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Ravendra
Ali sir (A+A)
Ali sir (A+A)
shamawritesBebaak_शमीम अख्तर
©हमारी ही*बुनियाद पर जो खड़ी इमारत करते हैं,वो अब हमसे ही मालिकाना सवालात की बात करते है//१*नींव हमारे खात्मे को,जो एकदिन रात करते है,वो ऐसे दोस्त है,के अब*अदू को भी मात की बात करते है//२*शत्रु जो हमको*खाकसारी खुद को*बरतरी देके,रब से नहीं डरते है,वो*हश्र में खुदके *आला मकामात की बात करते है/३ *तुच्छता*बड़प्पन*न्याय के दिन *सर्वोपरि तमाम हुकूमते*कायनात उस रब की ही है,वो कैसे लोग है जो मेरा*आईन मेरी हुकूमत की बात करते है//४ *सृष्टि*कानून जो*गद्दीनशीन बदलके तेवर तानाशाही की बात करते है,वो अहले*अहमक भी *कयामत की बात करते है//५ *सत्ताधारी*दीवाना*विनाश जो जुबां को*खंजर सी और दामन को मजलुमों के खूँ से *सनी लिए फिरते है,वो*बेज़ा *सरकश भी*अदले करामात की बात करते है//६ *चाकू*हद से पर *क्रूर*भरी हुई*न्यायिक चमत्कार करने दो उनको हमारी बुनियाद पे सवालात जिनका कोई अता पता नहीं,के वो*सनम भी अब "शमा"से जवाबात की बात करते है//७*बुत #shamawritesBebaak ©shamawritesBebaak_शमीम अख्तर #hibiscussabdariffa ©हमारी ही*बुनियाद पर जो खड़ी इमारत करते हैं,वो अब हमसे ही मालिकाना सवालात की बात करते है//१*नींव हमारे खात्मे को,जो ए
Tafizul Sambalpuri
इमारत इमारत बस इमारत नहीं होते इनमें कुछ उम्मीद, कुछ लगन कुछ जज्बा होते हैं मेहनत ओर मोहब्बत से सज संवर कर जब एक दीवार अपने सर पे छत रखकर हमें पन्हा देती है उसे इमारत कहते हैं महलों कि चाहत तुम्हें मुबारक अकसर हम जमीन पर लेटकर खिड़की से जब जिंदगी को तलाशते हैं सर्दी, गर्मी, बारिश आके हमें गले लगाते हैं तुम्हें याद हो शायद इस धरती को हम मां बुलाते हैं इमारत के ईट ओर पत्थरों से ज़मीं पर पड़े चटाई से इस तरह मोहब्बत है हमें अकसर चांद सितारे भी हमें अपने रोशनी से आबाद करते हैं तुम क्या जानो इन रिश्तों के ताने-बाने को हम इसे अपनी मिल्कियत मानते हैं ।। ©Tafizul Sambalpuri #इमारत shamawritesBebaak_शमीम अख्तर Anshu writer Yogendra Nath Yogi Sk Manjur दुर्लभ "दर्शन"
Ravendra
Sarfaraj idrishi
बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है। बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है। ©Sarfaraj idrishi #Architecture बुलंदी देर तक किस शख्स के हिस्से में रहती है। बहुत ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है।Ashutosh Tripathi Prajwal Bhalerao Anik
Sunil Kumar Maurya Bekhud
छुप रही धरती गगन से झांकता इक चाँद है इस जहाँ में हर तरफ खामोशियों का राज है आँख मे आशू भरे हैं हम अकेले रो रहे गोद मे न जाने कितने लोग बेसुध सो रहे हर कोई ओढ़े रजाई ठंड से हम काँपते काश हम इंसान होते आग हम भी तापते तेज बर्फीली हवा से हिल गई बुनियाद है रात कट जाए अगर तो धुप हम भी सेंक लें दरम्यां अपने जहाँ को खिलखिलाते देख लें हौशले की मेरी कोई भी न देता दाद है ©Sunil Kumar Maurya Bekhud # काँपती इमारतें# हिन्दी# कविता
Ravendra
वंदना ....
💙💙💙 🩵🩵🩵🩵 ©वंदना .... धन्यवाद#yqfamily...🙏🙏🙏 इतनी सुंदर अनमोल भेंट मुझे वहां से मिली है ..🥺 इसका नाम कुलभूषण दीप है और एक जिंदादिल इंसान है ..हमें यह प्रेम से