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Krish Vj
जैसे-जैसे हम मनुष्यों को स्वार्थ का नशा चढ़ता जा रहा है, हम अपनी राह में आने वाले हर कांटे को हटा कर फेंक दे रहें हैं। चाहे वह सजीव है या निर्जीव। स्वार्थ के वशीभूत होकर हम अपने माँ बाप तक को भूल जाते हैं। इसी श्रृंखला में हम "पेड़" उनको भी मोत के घाट उतार देते हैं ( काट देते हैं ) । यह सही नहीं हैं, जीवन उनमे भी हैं जीव हत्या प्रभु की हत्या समान जो सर्वथा पाप हैं। जब हमें ठोकर लगती हैं तब हमें इनकी याद आती हैं, या कहूँ जरूरतों के वक़्त हम याद करते हैं । अभी कोरोना महामारी
jagruti vagh
🌳🌳 हा,काट लो ना वृक्षों को हमें तो आराम करने के लिए फर्नीचर चाहिए , घर के सुशोभन में चार चाँद लगाने वाले फर्नीचर चाहिए पर दुख की बात तो यह है कि हमें हमारे अस्तित्व के लिए जरूरी अॉक्सिजन नही चाहिए,,| अगर अभी आराम करने के लिए वृक्ष काटोगे तो आगे चलकर उनसे भेट स्वरूप प्रदान होने वाले जीवनदायी अॉक्सिजन के लिए तड़प तड़प कर मरोगे,,| जीवन ढूंढने के लिए मंगल जैसे ग्रहों पर संशोधन जारी है,क्यों पृथ्वी की तरह वहाँ जाकर भी प्रकृति माता के अस्तित्व पर प्रहार करना है क्या? अरे, हम लोगों से पृथ्वी के प्रदूषण
भाग्य श्री बैरागी
अपनी जड़ों से बाॅंधा जिसने किनारा, पग-पग धरा बचा जिसने रोकी धारा। कृपया अनुशीर्षक में पढ़ें। _____________________________________________ आइए लिखते हैं #ख़यालोंकीउथलपुथल ______________________________________________ 🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳🌳 जब बोया था बस बीज ही एक अंकुर में जीवन था, पानी से गल जायेंगे, धूप से जल जायेगें कहता लाचारा।
अभिलाष सोनी
ऐ इंसान तू क्या इस प्रकृति का विकास करेगा। तुझको तो मैंने देख लिया, तू हरपल ही विनाश करेगा। तेरे जरूरतें कभी पूरी ना होंगी, तू न कभी विश्वास करेगा। तुझको तो मैंने देख लिया, तू हरपल ही विनाश करेगा। अर्थात आज हम जो भी दौर देख रहे हैं, वो हमारी, आपकी, मानव जाति की विकृत सोच, असंतोषी प्रवृत्ति एवं प्राकृतिक संसाधनों के असीमित दोहन का नतीजा है। हम अपनी सुविधाओं, लालसाओं की पूर्ति के लिए ना केवल प्राकृतिक संसाधनों का असीमित दुरूपयोग कर रहे हैं अपितु हमारी इस प्रवृत्ति के कारण प्राकृतिक संतुलन बिगड़ रहा है। जहाँ पहले कभी जंगल होते थे वहाँ आज या तो खाली मैदान, रेगिस्तान या ऊँचें मकान हैं, तो निश्चित रूप से ऐसी परिस्थिति में प्रकृति का संतुलन बिगड़ता है, जिसके फलस्वरूप वातावरण परिवर्तन, ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र का जलस्तर बढ़ना, शुद्ध प्राणवायु की कमी इत्यादि विकराल रूप देखने को मिल रहे हैं। वनों का अत्यधिक दोहन के कारण वहाँ रहने वाले पशु पक्षियों के आवास की कमी के कारण वो अक्सर गांवों या शहरों की तरफ जा रहे है जहाँ मानव वन्यप्राणी द्वंद में हमेशा ही उन्होंने अपनी जान गंवाई है। पक्षियों की संख्या में कमी के कारण कीट पतंगों, टिड्डियों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई जिसे कम करने के लिए हमे हवा में भी ज़हर घोलना पड़ा, जिससे टिड्डियाँ तो कम हुई लेकिन मानव जीवन भी प्रभावित हुआ। कब तक हम प्रकृति से इस तरह छेड़छाड़ करते रहेंगें, आपका, हमारा एवं विश्व के हर एक मानव का नैतिक कर्तव्य है कि वो प्रकृति एवं प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण करें। आज तक जितना अपने प्रकृति का दोहन किया है उसका कर्ज़ आपको ही उतारना है तो आइए हम सब प्रण ले कि प्रतिवर्ष हम कमसे कम 1 पेड़ लगाएंगे और उसे अपने जीवन पर्यंत तक बचाएंगे। सही मायने में ये हमारी प्रकृति के प्रति सच्ची जबाबदारी कहलाएगी।
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