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Ghumnam Gautam

मेरी सौंधी, मेरी करारी है,जल गई जो वही तुम्हारी है
लुत्फ़ ही लुत्फ़ है भरा इसमें,जाली पे जिसने की सवारी है

©Ghumnam Gautam #करारी #सौंधी #लुत्फ़  #ghumnamgautam

Sonam kuril

"अदभुत, अद्वितीय , सौंदर्य से परिपूर्ण , कितना मनमोहक प्राकृतिक दृश्य है , इन् नयनों को शीतललता प्रदान करती ये हरियाली , जहाँ तलक ये दृष्टि जाती है हरियाली ही हरियाली नजर आती है , मिट्टी की सौंधी सौंधी सी खुश्बू जीवन को महकती है , ये नदियाँ ,ये पहाड़ , ये झरनों से गिरता शीतल जल , ये इठलाती नदियां की लहरें ,ये भीनी भीनी फूलों की महक , ये सन्नन सन्नन चलती पवन ,

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"अदभुत, अद्वितीय , सौंदर्य से परिपूर्ण ,
कितना मनमोहक प्राकृतिक दृश्य है ,
इन् नयनों को शीतललता प्रदान करती ये हरियाली ,
जहाँ तलक ये दृष्टि जाती है हरियाली ही हरियाली नजर आती है ,
 मिट्टी की सौंधी सौंधी सी खुश्बू जीवन को महकती है ,
ये नदियाँ ,ये पहाड़ , ये झरनों से गिरता शीतल जल ,
ये इठलाती नदियां की लहरें ,ये भीनी भीनी फूलों की महक ,
ये सन्नन सन्नन चलती पवन ,
मानो रोम रोम थिरकाती है ,"
सोंचकर ही हृदय कितना पुलकित हो उठता है ,
किसी रोज़ छाँव की तलाश में जब तुम घर से निकलोगे  ,
हरी भरी बगिया नहीं , कोसों बंजर जमीं मिलेगी ,
काट रहे हो जो इतनी कुरुरता से वृक्षों को ,
एक रोज़ इसी की छाँव को तरसोगे,
ये वृक्ष हमारी धरोहर है ,
इसे ऐसे तो मत नष्ट करो | "अदभुत, अद्वितीय , सौंदर्य से परिपूर्ण ,
कितना मनमोहक प्राकृतिक दृश्य है ,
इन् नयनों को शीतललता प्रदान करती ये हरियाली ,
जहाँ तलक ये दृष्टि जाती है हरियाली ही हरियाली नजर आती है ,
 मिट्टी की सौंधी सौंधी सी खुश्बू जीवन को महकती है ,
ये नदियाँ ,ये पहाड़ , ये झरनों से गिरता शीतल जल ,
ये इठलाती नदियां की लहरें ,ये भीनी भीनी फूलों की महक ,
ये सन्नन सन्नन चलती पवन ,

