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Satish Kumar Meena

जिनके घर शीशे के

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जिनके घर शीशे के होते हैं जिनके घर शीशे के होते हैं उनके दिल 

भी शीशे के ही होते हैं जो छोटे से कंकर 

की आवाज से ही चटक जाया करते हैं।

©Satish Kumar Meena जिनके घर शीशे के

Mahesh Patel

सहेली... गजल... लाला....

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White सहेली......
आंखें उसकी सजल है..
बातें उनकी सरल है..
घूंघट में मिला हुआ चेहरा कमल है..
कैसे कहूं यारों..
वह गीत है वह मित भी है..
यह दर्द में डूबी हुई.. 
फिर कोई हमारी गजल है..
लाला..…..

©Mahesh Patel सहेली... गजल... लाला....

poet-Akash kumar

#गजल 7:30

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Mohan Sardarshahari

# गजल

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Unsplash दोस्तों से मुश्किल है हकीकत छुपाना 
जैसे हवा से अलग रवानी को रखना। 

जिंदगी के अनुभव बेशक अलग-अलग होंगे 
मुश्किल नहीं मगर एक दूजे की कहानी समझना। 

इशारों में समझाना बहुत कर लिया 
चलो दोस्तों से करते हैं वही व्यवहार बचकाना। 

यदि कभी कुछ सुनाना पड़े दोस्तों को 
बस याद उनकी एक-एक शैतानी दिलाना। 

मिलकर यदि किसी दोस्त से छलक जाए आंसू 
शाम को उड़ा देना उनको तेरे नाम के पैमाना। 

देखी होंगी दशकों में कई नायाब इमारतें तूने 
होना हो रूबरू जवानी से, बार-२ तेरे कॉलेज जरूर जाना।।

©Mohan Sardarshahari # गजल

Sayah~

#kahaaniyan #गजल #gazal Shayari Poetry

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Narender Kumar

जलते घर को देखने वालो।

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M.K Meet

#घर

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मिटा सको तो मिटा दो मेरी हस्ती
निकाल फेंको मुझे अपने घर से बाहर
मगर कैसे जी सकोगे अपने दिल के बिना 
 यार उसी घर में तो ,मै अपना घर बनाया हूं!!!


















.

©M.K Meet #घर

Ashok Verma "Hamdard"

गजल

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White गजल

सहर के आँचल में चाँद सोया, फिज़ा में नर्मी नई नई है,
घरों में जलती हैं आरतियाँ, दुआ में गर्मी नई नई है।

सफर में साथी बने हैं तारे, ख़ुशी के क़िस्से कहें न थमते,
जो चाँदनी है ये चुपके चुपके, अभी वो राहत नई नई है।

लगे हैं बगिया में फूल महके, सुना है जुगनू मिले उजाले,
जो रुत है बदली हवाओं से, अभी तो रंगत नई नई है।

नज़र से छलका जो इश्क़ गहरा, वो बात लफ़्ज़ों से फिर न निकली,
जो हाल दिल का बयाँ हुआ है, अभी तो हालत नई नई है।

हुनर को पहचाना दुनिया ने, जमीं पे क़दमों का जादू छाया,
अभी जो रुतबा मिला है तुमको, ये सारी शोहरत नई नई है।

जहाँ में उठती हैं आज आँधियाँ, जलें हैं दीपक बने सहारे,
अभी जो सूरज चमक रहा है, उसकी ये हिम्मत नई नई है।

©Ashok Verma "Hamdard" गजल

dr.rohit sarswati

#घर लौट चलूँ

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White         ( घर लौट चलूँ  )
मन करता है
छोड़ शहर की
चका चौंद को
घर अपने में
लौट चलूँ  !
मन करता है
तोड़ नौकरी की जंजीरें
इस शहर को तनहा छोड़ चलूँ ।
छोड़ चलूँ इस चँचल मन को
इस शहर की भीड़ में रोता बिल्कता !
पीछे मुड़के ना देखूँ  में
चला जाउँ बस आगे बढ़ता ।
झुटी दिखावटी इस दुनिया से
अब में नाता तोड़ चलूँ !
घर अपने मे लौट चलूँ
घर अपने में लौट चलूँ ।

©dr.rohit sarswati #घर लौट चलूँ

Tara Chandra

#Home #घर

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मात्र ईंट पत्थर आदि पदार्थ 
ही घर की बुनियाद नहीं होते, 
...
...
माता–पिता, दादा–दादी आदि के 
अनगिनत सपने, 
मेहनत तथा प्यार 
भी बुनियाद का हिस्सा होते हैं।।

©Tara Chandra #Home
#घर
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