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M.k.kanaujiya
कई अर्से बीत गए खामोश हूं मैं, वरना आशिकों का बादशाह हुआ करते थे हम, ©M.K. kanaujiya #मेरा डाकिया होना आज भी याद है मुझे
KhaultiSyahi
s.s.lather hr31 wala
Ashutosh Mishra
खत लिखना हम भूल गए, आया जब से फोन। चाचा चाची,नाना नानी सब हुए धूल के फूल। इंटरनेट डेस्क पर घंटों होते चैट। घंटों होती चैट, मन नहीं भरा। वीडियो काॅल की अब आई फरमाइश। कुछ दिन तो गुपचुप गुपचुप बातें,, प्रेम रस से भरे हुए और कभी तू तू मैं मैं, के भी प्रसंग छिडे। अल्फ़ाज़ मेरे ✍️🙏🏻🙏🏻 ©Ashutosh Mishra घंटों का काम हुआ सेकंडो में,डाकिया डाकघर का भी,,,इंतजार खत्म हुआ। खाने खिलाने घूमने घुमाने का पैसा भी बच लगा।पर हाय रे,, कमबख्त नेट सारे पै
Deep Ved
Sircastic Saurabh
मुबहम से हो चुके है सारे नज़ारे, कोहसार,आबशार,शादाब सा कुछ नजर नहीं आता, ये क्या कर दिया मेरी कुशिन्द - ए - आलम तूने, अहबाबों को भी नहीं रहने दिया करीब मेरे, और अब नामा-बर भी मेरे घर नहीं आता!! ©Sircastic Saurabh #मुबहम - धुंधला, कोहसार - पहाड़, #आबशार - झरना, शादाब - हरा भरा, # कुशिन्द -ए -आलम - दुनिया के कातिल, # नामा- बर - डाकिया #किसी और को अप
Shubham Saxena
सुनो एक बात मैं सबको यहां अब बोलने आया, दबा था राज़ जो दिल में उसे मैं खोलने आया। बँधे थे बाल उसके तब तलक खामोश बैठा था, खुली जुल्फें तो दिल का हाल उसको बोलने आया । निहारा शाम तक रस्ता, पलक झपकी न इक पल को, बड़ी लंबी सी चिठ्ठी ले के घर फिर डाकिया आया । न साकी था, न मधुशाला के दरवाजे पे कोई था, शराबी था नशे में चूर उसको क्या नज़र आया ! बड़ा सहमा था सूखे खेत को बेज़ार करके मैं, मगर इक अब्र को देखा तो मुझको हौसला आया । मुझे मालूम हुआ ऐसा कि घर पर माँ अकेली है, तो दुनिया छोड़ कर सारी मैं अपने घर चला आया । ©Shubham Saxena सुनो एक बात मैं सबको यहां अब बोलने आया, दबा था राज़ जो दिल में उसे मैं खोलने आया। बँधे थे बाल उसके तब तलक खामोश बैठा था, खुली जुल्फें तो दि