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Suresh Kumar Chaturvedi
बंद कर बत्ती दिमागी, जो कर रही पर्यावरण क्षरण हरी भरी धरती का चीर क्यों, नित्य करता है हरण बंद कर बत्ती अभागी, नित नए अंधे विकास की बंद कर बत्ती ये वागी, अंधी दौड़ और रफ़्तार की कितना खोदेगा धरा को, कितना तोड़ेगा पहाड़ कितना गला घोंटेगा नदी का, क्यों रहा कचरे को गाड़ कितना विनाश करेगा,हरे भरे जंगलों नीले समंदरो का जलीय और जंगली जीवों का कितना घोलेगा हबाओं में जहर, क्यों बरपा रहा है पर्यावरण पर कहर क्यों मिटा रहा है जैव विविधता संभलकर कर चल,बदल अपना रास्ता बंद कर अनंत इच्छाओं की बत्तियां दुस्वार न कर अपनी ही जिंदगियां चल पर्यावरण के संग संग, क्यों पी रखी है नासमझी की भंग खबरदार एक दिन,धरा पर मिट जाएगा जीवन न हबा न पानी और न भोजन केबल मौत,मरण और मरण सुरेश कुमार चतुर्वेदी ©Suresh Kumar Chaturvedi #अर्थ आवर डे
pooja d
सांग सख्या, कसा घालू आवर मी मनाला भरलेली घागर समोर असताना ।। कित्येक वर्षांनी जीवनी माझ्या प्रेमाचा वर्षाव झाला, आता शक्य नाही घालणं आवर मनाला ।। रणरणत्या उन्हात सावली सारखा तू लाभलास तहानलेल्या जीवाला तृप्त तू केलास ।। होऊ दे राजा, बेभान तुझ्या प्रेमात मला नको आवर घालायला लावू तू मनाला ।। #सांग #सख्या #कसा #आवर #प्रेम #yqtaai #मराठीप्रेम
Avinash Sharma Agarwal
आवर लड़का कौन है टिक टैक पर फेमस है
आवर लड़का कौन है टिक टैक पर फेमस है
read morePooja Nishad
कुछ यूं भी जलती हैं चराग़ों से बिजलियां कि चमकती शोख़ अदा तो है मगर इनमें किसी का भला नहीं है अदब से कोई वाबस्तगी नहीं इनकी क़द-आवर किरदार भी नहीं इनका बस कोलाहल करती हैं अपने वजूद का फिर जहां भी गिरती हैं ग़र्क ही करती हैं क़यामत-ज़ा ये बिजलियां ।— % & • वाब्सतगी ( त'ल्लुक़ ) • क़द-आवर( ऊंचा ) • कोलाहल ( उपद्रव ) • क़यामत-ज़ा ( आफत बरपाने वाली )
• वाब्सतगी ( त'ल्लुक़ ) • क़द-आवर( ऊंचा ) • कोलाहल ( उपद्रव ) • क़यामत-ज़ा ( आफत बरपाने वाली )
read moreomni motivationalTv
गॉडली स्टाइल जिंदगी (टू चेंज आवर लाइफ) मोटिवेशनल लाइफ चेंजिंग स्पीच.. #pyaarimaa #विचार
read moreतुषार"आदित्य"
इट इज़ आवर ड्यूटी टू प्रोटेक्ट "HINDI" इट इज़ आवर ड्यूटी टू प्रोटेक्ट "HINDI" #hindi #हिंदी #मातृभाषा #yqbaba #yq didi
पूजा निषाद
कुछ यूं भी जलती हैं चराग़ों से बिजलियां कि चमकती शोख़ अदा तो है मगर इनमें किसी का भला नहीं है अदब से कोई वाबस्तगी नहीं इनकी क़द-आवर किरदार भी नहीं इनका बस कोलाहल करती हैं अपने वजूद का फिर जहां भी गिरती हैं ग़र्क ही करती हैं क़यामत-ज़ा ये बिजलियां ।— % & • वाब्सतगी ( त'ल्लुक़ ) • क़द-आवर( ऊंचा ) • कोलाहल ( उपद्रव ) • क़यामत-ज़ा ( आफत बरपाने वाली )
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