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S. Bhaskar
बस बंद कर अब मन्द जन को स्वाभिमान सीखाना, बंद कर अब अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। यहां लोगों में दासता का ही राग विद्यमान है, यहां दिखता चाटुकारिता का ही प्रमाण है, जो मिट्टी को सोना व राख को भी बनाते महान है, ये तो बिना तरकश के बिकते हुए कमान है, छोड़ दे अब इनकी तू अस्मत को बचाना, बस बंद कर अंधेरे को लालटेन जलाना। इन जड़ बुद्धि ने खुद को गुलामी में जकड़ रखा है, यहां बस मूक मुखड़ा और लंबी जबान कर रखा है, ये ना सुधरेंगे हमने इनको करीब से परखा है, गुलामी की जंजीरें इनके प्रिय मित्र और सखा है, बस छोड़ दे ये नहीं चाहते सही रास्ते पर आना, बंद कर अंधेरे रास्तों में लालटेन जलाना। तू खुद अपनी नजरों में गिरता चला जाएगा, पर इनमें कोई खास अंतर ना ला पाएगा, चंद पल तो सुधरेंगे फिर वही कहानी तू दोहराएगा, तेरे अकेले से कभी बदलाव सामने नहीं आएगा, तू बस बंद कर इन मूक लोगों को अमूक बनाना, बस बंद कर लोगों के खातिर अंधेरे में लालटेन जलाना। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों
विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #लालटेनजलाना
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दुनिया में उजाला फेहलाना , क्या इतना आसान है ऐ दोस्त , तो अक्सर उस गरीब के झोपड़े में अँधेरा और उस अमीर के बंगले में रोशनी क्यों होती है जो अपनी तनख्वा दारु में उड़ा देता है , उन लोगो तक ये रोशनी क्यों नहीं पहुँच पाती जो उस रोशनी से अपने जीवन को रोशन करना चाहते है । विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों
विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #लालटेनजलाना
read moreVibha Katare
काली अंधेरी रात का सफर, शहर से दूर वियाबान जंगल के बीच से जाती सड़क, तेज आंधी और तूफान, अचानक बिगड़ गई मेरी कार, अब, मैं , मेरी कार, तेज बारिश , घना जंगल और ऊदबिलावों की आवाज़.. कुछ कदम जब मैं चली, आगे एक पुरानी हवेली दिखी.. हवेली से किसी के कदमों की आवाज़ आना, कम्बल में खुद को लपेटे उस परछाईं का मेरी तरफ आना, फिर अपने काँपते बूढ़े हाथों से लालटेन जलाना.. उफ़ !! ये ख़ौफ़नाक कल्पनाएँ.. अब मेरे कमरे की खिड़की से सटी अधबनी इमारत में भूत दिखना ही बाकी है मुझे। विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों
विष्णु खरे हिंदी के महत्वपूर्ण कवि, आलोचक और अनुवादक थे। 9 फरवरी 1940 को जन्मे विष्णु खरे का जीवन पत्रकारिता और साहित्य सृजन को समर्पित रहा। साहित्य अकादमी में उपसचिव के पद पर रहे। लेकिन इन सब में से वे कवि रूप में सर्वाधिक प्रसिद्ध हुए। आधुनिक हिंदी कविता में शमशेर, मुक्तिबोध, रघुवीर सहाय, केदारनाथ सिंह आदि कवियों के बाद अपने समय के सब से महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक हैं। अनुवादक होने के नाते हिंदी के साथ साथ पश्चिमी भाषा के साहित्य पर भी उन की गहरी नज़र थी। 'हम चीख़ते क्यों नहीं ' जर्मन कवियों #Collab #yqdidi #YourQuoteAndMine #कल्पना #हवेली #लालटेनजलाना #रातकासफ़र
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