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Parasram Arora

धर्म औऱ शांति...... पर्यायवाची शब्द हैँ

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कोई  पुरखो को   पानी  पहुंचा  रहा हैँ  कोइ गंगाओ मे  पाप  धो रहा हैँ   कोई  पथर की प्रतिमाओं  के सामने  बिना भाव  सर  झुकाये बैठा हैँ 
धर्म  के  नाम पर  हज़ार  तरह  की मूढ़ताएं  प्रचलन मे हैँ धर्म से  संबंध तो   तब होता हैँ जब  आदमी  जागरण की  गुणवत्ता  हासिल कर लेता हैँ  
जहाँ  जागरण  होगा  वहा अशांति  कभी  हो ही नहीं सकती  
क्यों कि  जाग्रत  आदमी  विवेकी  होता हैँ      इर्षा  क्रोध  की  वृतियो  से  ऊपर  उठ  चुका होता हैँ औदेखा  जाय तो  धर्म औऱ  शांति पर्यायवाची  शब्द  हैँ धर्म  औऱ  शांति...... पर्यायवाची  शब्द हैँ

Author Harsh Ranjan

आसक्ति

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लाल चुनरी, लाल लिबास,
सपनों में केसरिया आकाश,
लिए सपने, लिए इक आस,
अंतरतम में भरे प्रकाश,
हरेक भोग में चाहे उपहास,
रोदन में या हर निर्मल हास,
गुनगुनाऊँ वही पंक्तियां खास,
चलूं तुम्हारे संग-संग,
रंग कर सिंदूरी अपने अंग,
करके मोह सारे जग से भंग,
बनकर सागर की एक तरंग,
मिल जाऊं तुम्हारे व्यक्तित्व में,
बस जाऊं तुम्हारे कृतित्व में,
एक हो जाऊं तुम्हारे अस्तित्व में,
यही मेरी आरती, यही संध्या है,
इस सुख के बिना जीवन बंध्या है।
बस इतनी कृपया कर माँ शक्ति,
भर मुझमें उनसे इतनी आसक्ति! आसक्ति

Amit Singhal "Aseemit"

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Parasram Arora

पर्यायवाची...... #शायरी

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खून को पानी का पर्यायवाची  मत मान. लेना
अनुभन कितना भी कटु क्यों न हो वो.कभी कहानी नही बन सकताहै 

उस बसती मे  सच  बोलने का रिवाज  नही है
यहां कोई भी  आदमी  सच.को  झूठ बना कर पेश कर सकता है

ताउम्र अपना  वक़्त   दुसरो की भलाई मे  खर्च करता रहा वो
ऐसा आदमी कुछ पल का वक़्त भी अपने लिये निकाल नही   सकता है

©Parasram Arora पर्यायवाची......

सिद्धार्थ गौतम

प्राण में मेरे सदा गुनगुनाई हो तुम 
संस्कृत की जैसे को चौपाई हो तुम। #आसक्ति

Author Harsh Ranjan

आसक्ति

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लाल चुनरी, लाल लिबास,
सपनों में केसरिया आकाश,
लिए सपने, लिए इक आस,
अंतरतम में भरे प्रकाश,
हरेक भोग में चाहे उपहास,
रोदन में या हर निर्मल हास,
गुनगुनाऊँ वही पंक्तियां खास,
चलूं तुम्हारे संग-संग,
रंग कर सिंदूरी अपने अंग,
करके मोह सारे जग से भंग,
बनकर सागर की एक तरंग,
मिल जाऊं तुम्हारे व्यक्तित्व में,
बस जाऊं तुम्हारे कृतित्व में,
एक हो जाऊं तुम्हारे अस्तित्व में,
यही मेरी आरती, यही संध्या है,
इस सुख के बिना जीवन बंध्या है।
बस इतनी कृपया कर माँ शक्ति,
भर मुझमें उनसे इतनी आसक्ति! आसक्ति

manoj kumar jha"Manu"

धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा। इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।

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धरती का दुःख क्यों, समझते नहीं तुम।
धरा न रही अगर, तो रहोगे नहीं तुम।।

सुधा दे रही है वसुधा हमें तो,
भू को न बचाया, तो बचोगे नहीं तुम।।

"भूमि हमारी माता, हम पृथिवी के पुत्र"*
वेदवाणी कह रही, क्या कहोगे नहीं तुम।।
(स्वरचित)
* माता भूमि: पुत्रो अहं पृथिव्या:
(अथर्ववेद १२/१/१२)

 धरती का दुःख हम नहीं समझेंगे तो कौन समझेगा।
इसमें धरती के पर्यायवाची शब्द भी हैं।

चंचल 'चमन'

निश्छल आसक्ति #कविता

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सहिल सुनो आसक्ति है तुझसे
तू कर अनुराग यूँ मुझसे, 
जहां को तू समर कर दे
जहन में यूँ प्रणय भर दे, 
मैं न अवतंस हूँ तेरा
समय का अंश हूँ तेरा,

©CHANCHAL CHAMAN निश्छल आसक्ति

#कस्तुरी_मृग

मी शोधावया निघालो 
घर विरक्त माणसांचे ,
भेटला आजवर जो
आसक्ति शिकवून गेला....

©#कस्तुरी_मृग #विरक्त
#आसक्ति

Vikash Arya

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