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KUNWA SAY
White कई ठोकरों के बाद भी ,,सभालता रहा हूँ मैं ,... गिर गिर कर उठ खड़ा हूँ ,,और चलता रहा हूँ मैं ,. mere youtobe chenal name Rajkumarikp hai saport kare ©KUNWA SAY #mountain कई ठोकरों के बाद भी ,,सभालता रहा हूँ मैं ,... गिर गिर कर उठ खड़ा हूँ ,,और चलता रहा हूँ मैं ,.
Shivkumar
जो इंसान गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले होते है वो कभी भी वफादार नहीं होते... इसलिए जो इंसान बार-बार अपनी बात से यु मुकर जाए तो उस पर भरोसा कभी भी मत करना.. मेरे दोस्त ©Shivkumar #truecolors #असली_रंग #Nojoto #nojotohindi जो इंसान #गिरगिट की तरह #रंग बदलने वाले होते है वो कभी भी #वफादार नहीं होते... इसलिए जो
Rameshkumar Mehra Mehra
तुमने कुछ इतना..... अकेला कर दिया मुझे.....! के मैं आपने आप से भी खफ़ा....!! रहने लगा हूँ..... ©Rameshkumar Mehra Mehra # तुमने कुछ इतना,अकेला कर दिया है,मुझे के मैं आपने आप से भी खफ़ा रहने लगा हूँ....
Sangeeta G
☹️💟 वो हर बार मुझे छोड़ के चले जाते हैं तन्हा, मैं मज़बूत बहुत हूँ लेकिन कोई पत्थर तो नहीं हूँ। ☹️💟 ©Sangeeta G ☹️💟 वो हर बार मुझे छोड़ के चले जाते हैं तन्हा, मैं मज़बूत बहुत हूँ लेकिन कोई पत्थर तो नहीं हूँ। ☹️💟 #shorts #viral #Shayar #shayari #Love
Mukesh Poonia
वो दिन, वो नजारा भी आएगा समुद्र है अगर तो किनारा भी आएगा जिंदगी की परेशानियों से हार मत जाना ऐ दोस्त तुझसे मिलने एक दिन वो सितारा भी आएगा . ©Mukesh Poonia #lakeview वो #दिन, वो #नजारा भी आएगा #समुद्र है अगर तो #किनारा भी आएगा जिंदगी की #परेशानियों से हार मत जाना ऐ #दोस्त तुझसे मिलने एक दिन वो
koko_ki_shayri
Autumn जो मिला मुझे, वो सोचा नहीं था! जो चाहता हूँ, वो मिल ही नहीं रहा हैं!! ©koko_ki_shayri #वो मिल नहीं रहा है...💕
Arora PR
माना कि हर इंसान क़ो एक न एक दिन तो मरना ही पड़ता है लेकिन जहा तक़ मेरा सवाल है मै न जाने कितनी बार रोज़ मरता हुँ ©Arora PR कितनी बार
Salim Saha
जब होता है तुम्हारा दीदार, दिल धड़कता है बार-बार, आदत से मजबूर हो तुम, ना जाने कब माँग लो उधार !! ©Salim Saha दोस्त कर्जा मांग# रहा है पैसे#
MAHENDRA SINGH PRAKHAR
ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल खिलाने के लिए रहता हूँ ।। शहर में मैं नही जाता कमाने को पैसे । हाथ बापू का बटाने के लिए रहता हूँ ।। जानता हूँ दूरियों से खत्म होगें रिश्ते । मैं उन्हें आज बचाने के लिए रहता हूँ ।। हर जगह जल रहे देखो आस्था के दीपक । मैं उन्हीं में घी बढ़ाने के लिए रहता हूँ ।। कितने कमजोर हुए हैं आजकल के रिश्ते । उनको आईना दिखाने के लिए रहता हूँ ।। कुछ न मिलता है प्रखर आज यहाँ पे हमको । फिर भी इनको मैं हँसाने के लिए रहता हूँ । ११/०३/२०२४ - महेन्द्र सिंह प्रखर ©MAHENDRA SINGH PRAKHAR ग़ज़ल :- घर में ही पुन्य कमाने के लिए रहता हूँ । माँ के मैं पाँव दबाने के लिए रहता हूँ ।। दुश्मनी दिल से मिटाने के लिए रहता हूँ । धूल में फूल