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कर्मभूमि हरियाणा

Death_Lover

पूरी महाभारत में वास्तव में यदि कोई धार्मिक है तो वो बस अर्जुन ही है। बाकी सब को धर्म का कुछ पता ही नहीं है। बाक़ी सभी लोग  या तो  अपने वचन का पालन कर रहें हैं  या फिर अपने कर्तव्य का पालन कर रहें हैं। वहाँ धर्म का पालन कोई नहीं कर रहा है।

             ऐसा आज भी है मगर तब तो एक अर्जुन का सहारा तो था और  अब अर्जुन भी न रहा इस  धर्म भूमि पर।  यहाँ पर सभी लगे हैं अपने वचन(commitment/task) को पूरा करने में या फिर अपने धन(show off) को बढ़ाने में और एक नए नर्क को बनाने में जिससे उसमें अपने जीवन की आग को ठंडा कर सके। क्योंकि धर्म का पालन करने के लिए उस आग या ज्वाला को और अधिक बढ़ाना होता है एक ऊँचे लक्ष्य को प्राप्त करने में।
                                    (मेरे राम)

©Himanshu Tomar #मेरे_राम #धर्म #love #प्रेम #आज_का_युग #जीवन_लक्ष्य #योद्धा #धर्मभूमि #कर्मभूमि 
#Journey

Akhil Kael

बोझ है   ये शरीर अर्ध बेहोश है, 
मुख पर सूजन, कंठ इसका खामोश है,
कुछ लोगों की नजरों मे ये कमजोर है,
अगर इस हाल में भी लेकिन जो जोश है,
हार ना मानना ही मेरा सबसे भयंकर रोग है,
इबादत और मेहनत जिसके कर्मयोग हैं,
खुद की खोज में निकले जो,
रोम रोम जिसका सरफरोश की भट्टी हो,
जिंदगी को कैसे माने वो बोझ,
सीख लिया जिसने बनाना हर मुश्किल को,
अपनी ऊर्जा का स्त्रोत,
जिंदगी को कैसे माने वो बोझ,
ए संसार तू मुझे न रोक,
मुझसे हारने का शोक बन जायेगा तेरा,
सबसे बड़ा बोझ,
ए संसार तू मुझे न रोक,

©Akhil Kael #riseofphoenix #stormofphoenix #जोश #मजबूत #कर्म #कर्मभूमि #हार #जीत #

#PoetInYou

Kh_Nazim

मुसाफिर (संघर्ष गीत)। चलता चल मुसाफ़िर चलता चल मिलेगी मंज़िल कटेगे दुःख चलता चल मुसाफ़िर चलता चल कोई न समझेगा दुख तेरा अपने पथ पर आगे बढ़ता चल आगे बढ़ता चल #peace #मकान #कविता #रिश्ते #सियासत #कर्मभूमि #khnazim #हालात_ए_जिंदगी #छोटाबसेराtwj

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मुसाफिर (संघर्ष गीत)।

चलता चल मुसाफ़िर चलता चल
मिलेगी मंज़िल कटेगे दुःख
चलता चल मुसाफ़िर चलता चल
कोई न समझेगा दुख तेरा
अपने पथ पर आगे बढ़ता चल
आगे बढ़ता चल
चलता चल मुसाफ़िर चलता चल

सियासत के फेरे में ज़िन्दगी उलझी है
तुझे ना झुकना है ना थकना है
बस चलना है
बस चलना है
चलता चल मुसाफ़िर चलता चल।।

रास्ता लंबा है पैरों  में छाले लाजमी होगे
दर्द बेपन्हा होगा देखकर,
तुझे ना टूटना है ना तू झुकना ना 
मंजिल तक पहुंचेगा सफर
बस चलना है 
बस चलना है
चलता चल मुसाफिर चल ताजा।।

