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"सीमा"अमन सिंह

White "अमीरों के महादेव"

भक्त वो, जो लाइन में घंटों खड़े रहते हैं,
और भक्त वो, जो एसी कमरे में दर्शन करते हैं।
महादेव के दरबार में समानता का पाठ पढ़ाया जाता है,
पर यहाँ वीआईपी पास से प्रभु के करीब लाया जाता है।

प्रशासन कहता है, "सभी के लिए एक नियम है,"
फिर अमीरों के लिए क्यों अलग सिस्टम है?
गरीब का जल घंटों लाइन में रुकता है,
और अमीर का जल बिना रोके शिवलिंग तक पहुंचता है।

क्या भोलेनाथ ने ये भेदभाव चाहा था?
या प्रशासन ने नियमों को अमीरों से बांधा था?
क्यों भक्तों की भक्ति का मोल तय होता है,
और क्यों नियम अमीरी की ओर झुकता है?

महादेव तो सबके हैं, गरीब-अमीर बराबर,
फिर क्यों प्रशासन ने बना दिए ये अलग दर?
व्यंग यही है कि नियमों का खेल ऐसा है,
जहां भक्त, भक्त नहीं, बल्कि "ग्राहक" जैसा है।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora 
#mere_mahadev

"सीमा"अमन सिंह

White चाय .. 

.. ज़िंदगी की गाड़ी का वो फ्यूल है जिसके बेगैर 
रोज़मर्रा के कामों की गाड़ी स्टार्ट ही नहीं होती ।।

©"सीमा"अमन सिंह #GoodMorning #banarasi_Chhora 
#Chai

"सीमा"अमन सिंह

White मौसम ने अंगड़ाई ली
थोड़ा ज्यादा ही धूप दिखाई दी।।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

White वो सारे लड़ाई झगड़ों के उस पार .. जहाँ किसी से कोई उम्मीद नहीं होती .. जहाँ बोलने से ज़्यादा चुप्पी अच्छी लगती है .. वहीं पर मिलता है ख़ुद में सुकून का वो एहसास जो बाहरी भीड़ के शोर में खो गया था हमसे कहीं .. 

वो आनंद .. वो ठहराव .. वो ख़ुशी .. हाए!! ♥️

©"सीमा"अमन सिंह #love_shayari 
#banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

कड़वी मगर ये ज़ुबां पर मिठास लाई है,
दुनिया को जोड़ने वाली वो चाय आई है।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora #चाय

"सीमा"अमन सिंह

White प्रेम की प्रतीक्षा में जीवन बहा जाता है,
हर सांस तेरे मिलने की आस लगाए जाता है।
समर्पण की सीमा पर दिल ठहर सा गया,
तेरी राह तकते-तकते वक्त भी थम गया।

चांदनी रातों में तेरी यादें सहलाती हैं,
तारे भी मानो तेरा पता बताती हैं।
प्रेम कोई बंधन नहीं, ये तो आत्मा का गीत है,
समर्पण की गहराई में छुपा तेरा ही मीत है।

प्रतीक्षा के हर पल में एक सुकून है,
तेरे बिना भी, तेरा होना ही जुनून है।
प्रेम में खोकर पाया है खुद को मैंने,
समर्पण ने सिखाया, तू ही है मुझमें।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

White 

रण का मदन जब चरम पर चढ़ा,
हर दिशा में केवल प्रचंड था।
कौरव दल थर्राया साहस देख,
अभिमन्यु का रण अनोखा प्रबंध था।

गदा से धरा हिलाने लगा वो,
महारथियों को धूल चटाने लगा वो।
पर चक्रव्यूह के छल ने उसे जकड़ा,
धर्म और अधर्म का सवाल उठाने लगा वो।

तभी कर्ण बोला, "हे अभिमन्यु महान,
तुमने अकेले किया पूरे दल का अपमान।
पर रण में नीति की सीमा भूल गए,
अपनी ही गरिमा के जाल में झूल गए।"

अभिमन्यु हँसकर गर्जना कर उठा,
"नीति क्या, जो अधर्म को साथ रखे।
मेरी मृत्यु से सत्य अमर रहेगा,
कौरव कुल का अभिमान फिर मिटेगा।"

रक्त से लथपथ भी अमर मुस्कान थी,
शौर्य की प्रतिमा जैसे गगन गान थी।
अभिमन्यु गिरा, पर विजय का मंत्र था,
धर्म की जय में उसका हर कण बसा।

©"सीमा"अमन सिंह #महाभारत
#अभिमन्यु
#banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

White थोड़ा सोचूं फिर एक बात लिखूं, जज़्बात लिखूं या फिर हालात लिखूं।
लफ़्ज़ों में छिपी जो तस्वीरें हैं, उनमें अपने दिल की कायनात लिखूं।

ख़्वाबों के रंगों से सजा दूं पन्ने, या हकीकत के दागों की सौगात लिखूं।
हर बात में एक कहानी बसी है, क्या तेरा ज़िक्र या अपनी बात लिखूं?

थोड़ा सोचूं फिर एक बात लिखूं, जज़्बात लिखूं या फिर हालात लिखूं।
दिल के समंदर से उठा कुछ लफ़्ज़, तूफान लिखूं या फिर जज़्बात लिखूं।

चमकते सितारों की कहानी कहूं, या टूटते सपनों की सौगात लिखूं।
ख़ुद को बयां करूं इस स्याही में, या दुनिया के नक़्शे की बात लिखूं।

थोड़ा सोचूं फिर एक बात लिखूं, जज़्बात लिखूं या फिर हालात लिखूं।
दुनिया को देखूं तो दर्द ही दिखे, चाहूं तो खुशियों की सौगात लिखूं।

सच है मगर फिर भी मुश्किल बहुत, सोचूं कि इस दिल की औकात लिखूं।
हर शख्स उलझन में जीता रहा, इस दौर की कैसी मैं कायदात लिखूं।

थोड़ा सोचूं फिर एक बात लिखूं, जज़्बात लिखूं या फिर हालात लिखूं।
चुपचाप जो दिल में दबा है कहीं, उस राज़ को खोलूं या सौगात लिखूं।

बेचैनियों का कोई हिसाब लिखूं, ख़ुशियों का झूठा सा नक़ाब लिखूं।
जो गुज़री है मुझ पर, वही कह दूं, या औरों के किस्सों से बात लिखूं।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

White धुंध कुहासा फैला है चारों ओर,
चुप है पंछी, थमा है हर शोर।
सूरज भी छुपा बादलों की ओट,
धरती का मन भी हुआ है कठोर।

सर्द हवा की चुभन सी बात,
खो गए रंग, बुझ गई हर बात।
कोने में बैठी है इक गरम चाय,
सुकून लिए जैसे कोई साथ।

हाथ में प्याली, खिड़की के पास,
धुंध के संग चलता वक्त का हास।
चाय की खुशबू में घुलती है ठंड,
जीवन में जैसे लौट आया छंद।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora

"सीमा"अमन सिंह

Unsplash 

दिल टूटा, अश्रु बह गए,
शब्द बिखरे, लफ्ज़ महक गए।
लफ्ज़ों की महक ने लिबास बुना,
लिबासों से सज गया एक अद्भुत नज़ारा।

उस नज़ारे से जन्मी एक खूबसूरत किताब,
जिसमें दर्ज हुआ दिल के टूटने का किस्सा,
आंसुओं के बहने की दास्तां,
और बिखरे शब्दों से सजी महकती दुनिया।

©"सीमा"अमन सिंह #banarasi_Chhora 
#Book
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