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ब्रजमोहन पांडेय
चमन मे जब भी आती हो, बहारें लौट आती है, समन्दर तट पै आती हो, तो लहरें छू के जाती है, हवाओं मे यूँ लहराके तुम, दुपट्टे को न सरकाओ, हमे लगता है शायद तुम, इशारे से बुलाती हो। ©ब्रजमोहन पांडेय #parent
sanjay kumar mishra
शक तो पूरी दुनिया करती है.. तलाश तो उसकी है , जो मिले फिर तलाश ही खत्म कर दें ©sanjay kumar mishra #parent
Dolly
मनुष्य का जीवन भी कुछ इन पत्तियों के समान है कठिनाइयों से घिरे रहते पल पल इनके प्राण हैं पतझड़ में गिर जाते हैं बहार में खिल जाते हैं ©Dolly #parent
Rajesh Kumar
जो ख़त समझे थे.... ************************** जो ख़त समझे थे मोहब्बत का, वो पन्ना ही कोरा कागज़ था। जिस पर ना कोई इश्क़ लिखा, जिस पे ना पैगामे मोहब्बत था। बस दो बूँद निशां थे आँसू के, और आईना नूरानी चेहरा था। छूकर हम अपनी साँसों को, पढ़ लेंते हैं दर्द-ए-बयां तेरा। लिखा है ये इबारत होठों का, एक एक हुस्ने अल्फाज तेरा। ऐ हवा! फिजाँ से कह देना। रंगत, गुलशन से कह देना। जिसे ख़त में छुपाया है तुमनें। वो पढ़ने का पुराना आदत था। काश! कभी तुम सामने होते, पढ़ लेते सर से पाँव तलक। वो झील सी गहरी आँखें हैं। जिसमें बस प्यार की बातें हैं। वो जुल्फ़ें,झुमके,वो नशा तेरा, गेसुओं में दहकती रातें हैं। बस खुश्बू दिखती है दिल को, लगता है कोई शुरुआत लिखा। ये रूहे इबादत खुदा का है, जिस पे मुकम्मल आगाज़ लिखा। जो ख़त समझे.... **************************** ~~~राजेश कुमार गोरखपुर(उत्तर प्रदेश) दिनांक:-03/04/2023 ©Rajesh Kumar #parent