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The Urban Rishi
सिर्फ साल ही खत्म हुआ है.. न खत्म हुई.. तुम्हारी नाराजगी, तुम्हारी बेरूखी, और.. न ही खत्म हुआ.. मेरा इन्तजार.. मेरी आस.. ©The Urban Rishi सिर्फ साल ही खत्म हुआ है.. न खत्म हुई.. तुम्हारी नाराजगी.. तुम्हारी बेरूखी.. और.. न ही खत्म हुआ.. मेरा इन्तजार.. मेरी आस..
The Urban Rishi
कितनी महंगी है कवितायें, कैसे तुमको समझाऊँ… कितनी इसमें मधुशाला है, कितनी जागी रातें.. कितनी आहत भाव है इसमें, कितनी अनकही बातें, मोल नही मिलती है आहें, मोल ना मिलती बाहें… कितनी महंगी कविताएं है… ©The Urban Rishi कितनी महंगी है कवितायें, कैसे तुमको समझाऊ… कितनी इसमें मधुशाला है, कितनी जागी रातें.. कितनी आहत भाव है इसमें, कितनी अनकही बातें, मोल नही मिलती है आहें, मोल ना मिलती बाहें…
The Urban Rishi
जिंदगी चलती रही, चलता रहा समय का पहिया, कुछ कही कुछ अनकही, रह गयी बहुत सी बातें, कुछ पढ़ी कुछ अनपढ़ी, रह गयी कई किताबें, जिंदगी चलती रही... #भृगुऋषि ©The Urban Rishi जिंदगी चलती रही, चलता रहा समय का पहिया, कुछ कही कुछ अनकही, रह गयी बहुत सी बातें, कुछ पढ़ी कुछ अनपढ़ी, रह गयी कई किताबें, जिंदगी चलती रही...
The Urban Rishi
"वो आवाजें ज्यादा दुख देती है, जो आस पास से आती है, और अनसुनी रह जाती है..." "विरह की पराकाष्ठा तो तब है, जब पास में बैठा कोई , छूना चाहे, छू ना पाए..." " ये पीड़ा, विरह, खुशबू, महसूस कर सकता हूँ, इससे ये साफ है मीलॉर्ड, मैं प्रेम में जीता हूँ " #भृगुऋषि ©The Urban Rishi #Mic
The Urban Rishi
मैं तस्वीरों से बातें नही करता, मुझे जिंदा लोगो से बातें करना अच्छा लगता है, मुझे पसंद है उत्तर-प्रतिउत्तर मुझे एकतरफा बातें करना, बोर कर देता है, कभी कभी मैं खुद से बातें कर लेता हूँ, सच कहूँ तो तुम्हारी कई तस्वीरें, मेरे अंदर भी है, तुमसे मिलना मेरे लिए, बस आंखे बंद करना है।। #भृगुऋषि ©The Urban Rishi मैं तस्वीरों से बातें नही करता, मुझे जिंदा लोगो से बातें करना अच्छा लगता है, मुझे पसंद है उत्तर-प्रतिउत्तर मुझे एकतरफा बातें करना, बोर कर देता है, कभी कभी मैं खुद से बातें कर लेता हूँ, सच कहूँ तो तुम्हारी कई तस्वीरें, मेरे अंदर भी है,
The Urban Rishi
ये पत्र उन 'रिश्तों के नाम', जिन्हें मैं कोई नाम न दे पाया, या जिन्होंने कोई नाम ना स्वीकारा... कुछ रिश्तें जुगनुओं जैसे होते हैं, जो सूनी-अंधेरी राहों में ही दिखते हैं, जैसे ही उजाला होता है, कही गुम हो जाते हैं... उन 'रिश्तों के नाम' कुछ रिश्तें राह चलते भर के होते हैं, जो किताबें समेट कर उठाते हैं, मुस्कुराकर आगे बढ़ जाते हैं, उन 'रिश्तों के नाम' ये प्रेम पत्र है। ©The Urban Rishi ये पत्र उन 'रिश्तों के नाम', जिन्हें मैं कोई नाम न दे पाया, या जिन्होंने कोई नाम ना स्वीकारा... कुछ रिश्तें जुगनुओं जैसे होते हैं, जो सूनी-अंधेरी राहों में ही दिखते हैं, जैसे ही उजाला होता है, कही गुम हो जाते हैं... उन 'रिश्तों के नाम'
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