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Amit Singhal "Aseemit"

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'मनु' poetry -ek-khayaal

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Divyanshu Pathak

साहित्यिक लहजे में
प्रेम समझ नही आता ।
अनुनय विनय भी
चाहतों के दूसरे नाम हैं । #सागरमाधुरी #आसक्ति #अनुराग #प्रणय #yqdidi #yqhindi  #yrquoteandmine  #YourQuoteAndMine
Collaborating with Madhvi Shrivastav

Anupama Sharma

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Vikash Arya

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#कस्तुरी_मृग

मी शोधावया निघालो 
घर विरक्त माणसांचे ,
भेटला आजवर जो
आसक्ति शिकवून गेला....

©#कस्तुरी_मृग #विरक्त
#आसक्ति

सिद्धार्थ गौतम

प्राण में मेरे सदा गुनगुनाई हो तुम 
संस्कृत की जैसे को चौपाई हो तुम। #आसक्ति

Sikari

#आसक्ति #शक्ति #Shakti #त्याग Rajkumar pal ganga Ritesh SubhRaam BELINDA INDA Siddharth Mishra A Mishra #Talk

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आसक्ति(लगाव) को त्यागने की शक्ति जिसके पास है, उसी के पास शक्ति है।।।
~$¡K@®i #आसक्ति #शक्ति #Shakti #त्याग Rajkumar pal ganga Ritesh SubhRaam BELINDA INDA Siddharth Mishra A Mishra

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 4 – कर्म 'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।' बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
4 – कर्म

'कुछ कर्मों के करने से पुण्य होता है, और कुछ के न करने से। कुछ कर्मों के करने से पाप होता है और कुछ के न करने से।' धर्मराज अपने अनुचरों को समझा रहे थे। 'कर्म संस्कार का रूप धारण करके फलोत्पादन करते हैं। संस्कार होता है आसक्ति से और आसक्ति क्रिया एवं क्रियात्याग, दोनों में होती है। यदि आसक्ति न हो तो संस्कार न बनेंगे। अनासक्त भाव से किया हुआ कर्म या कर्मत्याग, न पुण्य का कारण होता है और न पाप का।'

बड़ी विकट समस्या थी। कर्म के निर्ण

'मनु' poetry -ek-khayaal

विरक्त, निराशक्त #Quote

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'विरक्त और निराशक्त' भक्ति में भी आसक्ति विद्दमान है, भक्ति '"पर आसक्ति"' है, भक्त स्वयं से आसक्ति त्याग कर...परासक्त हो जाता है, यानी भक्ति गंगा बाहर की ओर  बहने लगती है भीतर से, बिरले हैं भक्त जो विरक्त बोध को प्राप्त हुए भक्ति में, किन्तु ध्यान में निरासक्त हुआ जा सकता है, ध्यान मे आसक्ति और निरासक्ति आपके हाथ की बात होती है, क्योंकि ध्यान आपकी समझ गहरी करता है,  और भक्ति में प्रेम की प्रगाढ़ता होती है।प्रेम हृदयगत है बुद्धिगत नहीं...!!!
'मनु' विरक्त, निराशक्त
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