बस किसी एक का इंतजार करने की, अपने आप को जिन्दा जला जला कर, नफ़रत की आग की चिंगारी जलाने की, किसी को बद्दुआ देने की, या किसी को तकदीर कौसने की, किसी को किसी के खातिर रोने की– तड़पने की, तो किसी को, किसी को खोने से डरने की, किसी को अपने आप को मिटा देने की, तो किसी को, किसी की मोहब्बत में बर्बाद होने की, किसी को मोहब्बत ए इश्क़ में मजबूर होने की, तो किसी को किस्सा ए मोहब्बत में, अपने वजूद, अपने ख़्वाब, अपनी वफ़ा, और अपने इश्क़ के जख्मों के दर्द की, कुर्बानी देने की, ज़रूरत ना होती, और साहब ये शख्स, ये मोहब्बत, ये दुनिया, ये लोग, और ये कहानी, आज अधूरी ना होती, आज अधूरी ना होती। ©SHIVAM SEN SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"
SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari
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SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" छोड़ दिया उसने मुझको, छोड़ दिया भीगोकर, एक कागज़ की तरह, ना कलम से उतरने के काबिल छोड़ा और ना खुद को लिखने के, ना जलने के काबिल छोड़ा और ना एक धुएँ की तरह हवा में उड़ने के, ना जीने के काबिल छोड़ा और ना मिट्टी और खाक में मिलने के, ना इस सफ़र में मुकम्मल होने दिया और ना रेत सी बिखरी पड़ी इस जिन्दगी में कुछ रंग भरने दिया, मगर क्या खूब इन्तकाम लिया है मिलकर, इश्क़ का हिसाब भी किया, तो भी कागज़ पर, और हमें बस एक जिन्दा लाश का लिबास दे दिया, उस खुदा ने, वो भी उन अपनों और गैरों के हिसाब से, मगर हमें अब ना ये अंदाज़ समझ आता है और ना ये अल्फाज़, ना करिश्मा समझ आता है और ना ही ये हकीकत, ना रास्ते अपने नज़र आते हैं, और ना ही ये दौर, ना ही कोई इन्तजार समझ आता है और ना ही कोई तड़प, मगर एक एहसास तो आज भी है मुझे फिलहाल, की मेरे क़िरदार की ज़रूरत नहीं इस जमाने में, पर ना जाने क्यूँ लगता है कई बार की, ये मोहब्बत, दर्द, सज़ा, जुदाई, आँसु, तड़प, दूरी, इस प्रेम रूपी जाल ने तो खुदा के नसीब की लकीरों को भी विलग कर दिया था, उसको भी रूला रूला कर अधूरा कर दिया था, तो साहब, हम तो फिर भी इन्सान हैं, जब उस खुदा की जिन्दगी में कमी रह गई, तो इन हवा के झोकों से हमारे कारवाँ का यूँ उजड़ना तो यकीनन पर्याप्त नहीं था, मगर मेरे लिए तेरा और इस प्रेम का हिफाज़त में होना ही पर्याप्त है, नही तो वक्त आने पर तो रूह भी रुख मोड़ लेती है, तेरा नाजायज़ होना तो मुनासिब है। ©SHIVAM SEN SSSHIV - "EK PYAR EK DARD"
SSSHIV - "EK PYAR EK DARD" #Shayari
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