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अनुषी का पिटारा "अंग प्रदेश "
कितनों के कितनी ख्वाहिशें होंगी दिलों में अरमान होंगे, ना घरों में होंगी दो वक्त की रसद,ना मिलते काम होंगे । मौत से जूझते डाक्टर,नर्स, और पुलिस के जवान होंगे, मकसद एक फ़र्ज़ एक कोरोना से बचने मेंं लगे आम होंगे । -प्रमोद मिश्रा #बचाव_और_सावधांनी
Kailash Yede
यह वक्त मानो थम सा गया है रुक सा गया है. कहां गलती हुई कब हुई किसने किया. सोचो कि प्रकृति को हमने कहा नुकसान पहुंचाया है. पेड़ काट दिए जंगल साफ कर चुके हैं नेताओं ने रेत बेच दिए. हमने खेत बेच दिए. पानी दूषित हो चुका है.क्या औद्योगिक क्रांति, पूंजीवाद, धर्म ये सभी राष्ट्रवाद के ऊपर है. शहर कंक्रीट का जंगल है. आओ लौट चलो गांव की ओर खेत की ओर हरियाली की ओर गांव बचाओ देश बचाओ.. आओ मिलकर लड़ते हैं कोरोना के विरुद्ध. (घर पर रहे सुरक्षित रहें) (कवि कैलाश ) गाव बचावों
गाव बचावों
read morevinay vishwasi
आज का दोहा बीमारी बढ़ती रही,सभी खड़े थे मौन। पानी सर के पार है, हमें बचाए कौन।।२३१।। खुद को अभी सँभालिये,मुश्किल का है दौर। कोरोना दुर्बल नहीं, तनिक कीजिए गौर।।२३२।। #दोहे #बचाव_ही_इलाज़_है #विश्वासी
#दोहे #बचाव_ही_इलाज़_है #विश्वासी
read moreDilip Singh Harpreet
जो राजस्थानी भासा री बात करैला .. वो ही राजस्थानियों रै दिळो पे राज करैला !! 🚩 जै भवानी.. जै राजस्थानी 🚩 भासा बचावण रो काज
भासा बचावण रो काज
read moreSiraj Quraishi
जब जब देश गूंजेगा इन्कलाब के नारों से। दुश्मन भी घबराएगा इन देश के पहरेदारों से। #संविधान बचाव ,देश बचाव
#संविधान बचाव ,देश बचाव
read moreGirish Chandra Joshi
सबसे बड़ी है धरती माता।फिर होती है अपनी माता।अंत मे आती गवू माता।धरती माँ का सीना चीर चुके है।इतने पर भी नही रुके है।अपनी माँ । सेर की बियानी।अपनी माँ तोअमाता सायद अब माफ न कर पाए।रौद्र रूप में आ रही है हम सबकी बड़ी माता।अब भी वक्त बचा है थोड़ा।धरती माँ को भर दो मिलकर हरियाली के आंचल से।यज्ञ हवन करना है घर में।भूल न करना यह जंगल मे।अब जागो धरती माँ के सपूतो।दृढ़ संकल्प से आवाज उठाओ।पेड़ो को पावक से बचाओ।ओर न इनकी हत्या होने पाए।अब भी न जगे हम सब तो।माँ काली के रूप में आकर।कही बाढ़ कहि सुनामी।भूकम्पो की बड़ी कहानी।ये पर्वत भी गिर जाएंगे।नगर नगर तैराकी करते।उन्मत्त सागर में दिख जाएंगे।क्या करेंगे ये महल अटारे।क्या कर लेगा सोना चाँदी।क्या कर लेंगे बेग भरे नोटों के।जब खाने वाले नही रहेंगे।कोई बम बारूदों से धरती माँ का आँचल चीर रहा है।कोई कमज़ोरों को हड़पने को दौड़ रहा है।पहले माँ धरती को बचा लो।फिर कर लेना इच्छा पूरी।अब नहीं बची है ज्यादा दूरी।माँ काली खप्पर लेकर खड़ी हुई है।पर माँ तो ममता की मूरत होती है।हम सब और सरकारें जग जाए ।जी जान लगाकर माँ धरती को बचा ले।ममतामयी यह धरती माता।हम सबको ममतामयी आंचल की छाव में ।बड़े प्यार से फिर से ढक लेगी।मित्रो धरती माँ को बचाने के अभियान में जुट जाइये ताकी हम व सरकारे मिलकर जंगलो को बचाने के ठोस प्रबन्ध कर सकें।जय भारत। ©Girish Chandra Joshi #धरती बचावो यदि जीना है तो।