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अभिजित त्रिपाठी

जो राष्ट्रभक्ति से  भर दे सबको, ऐसा सुरभित छंद बनो।
सूरज गर तुम  नहीं बन सको, जुगनू ही  कोई मंद बनो।
जाति - पंथ  को   जोड़  सके,  ऐसा  पावन   बंध  बनो।
उठो!  मेरे  अब  युवा  साथियों, सभी  विवेकानंद  बनो।

©अभिजित त्रिपाठी #विवेकानंद #स्वामी #स्वामीजी #सूरज #जुगनू #जाति #पंथ #छंद #युवा

praveernayak

नानक से पहले कोई सिक्ख नहीं था !
जीसस से पहले कोई ईसाई नहीं था !
मुहम्मद से पहले कोई मुसलमान नहीं था ! ऋषभदेव से पहले कोई जैनी नहीं था !
बुद्घ से पहले कोई बौद्ध नहीं था !
कार्ल मार्क्स से पहले कोई वामपंथी नहीं था !
परन्तु  :--
#श्री_कृष्ण से पहले.
#श्री_राम से पहले..
#ऋषि_जमद्गनि से पहले...
#ऋषि_अत्री से पहले...
#ऋषि_अगस्त्य से पहले...
#ऋषि_पतञ्जलि से पहले...
#मुनि_कणाद से पहले...
#मुनि_याज्ञवलक्य से पहले...
सभी "सनातन वैदिक" धर्मी थे..!
क्योंकि एक व्यक्ति विशेष के द्वारा तो
 केवल #मत, #पंथ, #सम्प्रदाय,
 #रिलिजन आदि चला करते हैं,
#धर्म नहीं..!
प्रेम से बोलिये... #सत्य_सनातन_वैदिक धर्म 
की जय हो..!!

#हमें_गर्व है की हम #आदि_अनादि काल से
#एक_हाथ_शास्त्र और #दूजे_हाथ_शस्त्र 
के साथ #सनातन की रक्षा को प्रतिबद्ध हैं ।
#राम_ही_राम
🚩🚩🚩🚩🚩

©praveernayak #WForWriters

स्मृति.... Monika

#Journey #पंथ हैं कितने कँटीले

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NITINSEEKER

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Bobay Rastoge

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वे तहाशां पंथ पे चलते रहें

मनजिल देखीं वहोत रास्ते देखें वहोत फिर भी पंथ का सफ़र त्ये कर ना सके

Sb

Narendra Kumar

रास्ते पंथ  पथरीले हुए, रास्ते बदल गए।
खोटे थे जो सिक्के वो भी चल गए।।
हम रह गए अकेले दुनिया की भीड़ में
पंथ जब से बदले,हम भी संभल गए।।
।।नरेन्द्र कुमार।। #रास्ते

Narendra Kumar

रास्ते पंथ  पथरीले हुए, रास्ते बदल गए।
खोटे थे जो सिक्के वो भी चल गए।।
हम रह गए अकेले दुनिया की भीड़ में
पंथ जब से बदले,हम भी संभल गए।।
।।नरेन्द्र कुमार।। #रास्ते

Pnkj Dixit

*जात* जब हम किसी अनजान व्यक्ति से पूछते हैं कि "कौन धर्म जात हो ?" तो वो इस तरह से देखेगा जैसे पाकिस्तान भारत को देखता है । लेकिन वही व्यक्ति संविधान को आदर्श मानते हुए सरकार प्रपत्रों में बड़ी शान से कॉलम भरेगा ... फलां धर्म जात । जाति-धर्म पंथ को सबसे ज्यादा बढ़ावा नेताओं और कुछ धर्म के ठेकेदारों ने दिया है । एक छुटभैय्ए नेता से बातचीत के अंशों को कविता रुप में प्रस्तुत करने की कोशिश..... # जात # जात जो देखन मैं चला जात न मिलया कोय जात भ्रम के कारनै एक न रहया कोय ।

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जाति-धर्म-पंथ 
💝
आज की कविता
👇 *जात*
जब हम किसी अनजान व्यक्ति से पूछते हैं कि "कौन धर्म जात हो ?"  तो वो इस तरह से देखेगा जैसे पाकिस्तान भारत को देखता है । लेकिन वही व्यक्ति संविधान को आदर्श मानते हुए सरकार प्रपत्रों में बड़ी शान से कॉलम भरेगा ... फलां धर्म जात । जाति-धर्म पंथ को सबसे ज्यादा बढ़ावा नेताओं और कुछ धर्म के ठेकेदारों ने दिया है । एक छुटभैय्ए नेता से बातचीत के अंशों को कविता रुप में प्रस्तुत करने की कोशिश.....
# जात #

जात जो देखन मैं चला 
जात न मिलया कोय
जात भ्रम के कारनै 
एक न रहया कोय ।

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10 ।।श्री हरिः।। 8 – अदम्भ अवस्था उनकी सत्तर वर्ष से ऊपर की हो गयी है - कदाचित अस्सी के लगभग हो। दुबला शरीर है पर्याप्त लम्बा गौर वर्ण, श्वेत केश और अब झुर्रियाँ तो पड़नी ही हैं। सिर उठाकर जिसकी ओर देख लें, सौभाग्य उसका, अन्यथा मस्तक झुका ही रहता है सदा और दृष्टि जैसे अपने पदों से दो पद आगे तक ही सीमित रहती है।

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 10

।।श्री हरिः।।
8 – अदम्भ

अवस्था उनकी सत्तर वर्ष से ऊपर की हो गयी है - कदाचित अस्सी के लगभग हो। दुबला शरीर है पर्याप्त लम्बा गौर वर्ण, श्वेत केश और अब झुर्रियाँ तो पड़नी ही हैं। सिर उठाकर जिसकी ओर देख लें, सौभाग्य उसका, अन्यथा मस्तक झुका ही रहता है सदा और दृष्टि जैसे अपने पदों से दो पद आगे तक ही सीमित
रहती है।

Kumawat Gopal

मंजिल अभी दूर है

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मील के पत्थर को पढभर लेने से मंजिल नहीं मिलती है
हे पंथ
मंजिल को पाने के लिए कई कोसो का सफ़र तय करना पड़ता है।।
                                             "पंथ" मंजिल अभी दूर है
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