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Anand Dadhich

सृष्टि के मापदंड

ये जाति है की जाती नही,
युगों से यह बलखाती नही,
देव दैत्य का अंतर यथावत्,
बात क्यों समझ आती नही।

भैंस कभी चमचमाती नही,
चिंटी हाथी कहलाती नही,
जमीं आसमां अंतर विधिवत्,
गधों को रोटी भाती नही। 

बिन ऋतु कोयल गाती नही,
बिन सूरज भोर आती नही,
कायनात का अंतर यथावत् ,
उल्लू को किरणें सुहाती नही।

नदियाँ मिज़ाज दिखाती नही,
मछलियाँ सागर सुखाती नही,
सृष्टि के मापदंड करों स्वीकृत,
कुदृष्टियाँ सृष्टि रचाती नही।

कवि आनंद दाधीच । भारत ।

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Anand Dadhich

कलम के सिपाही- एक कविता

जाँच परख कर रचे जो नेक विचार,
आवाज उठाये जब हो अत्याचार,
हर दौर में रहे होकर जो निर्भीक,
ऐसे कलम के सिपाही हो तैयार। (2) 

असत्य, झूठ की गिरा दे जो दिवार,
शब्दों के संगम से जीते जो संसार,
हर डगर पर चले होकर जो निडर,
ऐसे कलम के सिपाही हो तैयार । (2)

बोध रचे जो करे समाज सुधार,
लेख लिखे जो मिटा दे अंधकार,
हर कागज पर बहे होकर जो निर्भय,
ऐसे कलम के सिपाही हो तैयार। (2)

गीत रचे जो गाये सबके परिवार,
अर्थ रचे जो सबको दे सम अधिकार,
हर कविता को गाये होकर जो प्रसन्न, 
ऐसे कलम के सिपाही हो तैयार।(2)

कवि आनंद दाधीच 🇮🇳

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Anand Dadhich

"बरखा बादल संवाद"

बादल ने बरखा को कान में बात बताई,
लज्जा की लाली संग बरखा रानी शरमाई।
हवाओं ने पूछा, अरे क्या क्या बात हुई.. 
बरखा रानी के मुख पर मुस्कान चढ़ आई।

धीरे से बादल चले तो बरखा घबराई, 
लज्जा की लाली संग बरखा ने ली अंगड़ाई। 
डालियों ने पूछा, अरे क्या क्या बात हुई..
बरखा रानी के तन में घुली तरुनाई।

बादल जो गरजे तो बरखा थरथराई,
लज्जा की लाली संग अब बरखा झरझाराईं। 
बरखा बादल बोले अब प्रेम बरसायेंगे..
शजर, सरोवर, सागर ने आस जो लगाई।

कवि आनंद दाधीच, बेंगलूरु भारत🇮🇳

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#baarish

Anand Dadhich

तय है कि एक दिन तेरा ये सफर समाप्त होगा,
अपनों में, अनजानों में व्यापक मौन व्याप्त होगा,
रह जायेगी तेरी दौलत, तेरी भूख व तस्वीर,
क्या तुझे याद रखने को इतना पर्याप्त होगा? 

कवि आनंद दाधीच, 'दधीचि' 🇮🇳

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Anand Dadhich

जब जब बात चुनाव की चली, तो लूट नजर आई,
जब जब बात एकता की चली, तो फुट नजर आई,
यहाँ किसी को मतलब नहीं राष्ट्र निर्माण से आनंद,
जब जब वोट पड़ा, खुदगर्जी भरी चूक नजर आई!

कवि आनंद दाधीच,भारत

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Anand Dadhich

*अनसुलझे प्रश्न*

कुछ...
अपेक्षित,
प्रशिक्षित,
प्रतीक्षित,
अनसुलझे प्रश्न है...।
  जो उत्तर की तलाश में..
  भावित,
  प्रमाणित,
  लिखित,
  हित,
  अहित,
  परहित,
  आशंकित,
  संकलित,
  संचालित,
  संक्षिप्त,
  आक्रमित,
  शासित,
  पीड़ित,
  वांछित,
  वंचित,
  उपेक्षित,
  होकर कहीं ना कहीं खड़े है..।
उत्तर से तत्पर होने...
प्रभावित।

कवि आनंद दाधीच, बेंगलूरु , भारत

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Anand Dadhich

छेड़ती है मुझे वह धुंधली सी परछाई,
मानों,साँझ संवेरे होती हाथापाई,
मन मस्तिष्क में आशंकाओं की उथल पुथल है.. 
कैसे करूँ मैं स्वप्निल राहों की अगुवाई।

ग्रीष्मकाल की नींदों से भटकी अंगड़ाई,
स्वेद की चिपचिप ना देती जोश तरुणाई,
रग रग में अभिलाषाओं की उथल पुथल है.. 
कैसे करूँ मैं कठिन राहों की अगुवाई।

लगे खाली सी बहती शीतल पुरवाई,
साँसों में भरे ना क्रांति की सुगबुगाई,
जोश होश ओ आशाएँ सब उथल पुथल है.. 
कैसे करूँ मैं प्रेम प्रतिज्ञा की अगुवाई। 

छेड़ती है मुझे वह धुंधली सी परछाई। 
--------
कवि आनंद दाधीच, भारत

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Anand Dadhich

(राधा बंसी धुन के इंतजार में..)

जमुना के तट पर..मैं आज फिर आई,
श्याम ने अभी तक..मुरली ना बजाई, 
याद करूँ जो छवि खड़ी खड़ी तट पर.. 
दिखें चहुँ ओर..श्याम की ही परछाई। 

सुंदर नीर में..श्याम की छवि समाई,
देख करने लगी..जमुना से लड़ाई,
श्याम तो है मेरे और सिर्फ मेरे..
प्रेम की बातें..जोर से समझाई।

सुन बात मेरी..जमुना मधुर मुस्काई,
कलकल झलझल कर वो मुझे बुलाई,
बोली श्याम तेरे.. तेरे ही रहेंगे..
देखों श्याम ने येही धुन है बजाई।

स्वरचित
कवि आनंद दाधीच बेंगलूरु,भारत

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Anand Dadhich

पहले ओहदे, घराने, 
खानदान होते थे..,
अब मकानों पर सिर्फ 
'खुरदरे नाम' होते है।

-कवि आनंद दाधीच

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