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Arsh Ansari
हाँ बाँझ हूँ मैं! बता इसमें क्या खता है मेरी? तूने ब्याह किया मुझसे नही गलती कोई तेरी। ग़र बच्चा न हो, तो क्या घर! घर नहीं होता है? फ़िर तू क्यों उदास घूमता, और दिल ही दिल में रोता है। एक अम्मा है! जो दिन रात बस बच्चा-बच्चा चिल्लाती है, मैं भी एक औरत हूँ, यह बात क्यों वो भूल जाती है? नहीं कुछ हाथ में मेरे! तुझे बाप का सुख़ न दे पाऊँगी, ग़र तू लाना चाहे, ले आ सौत मेरी, में एक आँसू न बहाऊँगी। जा दी आज़ादी, अब कर ले तू अम्मा की वो मुराद भी पूरी, माँ तो न बन पाई, शायद आंटी तो बन ही जाऊँगी। लेकिन जान ले एक बात मेरी, दिल मेरा भी रोता है, बाँझ होने का ताना, आकार जब हर कोई देता है। शादी मेने तुझसे की, और जान तू मुझको कहता है, फ़िर क्यों समाज की सुनकर तू, गुमसुम सा रहता है। अब सब पहले जैसा नही लगता साहिब, रिश्ते में लग गई चिंगारी, माफ़ करना! मैं नहीं ला पाई तेरे घर में बच्चे की किलकारी। अच्छा सुनों, कहीं से पता चले, तो ज़रूर बताना हाँ मानती हूँ, बाँझ तो हूँ मै! पर इसमें क्या खता है मेरी।। एक सच यह भी, किसी की भावनाएं इतनी बड़ी नही होती की सब भूल जाएं, लोग माने या न माने बच्चे खुदा की ही देंन होते है। han banjh hun main isme kya khata hai meri, tune byah kiya mujhse, nahi galti koi teri. bacha na ho, to kya ghar, ghar nhi hota hai, phir tu kyu udaas ghumta aur dil hi dil me rota hai, ek amma hai jo din rat bacha bacha chillati hai, me bhi ek aurat hun, ye kyu wo bhul jati hai, nahi hath me mere, ki tujhe baap ka sukh de pau,
एक सच यह भी, किसी की भावनाएं इतनी बड़ी नही होती की सब भूल जाएं, लोग माने या न माने बच्चे खुदा की ही देंन होते है। han banjh hun main isme kya khata hai meri, tune byah kiya mujhse, nahi galti koi teri. bacha na ho, to kya ghar, ghar nhi hota hai, phir tu kyu udaas ghumta aur dil hi dil me rota hai, ek amma hai jo din rat bacha bacha chillati hai, me bhi ek aurat hun, ye kyu wo bhul jati hai, nahi hath me mere, ki tujhe baap ka sukh de pau,
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यह दिसम्बर जो आया, अदरक वाली चाय की याद आई, वही कुछ दूर, किसी की इन सर्दी की रातों ने नींद उड़ाई। दिसम्बर और सर्दी आई, साथ गाजर का हलवा है लाई, वहाँ ठण्ड से ठिठुरते बच्चे की मौत ने सारी भूख मिटाई।। इस दिसम्बर और सर्दी ने आलस्य और नींद खूब बढ़ाई।। वहाँ वो सोचते गर्मी ही थी अच्छी, ये कम्बख्त सर्दियां क्यों आई।। #कुछ_छूट_गया #decemberreminders #feelings #emotions #yqbaba #yqdidi #yqtales #yqbhaijan
Arsh Ansari
वो दिसम्बर का महीना था! क्या दिसम्बर का महीना? हाँ हाँ वो दिसम्बर का ही महीना था। तुम थे मैं था, और सर्द-सर्द सा मौसम था।। वो खुली ज़ुल्फ़ें थी या काले-काले जाल थे। वो होंठों की लाली और वो सुर्ख तेरे गाल थे।। कितने बहाने बनाकर, मिलने जब तू आई थी, वो अपने हाथों से बना हलवा भी तो लाई थी।। वो सूरज की किरणों सी प्यारी, तेरी बाते थी। कैसे बयां करूँ! क्या हसीन वो मुलाकाते थी? हाँ यारो वो दिसम्बर का ही महीना था।। wo december ka mahina tha.. kya december ka mahina? han han wo december ka hi mahina tha. tum the me tha, aur sard sard sa mausam tha.. wo khuli zulfe thi ya kale kale jaal the. wo hontho ki lali aur wo surkh tere gaal the. kitne bahane banakar, milne jab tu aayi thi. wo apne hatho se bana, halwa bhi to lai thi.
wo december ka mahina tha.. kya december ka mahina? han han wo december ka hi mahina tha. tum the me tha, aur sard sard sa mausam tha.. wo khuli zulfe thi ya kale kale jaal the. wo hontho ki lali aur wo surkh tere gaal the. kitne bahane banakar, milne jab tu aayi thi. wo apne hatho se bana, halwa bhi to lai thi.
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