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नितिन मिश्र (निर्मोही)

कोइ चलता पैदल पैरों पे कोइ साइकिल मोटर कार से
लाख सिकंदर निकल रहे हैं मरघट के बाजार से
कुछ की चमक रोशनी मारे कुछ हैं दाल नमक के मारे
कुछ के सिक्के छनके खनके कुछ के नोट के दिखें नज़ारे
कोई जीत कि ख़ुशी मनाता अपना सबकुछ हार के
जीवन चलता संग सब चलते अपनी अपनी रफ़्तार से! 

जिनगी चंद पहर का रस्ता कोई भूला कोई भटका
कोई निकला बचा बचा के कोई कदम कदम पे अटका
कोई चलता रोते रोते थोड़ा पाकर सबकुछ खोते
कोई चलता बन मस्ताना भूला शूल मूल धन जो थे
कोइ बैठा जान बूझकर कोइ उठता जतन हजार से
जीवन चलता संग सब चलते अपनी अपनी रफ़्तार से! 

वो जो बीत गया न आता आता भी तो तू क्या पाता
गर तू चलता साथ अगर तो थोड़ा बहुत तजुर्बा पाता
वक़्त ही था वो जो था बीता वक़्त ही होगा जो आएगा
कीमत कर निर्मोही इसकी करता तो ये व्यर्थ ना जाता
अब भी जागो उठो चलो तुम अपने मन का वहम उतार के
जीवन चलता संग सब चलते अपनी अपनी रफ़्तार से! #nitinnirmohipoetry
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#life
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नितिन मिश्र (निर्मोही)

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नितिन मिश्र (निर्मोही)

न दिलों मे तपिश, न रिश्तों का आजमाना था
साहब! वो मेरे बचपन का ज़माना था..!! 

दिलों से खेलने का कोई रिवाज़ नही था
खुशीयां मुफ़्त मे मिलती थी कोई हिसाब नहीं था
कोई चूम लेता था तो कोई गले लगाता था
कोई बेटा तो कोई आँख का तारा कहता था
बिन बात केथे
ग यूँ ही मुस्कुरा दिया करते थे
इशारों मे ही सही हर शख्स दुलारा करता था! 

न लोग मतलबी होते थे न सच का कोई पैमाना था
साहब वो मेरे बचपन का ज़माना था!! 

झूठ तो शायद तब भी बोलते थे पर संस्कार सच्चे थे
घर होते थे कच्ची मिट्टी के पर रिश्ते तालुकात् पक्के थे
अब्दुल चाचा की बैलगाड़ी मे अक्सर पंडित बाबा बैठे होते थे
तस्लीमा चाची के लिए भी होली दिवाली ईद जैसे ही होते थे
क्या हिंदू क्या मुस्लिम सब का एक ही चौपाल हुआ करता था
टोपीवाला जयकारा तो तिलकवाला दुआ करता था
राजनीति की बातें नेताओं के भाषण तब भी थे
फर्क बस इतना था सुनते थे और सुनकर भूल जाना था
साहब वो मेरे बचपन का ज़माना था! 

बड़ी इमारत के स्कूल नहीं छोटे विद्यालाय होते थे
अंग्रेज़ी वाले dude नही मेधावी बालक होते थे
ज्ञान का कोई मोल नही था शिक्षा की इतनी फीस न थी
बेटी बेटा बनेंगे इंजीनियर मा बाप को ऐसी टीस न थी
डिग्री से तब नौकरी नहीं शिक्षित समाज़ का द्योतक थे
हो सके जहाँ सबकी इज्जत ऐसे गुण के संयोजक थे
...To be continued #falconfilms19

#NitinNirmohiPoetry
#NojotoHindi

नितिन मिश्र (निर्मोही)

#CRPFattack
#Terrorism
#NaeendraModi

इस नए आगाज़ को, परवाज़ मिलनी चाहिए,
पत्तियाँ तो आम हैं, अब शाख़ हिलनी चाहिए।

हाँ बचानें को गए थे, जो वतन की आबरू,
मर गए वो ठीक है, पर राख मिलनी चाहिए।

क्यों नज़र आती हैं बस दो चार शक्लें ही बता?
अब नही बहरूपियों की दाल गलनी चाहिए।

सरहदों पर रोज़ क्यों दिखती हैं कुछ चिंगारियाँ?
देश के उस पार भीषण आग जलनी चाहिए।

है यही मसला अमल करता नही तू बोलकर,
सब हदों के पार है, ये बात खलनी चाहिए।

हर कहीं नारे लगे हैं इंकलाबी दरअसल,
देशद्रोही हैं सभी बातें कुचलनी चाहिये।

है जहाँ *निर्मोही* की शीतलता भुजंगों से कहो,
जीभ जो विष से भरी हद में निकलनी चाहिए। #NojotoQuote #Nitinnirmohipoetry
#CRPFattack
#NarendraModi
#Terrorism

नितिन मिश्र (निर्मोही)

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नितिन मिश्र (निर्मोही)

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