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Sunita Pathania
संस्कृत लेखिका तरुणा शर्मा तरु
चिलमन=पर्दे ख़लिश=शिकायत राफ़्ता= संबंधित दरमियां ए साहिल= मझधा, मुकद्दर(भाग्य) स्वलिखित गज़ल शीर्षक समंदर आंखों का विधा गज़ल भाव वास्त
read moreN S Yadav GoldMine
White {Bolo Ji Radhey Radhey} याद रखना भगवान हमारा भाग्य नही लिखता, हमारी सोच-समझ, हमारे कर्म, हमारा आचरण, हमारे बोल, हमारे आध्यात्मिक चिंतन से हमारा भाग्य और भाग्य के फल का निर्माण होता है।। जय श्री राधेकृष्ण जी।। ©N S Yadav GoldMine #sad_quotes {Bolo Ji Radhey Radhey} याद रखना भगवान हमारा भाग्य नही लिखता, हमारी सोच-समझ, हमारे कर्म, हमारा आचरण, हमारे बोल, हमारे आध्यात्मिक
#sad_quotes {Bolo Ji Radhey Radhey} याद रखना भगवान हमारा भाग्य नही लिखता, हमारी सोच-समझ, हमारे कर्म, हमारा आचरण, हमारे बोल, हमारे आध्यात्मिक
read moreneelu
White Yesterday I saw a few episodes of the Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God... ©neelu #sad_quotes #Yesterday I #saw a few episodes of the #Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God...
#sad_quotes #yesterday I #Saw a few episodes of the #Mahabharat series and today all I can say is विजय भव .....कल्याण हो.. Thank God...
read moreनवनीत ठाकुर
" वो नहीं जो भाग्य को दोष दें, हम वो जो खुद से अपनी राहें चुनते हैं। ग़म के साए में भी हम मुस्कान सजा लेते हैं, मुसीबतों के दरवाज़े को भी खुद खोला करते हैं। हम वो हैं, जो हालात को नहीं, अपनी ताकत को बदलते हैं। ©नवनीत ठाकुर #नवनीतठाकुर वो नहीं जो भाग्य को दोष दें, हम वो जो खुद से अपनी राहें चुनते हैं। ग़म के साए में भी हम मुस्कान सजा लेते हैं, मुसीबतों के दरवाज
#नवनीतठाकुर वो नहीं जो भाग्य को दोष दें, हम वो जो खुद से अपनी राहें चुनते हैं। ग़म के साए में भी हम मुस्कान सजा लेते हैं, मुसीबतों के दरवाज
read moreAvinash Jha
कुरुक्षेत्र की धरा पर, रण का उन्माद था, दोनों ओर खड़े, अपनों का संवाद था। धनुष उठाए वीर अर्जुन, किंतु व्याकुल मन, सामने खड़ा कुल-परिवार, और प्रियजन। व्यूह में थे गुरु द्रोण, आशीष जिनसे पाया, भीष्म पितामह खड़े, जिन्होंने धर्म सिखाया। मातुल शकुनि, सखा दुर्योधन का दंभ, किंतु कौरवों के संग, सत्य का कहाँ था पंथ? पांडवों के साथ थे, धर्म का साथ निभाना, पर अपनों को हानि पहुँचा, क्या धर्म कहलाना? जिनसे बचपन के सुखद क्षण बिताए, आज उन्हीं पर बाण चलाने को उठाए। "हे कृष्ण! यह कैसी विकट घड़ी आई, जब अपनों को मारने की आज्ञा मुझे दिलाई। क्या सत्य-असत्य का भेद इतना गहरा, जो मुझे अपनों का ही रक्त बहाए कह रहा?" अर्जुन के मन में यह विषाद का सवाल, धर्म और कर्तव्य का बना था जंजाल। कृष्ण मुस्काए, बोले प्रेम और करुणा से, "जो सत्य का संग दे, वही विजय का आस है। हे पार्थ, कर्म करो, न फल की सोच रखो, धर्म की रेखा पर, अपना मनोबल सखो। यह युद्ध नहीं, यह धर्म का निर्णय है, तुम्हारा उद्देश्य बस सत्य का उद्गम है। ©Avinash Jha #संशय #Mythology #aeastheticthoughtes #Mahabharat #gita #Krishna #arjun
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