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Vikash Arya
सब बच्चो का अलग अलग उत्तर था किसी ने कहा की मैं लड़का हूँ किसी ने कहा लड़की, किसी ने मोटा किसीने कला , गौरा और यह प्रश्न अध्यापक वर्ग से भी पूछा गया तो उनका उत्तर भी कुछ ऐसा था | मैं अध्यापक या अध्यापिका और जब यह प्रश्न उस बच्चे से पूछा तो उष्ण बताया कि मैं एक विद्याथी हूँ मैंने कहा पर कैसे उसने कहा कि मैं पढ़ने आता हूँ | इसलिए मैंने कहा कि बाकि बच्चे भी तो पढ़ने ही आते है क्या वे विद्याथी नहीं है इस पर सब हंसने लगे और वह सोचता रहा उसे इसी स्थिति में छोड़कर घर लोट आया वह बालक अगली दो सुबह टहलने नहीं आया इस पर मैंने विचार किया मगर कुछ अंदाजा नहीं लगा पाया | मैं उसके घर की तरफ गया तो मैंने देखा कि वह एक कोने में बैठा गहन विचारो में खोया हुआ था | अगली सुबह वह मुझसे पहले ही वह पहुंचा हुआ था जैसे ही मैं वह पहुँचा उसने अभिवादन किया और बोलै हे श्रेठ मैं जान चूका हूँ कि मैं क्या हूँ | बताओ उसका उत्तर बड़ा ही विचलित करने वाला था उसने खा कि मैं न सूंदर हूँ न मोटा न पतला मै तो सिर्फ एक आत्मा हूँ उसके इस उत्तर से मेरा ह्रदय स्तब्ध हो गया काश संसार का प्रत्येक प्राणी, इस सत्य को जान जाए। भाग-३ ©Vikash Arya #अपना_परिचय #MrVKSingh
Vikash Arya
वह मेरी तरफ इस प्रकार देख रहा था जैसे की मुझसे कुछ पूछना चाहता हो मगर मेरी अनभिज्ञता के कारण वह कुछ बोला नहीं उस दिन के बाद वह बालक भी मेरी तरफ तरह रोज आने लगा था | इसी बिच हम दोनों का आपस में परिचय हो गया था कुछ ही दोनों का आपस में परिचय हो गया था कुछ ही दिनों में हम दोनों अच्छे मित्र बन गए थे | वह मुझसे भाँति भाँति के प्रश्न पूछता रहता था | एक दिन उसने मुझसे ईश्वर के बारे में चर्चा की थी तब मैंने उससे पूछा था कि वह ये सब क्यों जानना चाहता है और सब जान कर आपकी दया मिल सकता है आखिर क्यों तुमइसके बारे में जानने के इतने उत्सुक हो इस पर बालक का बड़ा ही सुंदर जवाब था | वह ये सब अपनी मन की शांति के लिए जानना चाहता है मैंने कहा कि तुम अभी बच्चे हो ये सब बाते तुम्हारे काम की नहीं है वह जिद्द पर अड़ा रहा लेकिन तब मैंने सोच कि क्यों न इसके लिए इसकी परीक्षा ली जाए अगले ही दिन प्रत्येक छात्र से एक प्रश्न पूछा की आप क्या है ? भाग २ ©Vikash Arya #अपना_परिचय #भाग_२
Vikash Arya
* अपना परिचय * मैं अपने खुश समृद्ध परिवार के साथ अपना जीवन व्यतीत कर रहा था । सब बाल बच्चे खुशहाल थे, सब अपना अपना कार्य किया करते अब मुझे जीवन के इस आखिरी पड़ाव में कुछ खुल्ला खुल्ला महसूस करने लगा था । और मेरी आसक्ति भी कम होने लगी थी । मैं सुबह शाम हर रोज टहलने जाया करता था, वो इसलिए कि स्वास्थ्य बना रहे, और उस ईश्वर का ध्यान किया जा सके । कभी -कभी रात सोने से पहले मेरा पतोहु मेरे पास आकर कहनी सुनाने की जिद्द करता। एक दिन घर पर मेरे और पतोहू के सिवाय कोई नहीं था । उनकी दादी जी का स्वर्ग वास हो ही चूका था । उसके माता पिता किसी काम से बाहर गए हुए थे । और उन्हें अगले दिन आना था। इसलिए वह मेरे कमरे में सोने आ गया और कहानी सुनाने के लिए जिद्द करने लगा तब मुझे वो बात याद आई जो मेरे जीवन में घर कर गई थी । कुछ समय पहले जब में सुबह सवेरे बाहर घूमने जाने लगा था तब एक दिन वहा मुझे एक बालक मिला जो बारह या तेरह वर्ष का था । भाग-१ ©Vikash Arya #अपना_परिचय #MrVKSingh
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