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Ram Yadav
#जंगलों में जाकर सुकूं मिलता है मुझे जानवर अक्सर मेरे #दोस्त हो जाते हैं... #समंदर कहकहाते हैं मेरे साथ बैठकर #पहाड़ मुझसे मिलकर मोम हो जाते हैं... #फूल बिछे जाते हैं राहों में मेरी #झरने मुझसे मिलकर बहुत खुश हो जाते हैं... #परिंदे डाली छोड़ मेरे पास आ बैठते हैं #नदियां और #दरख़्त मेरे साथ-साथ गाते हैं... #भूतों को अक्सर मैं पसंद आ जाती हूं #प्रेतों को मेरे किस्से बहुत लुभाते हैं... #चाँद मेरी खिड़की पर रोज दस्तकें देता है #बादल घुमड़ घुमड़कर आवाज़ लगाते हैं... #बारिशें रो पड़ती हैं मेरी उदासी देखकर मैं रूठ जाऊं अगर ये #मौसम मुझे मनाते हैं... बड़ा #नाज़ आता है कभी-कभी ख़ुद पर #इंसाँ इक ना हुआ मेरा ये सब मुझपर मरे जाते हैं... ना जाने क्यों लगती है ये #प्रकृति मुझे अपनी ना जानें क्यों ये सब मुझ पर #जां लुटाते हैं !! -मोनिका ©Ram Yadav #Nature
Suhas.jannat.90
खुश है हम अपनी जिंदगीसे अब कोई गिला शिकवा नही है सुख चुकी है ये नदिया अश्कों की अब बहने के लिए इनमें पानी नही है ©Suhas.jannat.90 #नदियां #अश्कों #की #Lohri
VIKAS" VKB #DEARJINDAGI
#नदियां जीवन का सार सीखना हो तो नदियों से सीखा जा सकता हैं ये जन्म से मृत्यु तक का पूरी सफ़र की कहानी बयां करती है नदियों के उद्गम से ले कर विलय तक के पूरे सफ़र को ध्यान से समझे तो पाएंगे आप अपने जीवन की पूरी कहानी,, 🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊🌊 उम्र भर बनाते फिरे हम अपनी पूरी जवानी* *नदियों के किनारे विलीन हो गई वो मस्त रवानी* #VKB ©VIKAS" VKB #DEARJINDAGI #नदियां#जीवन#जन्म
ankit gupta
नदियां,पहाड़,सागर,इंसान और देवों को भी है इसने पाला, हमारी मातृभूमि का कण-कण है, बहुत निराला। सूरज बहुत है दिलवाला,अपना फर्ज उसने है संभाला अम्बर मे वीर सा डटा खडा,सबका है वो रखवाला। हमारी मातृभूमि का कण-कण है, बहुत निराला
नदियां,पहाड़,सागर,इंसान और देवों को भी है इसने पाला, हमारी मातृभूमि का कण-कण है, बहुत निराला। सूरज बहुत है दिलवाला,अपना फर्ज उसने है संभाला अम्बर मे वीर सा डटा खडा,सबका है वो रखवाला। हमारी मातृभूमि का कण-कण है, बहुत निराला
read moreअविरल अनुभूति
तपती धरा झुलसता जीवन, सूनी सड़कें गलियां निर्जन। सूखी नदियां धरती प्यासी। पसरी चारो तरफ उदासी।। दूर बहुत अभी मुझें है चलना। मुश्किल ठौर छांव का मिलना।। करू जतन और विनती तुमसें। बरसों मेघ तुम अमृत बनकें।। तृप्त हो धरती निर्मल हो मन। नीरमयी हो नदियां पावन।। अविरल विपिन
Bhawna Sagar Batra
तेज़ धूप में जैसे ख्वाहिश हो बारिश की, चॉद को ज़रूरत है झिलमिल सितारों की, बहती नदियां जैसे बेताब सी हो, ख्वाहिश हो उन नदियों को समुन्दर मे मिल जाने की, पंछियों की चहक जैसे कुछ बता रहीं हो, कोयल भी अपनी मीठी बोली से गुनगुना रही हो, कहती हो नदियां पहाड़ियो से जैसे, अरमान है दिल मे बहुत से ऐसे, मुहोब्बत कि धुन भी अब गुनगुना सा रही है, छुपके से कान मे कुछ बता सा रही है, बेइम्तहां मुहोब्बत को मुहोब्बत है किसी से शरमाकर ये बात सबसे वो, छुपा सा रही है,फिर मुहोब्बत के गीत वो भी गा सा रही है #muhobbat#gungunarah#ihai
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