जब सताने लगेंगी परिवार की बंदिशे
तू रुकना ना तू मुड़ना ना
मतलबी कहेगा जमाना सारा
याद रखनी है मंजिल तुझे अपनी 
मेहनत करेगा पसीना बहेगा
मिलेगी जिंदगी अच्छी सबको 
बस बढ़ता चल 
बस बढ़ता चल
चलता चल मुसाफिर चलता चल।।

चमक धमक देखकर 
मंज़िल से बहकना ना
याद रखना अपने हालत पुराने
टूटा मकान छूटे रिश्ते
तू भूलना ना तू चूकना ना
कर्मभूमि में अपना योगदान देता चल
चलता चल मुसाफिर चलता चल ।। मुसाफिर (संघर्ष गीत)।

चलता चल मुसाफ़िर चलता चल
मिलेगी मंज़िल कटेगे दुःख
चलता चल मुसाफ़िर चलता चल
कोई न समझेगा दुख तेरा
अपने पथ पर आगे बढ़ता चल
आगे बढ़ता चल

अतुल थपलियाल

भारत का नाम भारत ही रहने दो, इंडिया बोल के के फिर से गुलाम मत बनाओ। #भारत #देश #एक #कर्मभूमि

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Prakash Shukla

प्रकाश

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जिन्दगी एक रंग मंच है क्या खोया क्या पाया
कर्मभूमि है तय करती कि क्या बोया क्या जाया
है विषम परिस्थिति विकट रूप मे घर समाज के आगे
कोई जलती धूप थपेड़े खाए कोई एयर कन्डीशन मे जागे
सब कर्मों का एक ही फल है मिट्टी मे मिल जाना
पृथ्वी ,जल ,नभ ,अनल ,समीर सब पुष्प रूप खिल जाना
आधुनिकता मे खोए हुए सब घोर तिमिर है छाया
दुःख को सुख और सुख को दुःख समझे है यही प्रभु की माया
जिन्दगी एक रंग मंच है क्या खोया क्या पाया
कर्मभूमि है तय करती कि क्या बोया क्या जाया
प्रकाश प्रकाश

Anil Siwach

|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8 ।।श्री हरिः।। 6 – पूर्णकाम ‘तृष्णाक्षये स्वर्गपदं किमस्ति' 'देवाधिप की मुखश्री आज म्लान दीखती है!' सुरगुरु ने अमरों की अर्चा स्वीकार कर ली थी और महेन्द्र से अभिवादित होकर वे सिंहासन पर बैठ चुके थे। इन्द्र एवं अन्य देवताओं ने भी आसन ग्रहण कर लिया था। 'सुधर्मा सभा में आज चिन्ता की अरुचिकर गन्ध है।'

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|| श्री हरि: || सांस्कृतिक कहानियां - 8

।।श्री हरिः।।
6 – पूर्णकाम

‘तृष्णाक्षये स्वर्गपदं किमस्ति'

'देवाधिप की मुखश्री आज म्लान दीखती है!' सुरगुरु ने अमरों की अर्चा स्वीकार कर ली थी और महेन्द्र से अभिवादित होकर वे सिंहासन पर बैठ चुके थे। इन्द्र एवं अन्य देवताओं ने भी आसन ग्रहण कर लिया था। 'सुधर्मा सभा में आज चिन्ता की अरुचिकर गन्ध है।'

अलक

मेहनत की एक पहचान है वो अपने मिट्टी की जान है वो भरता है पेट सभी का पर नित नव अभिनव उत्थान है वो ।। उषा के चादर में सिमटा वह कर्मभूमि में जाता है फिर खून पसीना लगा-लगा #Poetry #farmer

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मेहनत की एक पहचान है वो
अपने मिट्टी की जान है वो
भरता है पेट सभी का पर
नित नव अभिनव उत्थान है वो ।।

उषा के चादर में सिमटा 
वह कर्मभूमि में जाता है
फिर खून पसीना लगा-लगा


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