Umesh Kushwaha

प्यार आज भी उससे है।

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"प्यार आज भी उससे है"
 प्यार में होना और प्यार से उबरना दो अलग अलग बात है। प्यार में होना यानी अमूर्त हो जाना। फिर आप कहीं इतना खो जाते है, जैसे बारिश की पहली बूंदे मिट्टी पर पड़ती हो तो वो सोंधी सोंधी खुशबू आपके मन को पूरी तरह मोह लेती है या धीरे धीरे आप इसके वस में हो जाते हैं,आप मोहित हो जाते है।
     उस मिट्टी की आवो हवा में आप जीने लगते है,फिर वही रोज़ की आदत में शुमार हो जाता है।आप चाह कर भी उस गोलाई की परिध से बाहर नहीं आ सकते,फिर आपकी दिनचर्या इस 
कदर जकड़ जाती है कि जब तक आप उस सौंधी सौंधी खुशबू को मस्तिष्क में उतार न ले तब तक आप खुश नहीं रह सकते,फिर क्या ये धीरे धीरे आपकी आदत आपका स्वभाव बन जाती है।
     जब कोई चीज़ आपके स्वभाव में आ जाए तो उसे बदलना कठिन होता है लेकिन ये और भी भयावह हो जाता जब धीरे धीरे इसकी कद्र कम होने लगती है। फिर क्या झल्लाहट और अकेलापन इस कदर हावी हो जाता है कि आप हर समय खाली खाली महसूस करने लगते हैं।
     नीरस और बेमन होकर जीना जैसे अंश और हर का कायदा हो,फिर आप उस अंश के ही होकर रह जाते हैं यानी हर चीज के आदी जैसे वो रास्ते,बाजार घूमना - फिरना यहां - वहां आना - जाना।यहां तक कि वहां की हवा भी आप के जहन में बस जाती है, जो कि प्राणवायु है। फ़िर आप इससे उबर नहीं सकते अंत तक चाहे कितना भी धैर्य रख लीजिए क्यूंकि वो वायु प्रणय बनकर आपके दिलोदिमाग से लेकर पूरे शरीर में वास कर रही होती है।
       जब वो अंश आपसे अलग होता है, वो तो यही सोचता है कि वो पूरी तरह अलग हो गया है लेकिन ये सिर्फ उसके ही परिपेछ्या से दृष्टागत है। वो कहीं अलग किसी और के साथ खुश है लेकिन आप उस साथ को इतना जी चुके होते हैं की वो फिर आपको नहीं छोड़ता जो की हर समय आपके साथ होता है और नहीं भी, यही बात सबसे ज्यादा तकलीफ देय होती है।
      वो सारे मंजर फिर याद आते हैं, वो सड़के जहां हम साथ चले थे,वो कचौरी का ठेला फिर पानी पूरी की बात" भैया दही वाली ही देना" और वहीं पास वाली आइस्क्रीम की दुकान से  हर बार तुम जिद करके सिर्फ एक ही आइसक्रीम लिया करते थे,और फिर धीरे धीरे पार्क पहुंच जाते थे।फिर क्या तुम बोलती और मैं सुनता था।
        इतना ही नहीं हर रोज़ तुम्हारे ऑफिस से घर तक छोड़ना, पर हां वो हाईवे वाला पुल जहन में बना ही रहता है, जब तुमने अचानक बाइक रोकने को कहा था और हम कुछ देर रुके थे । तब पहलीवार तुमने हमें "किस" किया था,जो आज भी वो पुल वाला किस याद है जिसे भूलाया नही जा सकता।
        हर वो चीज याद है जो हम साथ में जिये हैं,वो गली - वो मोहल्ले! एक एक पल जो हम बातें करते थे और हां वो रेलवे का ओवरब्रिज कैसे भूल सकता हूं मै वहीं पर तो झगड़ा हुआ था हमारा, तुम उस दिन गुस्से में थी। फिर हमारी कई दिनों तक बात नहीं हुई और न ही मिलना जुलना। उस दिन बहुत कोशिश की थी तुमको समझाने की लेकिन तुमने अकेले ही फैसला कर लिया था।
         तुम्हारे लिए तो आसान था पर शायद आज तक मैं उन चीजों से उबर नहीं पाया हूं,खोजता रहता हूं मै तुम्हे ही उन्ही रास्तों में जहां जहां हम साथ चले थे। पर अब वो गलियां हमें चुभती हैं हवाओं में भी एक अजीब सी चुभन है जो गले ही नही उतरती। लेकिन तब भी उन सारी जगहों को एक बार फिर देख लेना चाहता हूं,मानो मै तुम्हे महसूस के रहा होता हूं जब उन सारी जगहों से गुजर रहा होता हूं चाहे वो तुम्हारे घर की पास वाली गली हो या रेलवे फाटक के खुलने का वो दो मिनट का इंतजार पर आज भी लगता है कि तुम उस पार से कहीं मुझे निहार रही होगी और दौड़कर फिर मेरे पास आना चाहती होगी लेकिन फिर मैं मौन हो जाता हूं तुम्हे खोकर,क्यूंकि मै जीना चाहता था तुम्हारे साथ,जब तुम साथ होती थी तो अच्छा लगता था लेकिन शायद अब तुम्हे मंजूर नहीं था मेरे साथ रहना , वो प्रश्न आज भी मेरे अंदर कहीं उस उत्तर को खोजना चाहता है जिसका जवाब सिर्फ तुम हो।
  मै तुम्हे ढूडना चाहता हूं फिर वही उसी पार्क में की तुम आओगी उसी मेज पर जहां हम साथ बैठा करते थे,आज भी मैं रोज उसी मेज़ पर जाकर अकेले बैठता हूं इसी उम्मीद में कि एक दिन तुम जरूर आओगी। अब तो दिल की धड़कने और तेज़ होने लगी थी क्यूंकि मेरे जाने का यानी इस शहर को छोड़ने का समय कुछ ही दिन और बचा था।
 उस शहर को छोड़ने से पहले मैं हर एक चीज को समेट लेना चाहता था,हर वो लम्हा जी लेना चाहता अब अकेले ही जैसे तुम्हारे साथ जिया था। तुम्हारे न होने का दुख तो था वो अकेलापन लेकिन तुम मुझमें हर वक्त होती थी ऐसा लगता था कि तुम मेरे साथ चल रही हो,कुछ कह रही हो और मैं सुनता जा रहा हूं आज भी उसी तरह पूरी तनमयता से।
     कुछ भी हो ये शहर तो अब जहन में बस गया है वो भी सिर्फ तुम्हारे लिए जिसे अब भूलाया नहीं जा सकता। इश शहर ने हमें बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ सिखाया भी है। अब यहां खोने को कुछ बचा भी नहीं था क्यूंकि आप यहां अपना दिल हार चुके है और उससे बेहद कीमती कुछ हो भी नहीं सकता। 
      इस शहर ने प्रेम करना सिखाया, प्यार में होना सिखाया लेकिन प्यार से उबरना नहीं सिखा पाया जिसकी टीस आज भी चुभ रही है जो शायद अब जीवन पर्यंत रहे क्यूंकि जब कोई प्यार में होता है तो वो फुल स्विंग के साथ  पूरी ईमानदारी और लगन से होता है और फिर जब कोई बीच में ही छोड़ के चला जाए तो फिर बहुत दुखता है इसीलिए कहता हूं प्यार में होना और प्यार से उबरना दो अलग - अलग बात है। प्यार आज भी उससे है।

