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Sandeep Sati
तन्हाई और तन्हा हो गयी भलाई कि वो डाँट जब सदियों के लिए सो गयी परवाह, जिस दिन बाप कि खो गयी तन्हाई और तन्हा हो गयी ©Sandeep Sati #दोटूक
Sandeep Sati
थका अकेला, सबने धकेला आज रंग मेरा अंग अंग, मुझे गुलाल कर दे, मुट्ठी भर कर डाल, नारंगी हरा और लाल रंगों से सारा भर दे मुझे गुलाल कर दे, बेरंगी चाहत है, किस्मत से आहात है पर भरा मेरी भी मुट्ठी में है तू बस आगे गाल कर दे मुझे गुलाल कर दे, चाहत बस तेरी ही थी, तेरी ही है उम्मीद बस तेरी ही थी, तेरी ही है बेरुखीयों को हटा चाहत कि ढाल कर दे मुझे गुलाल कर दे, ©Sandeep Sati #Holi #दोटूक
Bharat Bhushan pathak
प्रचंड ठंड भरी घमंड मार्ग क्यों यहाँ खड़ी। हटे नहीं डटे रहे लगे यहाँ अभी लड़ी।। अजीब रंग ढंग भी अहं लिए सदा पड़ी। उमंग मन रखे छुए दिखे यहाँ सदा अड़ी।। ©Bharat Bhushan pathak #Grayscale #जीवन#lifestory#untold#motivational#nojotohindi#nojotopoetry#दोटूक#andaazebayaan#winter प्रचंड ठंड भरी घमंड मार्ग क्यों यहाँ खड़ी। हटे नहीं डटे रहे लगे यहाँ अभी लड़ी।। अजीब रंग ढंग भी अहं लिए सदा पड़ी। उमंग मन रखे छुए दिखे यहाँ सदा अड़ी।।
Sandeep Sati
किस्से वो बचपन वाले गेम में जब कॉइन थे डाले किस्से वो बचपन वाले कॉपी पर कवर, वो ख़ुशबु नयी किताबों की फ़िर क्या बनना है? दुनिया वो ख़्वाबों की दिन थे वो मतवाले किस्से वो बचपन वाले नागराज, पिंकी, ध्रुव कमांडो और चाचा वो पढ़ने का प्रेम था कितना साचा नहीं भुलाये भूलते वो दिन लड़कपन वाले किस्से वो बचपन वाले ©Sandeep Sati #दोटूक
Sandeep Sati
तलाक! तलाक! तलाक! सब कुछ बदल गया, क्या बताऊँ कैसे बताऊँ हर सपना जल गया तलाक! तलाक! तलाक! अरमा थे ज़िन्दगी के जीते जीते मर गया तलाक! तलाक! तलाक! और हर सपना बदल गया ©Sandeep Sati #दोटूक #तलाक
Sandeep Sati
सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ बस मैं हूँ, तुम हो अपनी ही साँसों के दरमियाँ चल हम चलते हैं, बादल, झरने, तितली पकड़ने हाथों से उड़ फ़िर हाथों में बैठ तितली खेले जहाँ सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ लकड़ी उठाएंगे चूल्हा चढ़ाएंगे मिट्टी के बर्तन में खाना पकायेंगे सब पूछेंगे वो दो पागल गए कहाँ सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ चाँदी सी नदी, सजी हो चाँद के श्रृंगार से खिल जाएँ होंठ तेरे मेरे होंठों के प्यार से सिमटी हो तू मुझमें पूरा तारों के उस गाँव में तेरी पीठ पर फ़िर सीधे बादल टकराएँ जहाँ सबसे निकलकर चल हम दोनों चलते हैं वहाँ बस मैं हूँ, तुम हो अपनी ही साँसों के दरमियाँ ©Sandeep Sati #दोटूक
Sandeep Sati
कहता है दुख ही सुख का यार है वो खत्म होकर, फ़िर लड़ने को तैयार है ना बिस्तर है ना जरुरत उसे सिरहाने की ज़िद्दी है वो ज़िद कर बैठा है कुछ पाने की ©Sandeep Sati #दोटूक
Sandeep Sati
कुछ तो हवाएँ ज़हरीली हैं सती पल पल मर रहे हैं ज़िंदा लोग अहसास बस ख़ुद के ही ज़िंदा हैं लोगों को खल रहे हैं लोग प्यार बस शब्द पढ़ा है किताबों में सच बस, ज़िद में अड़ रहे हैं लोग ©Sandeep Sati #दोटूक