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Anand Kumar Ashodhiya
किस्सा रसकपूर - रागनी 18 किरशन कुँवरी मेवाड़ी का, ड्योळा ल्यो स्वीकार पिया रजपूतां में धूम माचज्या, होज्या जय जयकार पिया नवयौवन भरपूर किरषणा, सै भीमसिँह की जाई महाराणा नै बख्त बिच्यारा, करी मारवाड़ सगाई मारवाड़ का राजा मरग्या, ना ब्याही ना अपणाई जयपुर ड्योळा भेजकै राणा, करणा चाहवै बिदाई सोळह साल की कुँवारी कन्या, करल्यो अंगीकार पिया बणके जमाई मेवाड़ों का, थारी दुगणी ताकत हो ज्यागी मारवाड़ के मानसिँह के, जी नै आफत हो ज्यागी जयपुर सँग मेवाड़ उदयपुर, एक न्यारी स्यास्त हो ज्यागी मानसिँह का मान मारकै, थारी ऊँची रयासत हो ज्यागी मारवाड़ जीतण का सपना, करल्यो नै साकार पिया जोधपूर महाराज मानसिँह, किरषणा पै नजर गड़ा रहया सै सेना का दम्भ दिखा दिखा कै, बेमतलब बात बढ़ा रहया सै चित्तौड़गढ़ किले के ऊपर, पिण्डारी फौज चढ़ा रहया सै लड़की दे ना हत्या कर उकी, बेहूदी शर्त अड़ा रहया सै राज, धरा और औरत की इज्जत, वो के जाणै बदकार पिया ड्योले ऊपर हमला करकै, उनै जयपुर पै हमला बोल दिया कुँवराणी का ड्योळा रोककै, उनै जहर कुफ़्र का तोल दिया पहला हमला खुद करकै उनै, जँग का रस्ता खोल दिया आनन्द शाहपुर नै कथना में, ज्ञान का सागर घोल दिया मेरी बात पै अमल करो करूँ, हाथ जोड़ दरकार पिया गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिय ©Anand Kumar Ashodhiya #किस्सा_रसकपूर #रसकपूर #हरयाणवी
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किस्सा रसकपूर - रागनी 17 ले दादा मैं उल्टी आग्यी, मन्ने अपणा फ़र्ज़ निम्भाया जुग जग जियो भूरदेव तन्नै, सत्त का बीड़ा ठाया मैं भेष बदलकै दर दर घूमी, ना साजन दिए दिखाई सारे शहर में रुक्का पड़ रहया, राजा के गमी छाई दुख चिन्ता में गात सूखग्या, दुश्मन करैं चढ़ाई राजकोष कति खाली होग्या, हो रही झोझो माई दे दे चौथ बावळा होग्या, इब कित तै आवै माया मुसलमान पिण्डारी डाकू, दुराचारी निर्भय हो रहया सै जागीरदार किसानां के म्ह, रोष घणा भय हो रहया सै कोए कहै अन्यायी राजा, नशे गफलत के म्ह सो रहया सै जयपुर भूप शर्म के मारे, सिर धरती के म्ह गो रहया सै अफरा तफ़री मची चौगिरदे, इसा प्रजा में भय छाया दूणी ठाकुर फतेहकंवर संग, मिलके खेल रचाग्या जगत भूप के कान भरे मेरै, झूठी तोहमन्द लाग्या रतनसिंह राणी का भाई, उनै मेरा यार बताग्या राजद्रोह का बणा मुकदमा, वो मेरी कैद कराग्या कान का कच्चा जगत भूप, मेरी कैद का हुक्म सुणाया दबया खजाना पुरखों का इब, उसकी टोह पड़ रही सै बियाबान कितै जंगळ के म्ह, धन माया गड्ड रही सै ढो ढो अपणी घमण्ड गाँठड़ी, सब दुनिया सिड़ रही सै छाप कटैया कलाकारां में, एक नई जंग छिड़ रही सै कहै आनन्द शाहपुर निस्तरगे, ना जाता नाम कमाया गीतकार : आनन्द कुमार आशोधिय ©Anand Kumar Ashodhiya #किस्सा_रसकपूर #रसकपूर #हरयाणवी
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