Pratyush Saxena

बारिश , रेल और मैं काफी दिनों बाद आज स्लीपर में यात्रा करी । यहां खिड़की के करीब बैठके , बारिश को बूँदों को शीशे पर गिरते हुए देखा और फिर अपने हाथ से उन को कैद करने की कोशिश करी । सुबह सुबह वो मिटटी पर गिरी बारिश को बूंदों की सौंधी सौंधी खुशबु मह्सूस करी तो पाया की ऐसी के बंद खिड़कियों ने सहूलियत तो बहुत दे दी है , पर कुदरत के इन लाजवाब चीजों से हमें वंचित कर दिया है । मेट्रो शहर में रहने वाले हम लोग जो बारिश को एक फ़ज़ीहत की तरह देखते हैं , ऐसा लगता है अपनी दिनचर्या के खातिर कितनी खूबसूरत चीज

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 बारिश , रेल और मैं  काफी दिनों बाद आज स्लीपर में यात्रा करी । यहां खिड़की के करीब बैठके , बारिश को बूँदों को शीशे पर गिरते हुए देखा और फिर अपने हाथ से उन को कैद करने की कोशिश करी ।
     सुबह सुबह वो मिटटी पर गिरी बारिश को बूंदों की सौंधी सौंधी खुशबु मह्सूस करी तो पाया की ऐसी के बंद खिड़कियों ने सहूलियत तो बहुत दे दी है , पर कुदरत के इन लाजवाब चीजों से हमें वंचित कर दिया है ।
मेट्रो शहर में रहने वाले हम लोग जो बारिश को एक फ़ज़ीहत की तरह देखते हैं , ऐसा लगता है अपनी दिनचर्या के खातिर कितनी खूबसूरत चीज

Sweety Mamta

शुरुआत हमारे प्यार की है भीनी -भीनी, सौंधी-सौंधी, खुश्बू बरसात की है। ये बरसात नही, शुरुआत ,हमारे प्यार की है। सुनो पिया। जब बरसात की रिमझिम बुँदे बरस रही थी। मेरी धड़कने तुझसे मिलने को बेतहाशा तरस रही थी। मुझे लगा, उन बूंदो की लड़ी में तेरी खुश्बू समाई थी।

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  शुरुआत हमारे प्यार की है भीनी -भीनी, सौंधी-सौंधी, खुश्बू बरसात की है।
ये बरसात नही, शुरुआत ,हमारे प्यार की है।

सुनो पिया।
जब बरसात की रिमझिम बुँदे बरस रही थी।
मेरी धड़कने तुझसे मिलने को बेतहाशा तरस रही थी।
मुझे लगा,
उन बूंदो की लड़ी में तेरी खुश्बू  समाई थी।

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