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Aprasil mishra
जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? (अनुशीर्षक अवलोकनीय) **************** जीवन का उत्कर्ष कहाँ है, सुधा कहाँ है स्वर्ग कहाँ है? ढूढ़ रहा हूँ पग-पग भू पर, प्रेम दीप्त संसर्ग कहाँ है?? मानवता का अर्
santosh kavde
हिंदव:सोदरा: सर्वे | न हिंदू: पतितो भवेत | मम दीक्षा हिंदुरक्षा || मम मंत्र : समानता || हिंदव:सोदरा: सर्वे | न हिंदू: पतितो भवेत | मम दीक्षा हिंदुरक्षा || मम मंत्र : समानता ||
Md Shafique
एक सूचना जारी कर रहा हूं के किशनगंज क्षेत्र में 18 अप्रैल को वोट है सभी अपने घर में परिवारों को समझाना के भेजे वह डालने के लिए के किसी भी छाप पर वोट डाले तो 7 सेकंड तक सदा रखें जब तक सिलिप निकल कर के ना आए सभी दोस्तों से गुजारिश है कि इस मैसेज को शेयर करें मम
sonia
मम प्रभास ........ अब कि अगर आना अहम को अपने तज कर आना राह में गर निकल पड़े हो तो मिले बीच कोई कूप- सरोवर या कोई नदिया, झरना निर्झर उसकी कुछ बौछारें लभना क्रोध को अपने दर्प को अपने प्रवाहित उसमें करके आना मम प्रभास अब कि अगर आना अहम को अपने तज कर आना सोनिया सूर्य प्रभा # मम प्रभास
Priya Dubey
गैया लगे लगे मोहे प्यारी, जगपालनहारी माखन, छाछ, दूध, दही, घृत सो सबको करत सुखारी सुखारी गैया लगे लगे मोहे प्यारी, जगपालनहारी भोरी अति दीन रहे सबके अधीन जामे बसे लोक तीन, देव नाग गंधर्ब जाके घर होबे गाय बाके भाग्य को सराय बाके घर चलो आये तीन तीर्थन को पावों अष्ट सिद्धि नौ निधी तहां नित देती डोल बुहारी? गैया लगे लगे मोहे प्यारी, जगपालनहारी चार पाओं चारों धाम धर्म अर्थ मोक्ष काम दर्शन अविराम मेट देत अंताप ताप तीनही नशावे अंत स्वर्ग को सीधावे फिर जग में न आवे ताहै मुक्ति मिले आप आप तरे सब पितरनु तारे, जाके मैं बलिहारी2 गैया लगे लगे मोहे प्यारी, जगपालन हारी ©Priya Dubey #मम धेनु
Brandavan Bairagi "krishna"
।।मन के पास।। मन के पास जो मन हो जाये। ये दुनिया भी समझ मे आ पाये। लगे रहते है फिजूल बातों में हम उम्रभर। मन के पास पहुँचते ही परम् तत्व का होता है अहसास हमें। यही वो पल है जहाँ हम आनन्द की बरसात में भीग पायें। बहुत कठिन है मन का मन के पास होना। बृन्दावन बैरागी"कृष्णा" ©Brandavan Bairagi "krishna" मम के पास #citylight
Pallavi Goel
संस्कृतभारती मेरठ-प्रान्त: गुरुवासर: ०९/०७/२०२० सुभाषितम् पुष्पिताः फलवन्तश्च तर्पयन्तीह मानवान्। वृक्षदं पुत्रवत् वृक्षास्तारयन्ति परत्र च॥ भावार्थ:- फल और फूलों वाले वृक्ष मनुष्य को तृप्त करते हैं। वृक्ष देने वाले अर्थात वृक्षारोपण व संवर्धन करने वाले मनुष्य का तारण परलोक में भी करते हैं। संस्कृतं मम जीवनध्येयम् #Beauty संस्कृतं मम जीवनध्येयम्