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Parasram Arora
#FourlinePoetry सौ दोसो जनो की क्या चिंता धर्म रहे कर्म रहे आदमी भले ही बेशर्म रहे बस आधुनिक ठेकेदार राजनीती बाजो की जेब गर्म रहे ये लोग घृणा क़े बीज बोते रहेंगे ज़ब तक नही चेतेंगे हम आप धर्म क़े नाम पर उपद्रव ऐसी ही होते रहेंगे ©Parasram Arora उपद्रव.....
Sagar Joshi
ये आशोब मेरे अंदर का खत्म क्यूं नहीं हो रहा गए हुए तुझको एक अर्सा हुआ पर मै तुझसे जुदा क्यूं नहीं हो रहा ©Sagar 🌟 आशोब = उपद्रव #seaside
पूजा निषाद
कुछ यूं भी जलती हैं चराग़ों से बिजलियां कि चमकती शोख़ अदा तो है मगर इनमें किसी का भला नहीं है अदब से कोई वाबस्तगी नहीं इनकी क़द-आवर किरदार भी नहीं इनका बस कोलाहल करती हैं अपने वजूद का फिर जहां भी गिरती हैं ग़र्क ही करती हैं क़यामत-ज़ा ये बिजलियां ।— % & • वाब्सतगी ( त'ल्लुक़ ) • क़द-आवर( ऊंचा ) • कोलाहल ( उपद्रव ) • क़यामत-ज़ा ( आफत बरपाने वाली )
Pooja Nishad
कुछ यूं भी जलती हैं चराग़ों से बिजलियां कि चमकती शोख़ अदा तो है मगर इनमें किसी का भला नहीं है अदब से कोई वाबस्तगी नहीं इनकी क़द-आवर किरदार भी नहीं इनका बस कोलाहल करती हैं अपने वजूद का फिर जहां भी गिरती हैं ग़र्क ही करती हैं क़यामत-ज़ा ये बिजलियां ।— % & • वाब्सतगी ( त'ल्लुक़ ) • क़द-आवर( ऊंचा ) • कोलाहल ( उपद्रव ) • क़यामत-ज़ा ( आफत बरपाने वाली )
vishnu thore
कोण आपलं परकं नाती उरली नावाला साऱ्या ओळखीच्या वाटा गेल्या परक्या गावाला दुःख उतू आल्यावर कसं झेलावं मनाला सावलीनं द्यावा आता
PRASAD GURU
vishnu thore
हा छंद कसा जगण्याचा जहरीला, पेरीत जातो विष कुण्या गावाला... हा नात्यांचा जळुन गेला मुलूख सारा अन मी म्हणावे मैत्री तुझ्या नावाला...! ..........-विष्णू थोरे. हा छंद कसा जगण्याचा जहरीला, पेरीत जातो विष कुण्या गावाला... हा नात्यांचा जळुन गेला मुलूख सारा अन मी म्हणावे मैत्री तुझ्या नावाला...! ......
Preeti Karn
चिंतनरत अवधारणा में सहज मन के प्राणपण में मुक्ति का प्रयास जीवन क्यों विरोधाभास रे मन.... तुमुल कोलाहल की पीड़ा अव्यक्त अजन्मे अवसाद विप्लव अनंत की संभावना में अल्प का आभास जीवन क्यों विरोधाभास रे मन.... सूखती जलधार मन की क्षीण होती शाखाएं तन की भावों के मरूखेत में लुप्तप्राय प्रस्फुटन अंकुरण क्यों विरोधाभास रे मन.... दग्ध अवनि विकल दृष्टि निहारती अपलक क्षिति वेदना संतृप्त प्राणों में विकल नैराश्य आकुंचन व्यर्थ ही संत्रास जीवन क्यों विरोधाभास रे मन... प्रीति #तुमुल कोलाहल: सांसारिक क्लेश कलह आकुंचन :सिमटी दग्ध: जला हुआ विप्लव : उपद्रव अवनि : धरती क्षिति : आकाश नैराश्य :निराशा संत्रास : अत्यंत भ
vishnu thore
हा जन्म कसा जगण्याचा जहरीला पेरीत जातो विष कुण्या गावाला हा नात्यांचा जळून गेला मुलुख सारा अन मी म्हणावे मैत्री तुझ्या नावाला -विष्णू मैत्री दिनाच्या खूप शुभेच्छा💐 ©vishnu thore हा जन्म कसा जगण्याचा जहरीला पेरीत जातो विष कुण्या गावाला हा नात्यांचा जळून गेला मुलुख सारा अन मी म्हणावे मैत्री तुझ्या नावाला