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Awanish Singh
दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। पार जाऊँगा मेरा साहस, कभी हारा नहीं है। जो मिटा अस्तित्व दे, ऐसी कोई धारा नहीं है ।। कौन रोकेगा स्वयं तूफान, थककर रुक गये हैं । हर लहर मेरा किनारा, ध्येय तक बढ़ता रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। तोड़ दी अवरोध की सारी, शिलाएँ एक क्षण में । मैं धरा का प्यार मुझको, स्नेह देते सब डगर में।। शीत वर्षा और आतप कर, न पाये क्षीण गति को। बिजलियों की कौंध में भी, पंथ गढ़ता ही रहूँगा।। दीप हूँ जलता रहूँगा । मैं प्रलय की आँधियों से, अंत तक लड़ता रहूँगा ।। ©Awanish Singh (AK Sir) #कविता #कविता
R K Mishra " सूर्य "
विवशता मनुष्य को तड़पाती बहुत है मृग मरीचिका के मानिंद दौड़ाती बहुत है आत्मिक घाव दिखाया नहीं जा सकता अश्कों के सागर में गोते लगवाती बहुत है विवशता मनुष्य को....... स्थूल शरीर को मरहम लगाया जाता है सूक्ष्म शरीर व्यक्ति को भटकाती बहुत है जीवन के रंगमंच का खेल भी अजीब है ये खट्टा मीठा स्वाद भी चखाती बहुत है विवशता मनुष्य को....... सार गर्भित रहस्य तो मकड़ी का जाल है और अनसुलझी पहेलियां डराती बहुत है वक्त का झोंका थपकियां देकर चला जाता "सूर्य" चाहत की चकाचौध जलाती बहुत है विवशता मनुष्य को....... ©R K Mishra " सूर्य " #विवशता Mili Saha Utkrisht Kalakaari Sethi Ji भारत सोनी _इलेक्ट्रिशियन shashi kala mahto