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Ramnik
आज हमनें डर से मुलाकात कर ली। उसके दर पे या आंखो में आंखो डाल बात कर ली। यूंही बैठे थे सहमे से, आज दरिया से ही खुद के लिए गुजारिश करली। बात तो कोई बड़ी नही थी, कुछ इतने भी डरावने हालात ना थे, ना जाने क्यों बेवजह अनमोल घडिया बर्बाद कर ली। ©Ramnik #डर से आजादी#
Anuj Ray
White दुनिया के दर से " वक्त बे वक्त उठे क़दम, अक्सर नादानियां में बहक ही जाते हैं। कभी टुकड़ों में कभी लाशों में, सही सलामत घर को लौट कहां पातें हैं। बिना आशीष के घर बसते नहीं देखे, लोग पागल हैं जो शादियां रचाते हैं। अगर बच्ची है धरोहर ,विवाह के पवित्र बंधन की तो, सिर्फ़ दुनिया के दर से। ©Anuj Ray # दुनिया के डर से "
Er.Atul Kumar Gupta
पाने की जिद् नहीं, खोने का डर जरूर हैं , कभी दूर चले मत जाना, बाकी तुम्हारा हर फैसला मंजुर हैं ... अतुल कुमार गुप्ता ©Er.Atul Kumar Gupta #डर
Andy Mann
सभी धर्मों में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में अधिक पूजा पाठ और व्रत उपवास करती हैं फिर भी वे पुरुषों से कहीं ज़्यादा दुख कष्ट क्यों झेलती हैं? ©Andy Mann #जरा सोचिएगा
Vivek Sharma Bhardwaj
मैं सारी दुनिया से लड़ सकता हूं, मगर खुद से नहीं, मुझे खुद से बहुत डर लगता है।। तुम मुझे उतना ही जानते हो जितना मैने तुम्हें बताया है, या जितना तुमने सुना है, बस!!... वास्तविकता इससे बहुत अलग है। . ©Vivek Sharma Bhardwaj #डर
Andy Mann
देवी #मंदिर में नहीं हमारे #समाज मे हैं औरत की दो टांगो की बीच से पैदा होकर वही इंसान...... उसी की छाती के दो स्तनों से अपनी भूख प्यास मिटाता हैं , बलात्कारी , रेपिस्ट भी वासना की भूख ... इन्ही दो टांगो के बीच ओर उन्ही दो स्तनों से अपनी भूख मिटाने की आशा रखता हैं यदि आप देखने का नजरिया बदल लें तो आप भूख मिटाने का खाना ना समझकर उसे मंदिर की तरह सम्मान , आदर भी कर सकते हैं हमे उसी माँ स्वरूप हर महिला बेटी , हो या बहन, जवान हो या बुजुर्ग, हो उसे मंदिर की तरह हमारे दिमाग मे डाले तो हम उस भगवान को बिना मंदिर जाए भी खुश रख सकते हैं । आजकल हर जगह टीवी मोबाइल इंटरनेट कहीं पर भी देखो या हमारे आसपास लोकल भाषा मे भी हमे यही प्रचार देखने को या सुनने को मिल रहा हैं की ओरत वासना की भूख मिटाने की होटल हैं हमे हमारी सोच को बदलना होगा और कंही पे भी औरत के खिलाफ हो रहे अश्लीलता के प्रचार को रोके ओर उन्हें समझाये ओर खुद भी समझे आये दिन हो रहे बलात्कार ,रेप को हमारे ही समाज के लोगो ने जन्म दिया हैं ( सोच बदलकर गांव/ शहर बदलने वाले कहा गए ? ) ©Andy Mann #जरा सोचिएगा
Andy Mann
*खुद पर भरोसा करने का हुनर सीख लो.* *सहारे कितने भी, भरोसेमंद हो, एक दिन साथ छोड़ ही जाते हैं ..!* *इज्जत और तारीफ* *मांगी नही जाती है* *कमाई जाती है* *नेत्र केवल दृष्टि प्रदान* *करते है* *परंतु हम कहाँ क्या देखते है* *यह हमारे मन की भावना* *पर निर्भर है* *शब्द जब तक आपके अंदर है ,* *वह आपके आधीन है और* *मुँह से बाहर आने के बाद आप* *उसके आधीन हो जाते हैं* ©Andy Mann #जरा सोचिए
Andy Mann
लोग जितना ख्याल सोशल मीडिया पर महिला मित्रों का रखते हैं, घर पर अपनी बीबी का रखें तो घर में शांति रहेगी.. ©Andy Mann #जरा सोचिए
Andy Mann
किसी से नफ़रत करते हैं परन्तु मुस्कुराकर गले मिलते हैं यह व्यवहारिकता है। आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं यहाँ अगर हमें कोई भी रिश्ता ठीक से निभाना है तो व्यवहार कुशल होना आवश्यक है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से यह मनसा और वाचा अलग अलग होना है। जो दोगलापन हैं। यह दोगलापन या व्यवहारिकता हमारे शिष्टाचार की अभिन्न अंग है। धर्म हमें मनसा,वाचा और कर्मणा एक होने की राय देता है और हम कहाँ खड़े हैं? ©Andy Mann #जरा सोचिए