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अमित कुमार
अंधियारे को दूर भगाकर रौशन किया जहां अनमोल रत्न दिया है सबको जिन्होंने देकर ज्ञान । सच कहूं ईश्वर से पहले है जिनका स्थान श्री गुरु के चरण कमलों में मेरा सादर प्रणाम ।। ©Amit गुरुवर
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
चौपई /जयकारी छन्द १ मातु-पिता को करूँ प्रणाम । वो ही रघुवर है घनश्याम ।। थाम चले वह मेरा हाथ । और न देता जग में साथ ।। २ जीवन की बस इतनी चाह । पिता दिखाए हमको राह ।। पाकर गुरुवर से मैं ज्ञान । बन जाऊँ मैं भी इंसान ।। ३ जीवन साथी है अनमोल । मीठे प्यारे उसके बोल ।। घर उसके ले गया बरात । पूर्ण किया फिर फेरे सात ।। ४ मानूँ उसकी सारी बात । कभी न मिलता मुझको घात ।। कहती दुनिया मुझे गुलाम । लेकिन जग में होता नाम ।। ०३/०४/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR चौपई /जयकारी छन्द १ मातु-पिता को करूँ प्रणाम । वो ही रघुवर है घनश्याम ।। थाम चले वह मेरा हाथ । और न देता जग में साथ ।। २
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं । सकल संसार के रहबर खड़े हैं ।।२ करें कैसे तुम्हारा मान अब हम । पलटकर देखिए झुककर खड़े हैं ।३ डरूँ क्यूँ आँधियों को देखकर मैं । अभी पीछे मेरे गुरुवर खड़े हैं ।।४ मसीहा जो बताते थे खुदी को । वही अब देख बुत बनकर खड़े हैं ।।५ अभी तुम बात मत करना कोई भी । हमारे साथ सब सहचर खड़े हैं ।।६ मिली है योग्यता से नौकरी यह । तभी तो सामने तन कर खड़े हैं ।।७ पकड़ लो हाथ तुम अब तो किसी का । तुम्हारे योग्य इतने वर खड़े हैं ।।८ निभाओ तो प्रखर वादा कभी अब । अभी तक देखिए छत पर खड़े हैं ।। २६/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- बिना घर के भी हम डटकर खड़े हैं कहें किससे कि अब मर कर खड़े हैं ।।१ हमारे सामने गिरधर खड़े हैं ।
Vishal Rajbhar ji
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
मेरा इस संसार में , हो न किसी से मेल । अपने आज विचार ही , करते मुझको फेल ।। झूठ नही बर्दाश्त है , सुन लो तुम सब आज । मेरे जीवन का यही , सबसे गहरा राज ।। माना संगत ने किया , अक्सर मुझपे घात । अब भी लगता है मुझे , वह सब है साक्षात् ।। सब ही गुरुवर है यहाँ , करता सबका ध्यान । भूल क्षमा करना सदा , मैं बालक नादान ।। अच्छे दिन में है सुना , पीछा करे अतीत । कहकर अज्ञानी मुझे , बन जाना फिर मीत ।। बच्चों जैसा स्वच्छ है , तन-मन अपना आज । अब मुझको भी स्थान दो , अपने आज समाज ।। जीवन जीने की कला , सीख गया रघुनाथ । अब है विनती आपसे , रहना मेरे साथ ।। २२/०२/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR मेरा इस संसार में , हो न किसी से मेल । अपने आज विचार ही , करते मुझको फेल ।। झूठ नही बर्दाश्त है , सुन लो तुम सब आज । मेरे जीवन का यही ,
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
गीत हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। हम बच्चे इतना तो सीखें... तुम भी मानों साथी मेरे , गुरुवर की सब बातें प्यारी । मन की इच्छा शक्ति बढ़ाओ , और कर्म के बनो पुजारी ।। क्यों की गली-गली में भैय्या , अब तो बल्ला बैट चला है । हम बच्चे इतना तो सीखें .... जीवन में मीठी बातें तो , करते अपने और पराये । लेकिन राह तुम्हें जीवन की , सुन लो कोई नहीं बताये ।। एक माँ और दूजे गुरुवर , नहीं मार्ग तुमको भटकाये । हम बच्चे तो इतना सीखें..... सच्चा शिष्य वही धरती पे , मन जिसके मत लोभ रहा है । विद्या धन वह करता अर्जित , जो गुरुवर के शरण रहा है ।। यही विनय है मातु-पिता की , तुझसे ही अभिमान मिला है । हम बच्चे तो इतना सीखें ...... हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR हम बच्चे इतना तो सीखें , जीवन में संकल्प बड़ा है । जिसने भी इसको अपनाया , वही शिखर पे आज खड़ा है ।। हम बच्चे इतना तो सीखें... तुम भी मानों