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Shubham Bhardwaj

Shubham Bhardwaj

नितिन कुमार 'हरित'

फिर से चाहत को हवा देते हैं, आग बुझती है, जला देते हैं । अब मैं आऊँ तो इनकार ना करना मुझको, फिर से कसमों से लाचार ना करना मुझको । अपनी ज़ुल्फ़ें तू हल्की सी झटक सी देना, मेरी उल्फ़त को थोड़ी सी कसक सी देना । याद कर लेना मुझको भी सवालों में कहीं, गुनगुना लेना छिप छिप के ख्यालों में कहीं ।

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फिर से चाहत को हवा देते हैं,
आग बुझती है, जला देते हैं ।
अब मैं आऊँ तो इनकार ना करना मुझको,
फिर से कसमों से लाचार ना करना मुझको ।
अपनी ज़ुल्फ़ें तू हल्की सी झटक सी देना,
मेरी उल्फ़त को थोड़ी सी कसक सी देना ।
याद कर लेना मुझको भी सवालों में कहीं,
गुनगुना लेना छिप छिप के ख्यालों में कहीं ।
इतना काफी है तू चाहत का सिला रख लेना,
मुस्कुरा देना फिर चाहे गिला रख लेना ।।
बात इतनी है, चल फिर से गिला देते हैं...
आग बुझती है, जला देते हैं।
फिर से चाहत को हवा देते हैं,
आग बुझती है, जला देते हैं ।।
#NitinDilSe #NKHarit

- Nitin Kr Harit फिर से चाहत को हवा देते हैं,
आग बुझती है, जला देते हैं ।
अब मैं आऊँ तो इनकार ना करना मुझको,
फिर से कसमों से लाचार ना करना मुझको ।
अपनी ज़ुल्फ़ें तू हल्की सी झटक सी देना,
मेरी उल्फ़त को थोड़ी सी कसक सी देना ।
याद कर लेना मुझको भी सवालों में कहीं,
गुनगुना लेना छिप छिप के ख्यालों में कहीं ।

Deepak Raghuwanshi

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यह सत्य है कि लोहे को लोहे से ही काटा जा सकता है 
और पत्थर से ही पत्थर को तोडा जा सकता है 
मगर हृदय चाहे कितना भी कठोर क्यों ना हो 
उसको पिघलाने को कठोर वाणी कभी कारगर नहीं हो सकती क्योंकि 
वह केवल और केवल नरम वाणी से ही पिघल सकता है
क्रोध को क्रोध से नहीं जीता जा सकता बोध से जीता जा सकता है 
अग्नि अग्नि से नहीं बुझती जल से बुझती है 
समझदार व्यक्ति बड़ी से बड़ी बिगडती स्थित को 
दो शब्द प्रेम के बोलकर संभाल लेते हैं 
हर स्थित में संयम रखो संयम ही आपको कलेशो से बचा सकता हैं
आखों में शर्म रहे और वाणी नरम रहे
तो समझ लेना परमसुख आप से दूर नहीं
 जय श्री राधे कृष्णा

Vinay Shukla

कल्पना###@विनय शुक्ला

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उदास तू उदास मै ये रात भी उदास
बरस रही है बूंद भी,पर बुझती नहीं प्यास
पुकारता है मन सनम तू आ जा मेरे पास
धड़क रहा है दिल अभी, न छूटती है आस
मिलन की है गुजारिशे,उफ्फ कैसी है ये बरिशे 
जिस्म-ओ-जान होठ तक सब कर रहें सिफारिशें
बादलों के मेल से बरस रहीं हैं बूंद ये
तड़प तड़प विरह की रात दिखा रही हैं ख्वाहिशें
बादलों में छिप गया है चाद भी अभी अभी
बढ़ चली है प्यास थी जो अब तलक दबी दबी
आसमां   की बूंद  बुझा रही जमी की प्यास
उदास तू उदास मै एं रात भी उदास
जैसे मिल न पाएगा कभी जमी से पर ये आसमां
वैसे हम जल रहे विरह  ऐसी आस मा
याद तेरी आ गई पर है तेरी तलाश
उदास तू उदास मै एं रात भी उदास
बरस रही है बूंद भी पर बुझती नहीं प्यास
                  
              विनय शुक्ला कल्पना###@विनय शुक्ला

राजन गोत्रा ( समर )

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जाने किसकी दुआओं से जी रहा हूँ मैं 
ज़हर ये ज़िंदगी का रोज़ पी रहा हूँ मैं 
दामने ज़ीस्त तो हमेशा ही से चाक रहा
हूँ पुर उम्मीद इसे फिर भी सी रहा हूँ मैं 
प्यास बुझती भी मेरी तो किस तरह बुझती
तमाम उम्र सराबों में ही रहा हूँ  मैं 
हूँ मुत्मयिन कि अब हश्र कुछ भी हो मेरा
हूँ बेख्याल कि बेमाने जी रहा हूँ मैं
मेरी तारीक ज़िंदगी का कोई जश्न तो हो
कि तीरगी के करीब भी रहा हूँ मैं 
समर से और क्या उम्मीद है ज़माने को
कभी ज़माने का होकर नही रहा हूँ मैं #NojotoQuote

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