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Ripudaman Jha Pinaki

उड़ानें  नई  पंछियां  भर  रहे  हैं
हवा का बिना समझे रुख़ लड़ रहे हैं ।

पता कुछ नहीं है फ़क़त जोश है बस
बुझी  बातियों  में  अगन  भर  रहे हैं।

नये  पर  भरेंगे  ही  परवाज़ ऊंची
नया है अभी जोश दम भर  रहे  हैं।

हकीकत किसी को पता ही नहीं है
मगर बात अपनी सभी कह रहे हैं।

गए  भूल  बातें पुरानी अभी सब
नई बात पर राय सब रख रहे हैं।

नहीं झूठ सच वह समझ पा रहे हैं
मगर भेड़ की चाल सब चल रहे हैं।

तमाशा शुरू कर मदारी छुपा है
गुलाटी  जमूरे  नये  भर  रहे  हैं।

समझ पा रहे हैं नहीं चाल उनकी
इशारों पे जिनकी सभी चल रहे हैं।

मिली चोट हाकिम से पहले भी लेकिन
शिकायत मगर आज सब कर रहे हैं।

मिलेगा  दग़ा  फिर  उन्हीं  रहबरों से
बग़ावत वो जिनके लिए कर रहे हैं।

सभी नासमझ हैं 'पिनाकी' कहे क्या
ग़लत  रास्तों  पर  सभी  चल  रहे  हैं।

रिपुदमन झा 'पिनाकी'
धनबाद (झारखण्ड)
स्वरचित एवं मौलिक

©Ripudaman Jha Pinaki #बग़ावत

Maneesh Ji

............................................................................. 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 .🖤 मैं #ख़ुदा कों ख़ुदा नहीं ,, तुझे ही ख़ुदा #समझ #बैठीं #मगर तुझे तों #मालूम नहीं ,, मैं तेरे #ख़ातिर ही क्या कर बैठीं #लाख समझाया मैंने इस #दिल को ,, मगर ये #मानता कहां हैं #बग़ावत

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Mr. MANEESH ............................................................................. 

🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 . 🖤 .🖤


मैं #ख़ुदा कों ख़ुदा नहीं ,, तुझे ही ख़ुदा #समझ #बैठीं
#मगर तुझे तों #मालूम नहीं ,, मैं तेरे #ख़ातिर ही क्या कर बैठीं
#लाख समझाया मैंने इस #दिल को ,, मगर ये #मानता कहां हैं

Roman Jain

phir mulakat hogi kbhi.

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तुमसे लड़ाई का सिलसिला ये सलामत रहना चाहिए. 
हमारे तुम्हारे दरमिया ये बग़ावत रहना चाहिए!

कोई उम्मीद नहीं,"मुहब्बत"है तुमसे. 
तुमसे लड़ाई,सिलसिला,सलामती,बग़ावत और मुहब्बत "आज भी"ऱहना चाहिए!!! phir mulakat hogi kbhi.

ADITYA KUMAR

आज की फ़िजा में मोहब्बत कि जगह अदावत ने ख़रीदली,
इंसान ने इंसानियत की क़ीमत लगाकर मज़हबी नफ़रत ख़रीदली;

सोने की चिड़िया के कुबेरख़ानों से कारोबारियो ने दौलत समेटली,
बची जो दौलत थी सियासी ठेकेदारों ने जनता से छीन कर समेटली;

जिस औरत कि कुर्बानियो से नस्लों की पैदाइश होते आई है आज उसकी ही ईज्ज़त सरे सामाज बेचदी,
लालच और गुरूर का सहरा पहने जल्लादों ने अपनी रूह को बेज़मीर कर शर्म और इंसानियत बेचदी;

दौलत लुटने वालों ने देशद्रोह कर हुकूमत की अदालत ख़रीदली,
जनता-ए-मुल्क़ का भरोसा तोड़कर बेशर्मो ने बग़ावत ख़रीदली;

सच्चाई और इंसाफ की परवाह तो आज चंद लोगों के ज़मीर में है,
आज "शकुनि" ने हुकूमत में सबको "संजय" बनाकर बग़ावत शान-ओ-शिद्दत से ख़रीदली ।

आदित्य कुंवर #love #shayari #poetry #hindi #urdu #reality


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