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Anamika Nautiyal
कुछ अधूरे सपनों का बोझ उठाए जा रही हूँ, ख़ामोश हूँ पर हज़ारों कहानियाँ कहे जा रही हूँ। गुमनाम से किसी डरावने साए की तरह, घनघोर बियाबान में धीरे-धीरे सिमटे जा रही हूँ। तमाशबीन और दर्शक है लोग यहाँ के, थोड़ा सा मैं भी तमाशा किए जा रही हूँ । दाम लगता है आँसुओं का इस जहाँ में, धूल से बनी "अनाम" अब धूल होती जा रही हूँ। नमस्ते लेखकों❤ तैयार हो हमारी "काव्योगिता" के पहले चरण के लिए?! हमारा पहला पड़ाव एक अनुक्रमिक कविता है। इस कविता का प्रारूप (format ) कुछ इस प्रकार रहेगा:
ujjwal pratap singh
ऐ जरूरत अब तू थोड़ा मेरे हालात देख न मिली नौकरी,ना ही कोई बड़ा धंधा मैं अपने परिवार की चौखट की रेखा में हूँ बंधा मेरे अपने गुजर जाएंगे एक न एक दिन दिल पर पत्थर रख उनको देना पड़ेगा कंधा ये दुनिया भी इतनी कोमल नही है यहाँ नही कोई दिखता रास्ता सीधा कोई यहाँ बहुत महकता,तो कोई फल देता है यहाँ पानी देना पड़ता है उगाने के लिए पौधा मन खुश होता है तो जरूरत का सामान भी मिलता है पर महँगे समान देखकर खाना नही लगता सुधा कुछ मेरे भी अरमान किसी को कुछ खिलाने का कोई तो दे मेरा साथ,कोई तो दे कोई सुविधा कुछ सड़क पर काटे,अपने जरूरतों के आगे यहाँ हर बच्चा डरा, कैसे खत्म होगी यह दुविधा माँ खाना बनाती कई लाजवाब व्यंजन फिर भी माँ क्यों खाती है रोटी आधा यहाँ बेईमान बढ़ रहे तेज़ी से आगे और यह कमज़ोर पर निशाना साधा यहाँ जनता को मेहनत से बेवकूफ बनाया है यार मेहनत को यह गधा भी करता है •निम्नलिखित हैशटैग का प्रयोग करना अनवार्य है। •#rzकाव्योगिता3 •#rzकाव्योगिता •#rzhindi •#yqrestzone कोई प्रश्न या उलझन हो तो कॉमेंट कर पूछ सकते हैं।
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