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कवि मनोज कुमार मंजू

मेरे घर आई एक नन्हीं परी
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
तेरे आने का इंतज़ार किया 
जिन्दगी ने भी इम्तहान लिया 
तेरा चेहरा मुझे तो चांद लगे
मुस्कुराए चमन में फूल खिले 
हर खुशी आज मेरे दर पे खड़ी
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 

मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
तुझसे मुंह मोड़ें हैं कठोर बड़े 
रोना सुनकर भी बहुत दूर खड़े
मैं तुझे गोद में उठा लूंगा 
सबकी नजरों से भी बचा लूंगा
बेरहम हैं तो मुझको किसकी पड़ी
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 

मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
तू परी है जिगर का टुकड़ा तू
मैं रहूं पास फिर न घबरा तू
राह कैसी हो साथ चलना है 
तुझको नाजों से ही तो पलना है 
रहना हर पल ही सबसे आगे खड़ी
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
मेरे घर आई एक नन्हीं परी 
मेरे घर आई एक नन्हीं परी

©कवि मनोज कुमार मंजू #नन्हीं_परी 
#वाणी 
#मनोज_कुमार_मंजू 
#मँजू

kavi manish mann

//नन्हीं परी// १७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था। मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रबल इच्छा थी। अतः मुझे विवश होकर जाना पड़ा। हम बुआ जी के यहांँ पहुंँच आए। मैं लगभग 5 वर्ष पूर्व यहांँ आया था, अतः 5 वर्षों में यहांँ बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका था। मैं वहांँ बहुत कम लोगों से परिचित था,अतः दादी और पिताजी ने सभी से परिचय करवाया।सभी से मिलने के बाद मैं छत पर चढ़ गया,जहांँ पहले से कुछ संबंधी जन अलग–अलग समूह में बैठकर वार्तालाप कर रहे थे। मै #कहानी #yqdidi #yqstory #संस्मरण #मौर्यवंशी_मनीष_मन #नन्हीं_परी #संस्मरण_प्रथम_प्रयास #गद्य_मन

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//संस्मरण:नन्हीं परी//

शीर्षक में पढ़ें.....!! //नन्हीं परी//

१७/०५/२०२१, की सुबह यकायक योजना बनी,आज मेरे फुफेरे भाई का तिलकोत्सव था।
मेरी जाने की कोई योजना नहीं थी, किंतु दादीजी की प्रबल इच्छा थी। अतः मुझे विवश होकर जाना पड़ा। 
      हम बुआ जी के यहांँ पहुंँच आए। मैं लगभग 5 वर्ष पूर्व यहांँ आया था, अतः 5 वर्षों में यहांँ बहुत कुछ परिवर्तित हो चुका था। मैं वहांँ बहुत कम लोगों से परिचित था,अतः दादी और पिताजी ने सभी से परिचय करवाया।सभी से मिलने के बाद मैं छत पर चढ़ गया,जहांँ पहले से कुछ संबंधी जन अलग–अलग समूह में बैठकर वार्तालाप कर रहे थे। मै


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