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बेजुबान शायर shivkumar
सृष्टि नियंता, जग निर्मात्री, कण-कण पोषिता नारी हूँ, हाँ मैं औरत, जग कल्याणी हूँ। सृष्टि रचयिता सृष्टि पालक सृष्टि संचालक की वामाग्नि हूँ, प्रकृति मैं, शक्ति भी मैं, मैं ही जग कि तारिणी हूँ। पीर-फकीर राजे-रंक मेरी कोख से जाए हैं रब के बाद धरा पर सबने रुप मुझसे ही पाये हैं। फिर भी हर युग में मुझे ताड़ना ही मिली, बनी संगिनी वन-वन भटकी, फिर महल से निकाली भी गयी मैं। जब-जब विपदा आन पड़ी सबपर सब मेरी शरण ही आये हैं शत्रु का संहार हो या अहम किसी का तोड़ना स्वं प्रभु ने ध्यान धर मुझे ही ध्याये हैं। अब भी सर्वशक्तिमना होकर भी ताड़ित होती हूँ, धर्म,कर्म,कर्तव्य पूर्ण कर भी प्रताड़ित हूँ मैं। रिश्तों की मर्यादा तोड़ ,स्वं मर्द गली,मौहल्ले,घर- बाजार, रौंद के अस्मत मेरी करता , मेरे ही जिस्म का व्यापार। धरा नापती, पाताल खोजती, नभ संचरण भी करती हूँ, धर्माधिकारिणी , सत्ताधारिणी भी मैं हूँ, हाँ मैं नारी हूँ, आज भी अस्तित्व अपना खोजती हूँ मैं। ©Shivkumar #कविताहिन्दी #नारी #नारी_सम्मान #नारी_शक्ति #हाँमैंहीनारी #नारीशक्ति #Nojoto
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