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Amit Prem "AkR"
Rabindra Kumar Ram
" उसके आंखों ने क्या तरकिफ निकली है , मुझे विरान मरुस्थल सा प्यासा रखने का , खुद तो दरिया हैं लहरों पे लहर लेती है , भिगोती हैं मेंरे साहिल को मुझे प्यासा छोड़ जाती है . " --- रबिन्द्र राम " उसके आंखों ने क्या तरकिफ निकली है , मुझे विरान मरुस्थल सा प्यासा रखने का , खुद तो दरिया हैं लहरों पे लहर लेती है , भिगोती हैं मेंरे साहिल को मुझे प्यासा छोड़ जाती है . " --- रबिन्द्र राम #तरकिफ #मरुस्थल #प्यासा #दरिया #लहर
अविनाश कुमार
"मरुस्थल" प्रमाण है इस बात का कि अत्यधिक इंतज़ार, उपेक्षा और तिरस्कार से सूख जाता है कभी न ख़त्म होने वाला अथाह प्रेम का दरिया, और चट्टान की तरह शुष्क और सख़्त बन जाते हैं, कभी पानी से रहे सरल, स्वछन्द प्रेमी । प्रतीक्षा प्रेम की पूंजी है, मगर कभी-कभी हद से ज्यादा बढ़ जाने पर इंतज़ार का यही खूबसूरत फूल लगने लगता है नागफनी। . #yqdidi #hindi #love #इंतज़ार #मरुस्थल #प्रेम #1909avinash
अविनाश पाल 'शून्य'
उसकी आँखों में देखा है इश्क का समुन्दर मैंने जिसपे आरोप है कि भावों का मरुस्थल है वो। #शून्य #इश्क़ #समुंदर #पावन_प्रेम #पवित्ररिश्ता #मरुस्थल #योरकोट_दीदी #योरकोटऔरमैं
Sangeeta singh
-Kumar Kishan Krishan Kr. Gautam
❤️हृदय के मरुस्थल मे ये कैसा बीज बोया है कुछ तो उमड़ रहा, इस जलती तपती रेत में कुछ तो कल्प रहा, भवरें इसपे आ रहे पुष्प कोई तो खिल रहा हृदय के मरुस्थल में ये कैसा बीज बोया है। माली बन रहे हो तो तोड़ बेच आना मत, तेज़ चलती धूप में मुझको मुरझाना मत, तोड़ना गर कभी तो तोड़ निज रख लेना, लेकर गर जाना तो छोड़ के न आना मत, हृदय के मरुस्थल में ये कैसा बीज बोया है। #कुमार किशन #बीज
सुमित शर्मा
वेदनाओं के भँवर में घूमता अक्सर रहा मैं किंतु ये मालूम था कि वेदनाएँ मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी अपेक्षाओं के जगत में संभाव्यता भी खत्म थी किंतु ये मालूम था कि उपेक्षाएं मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी वे छण अभी तक याद है जब पाँव मेरे दग्ध थे किंतु ये मालूम था कि वे मरुस्थल मुक्त होंगी और फिर किसलय खिलेंगी मैं ही विष था,मैं मरुस्थल मैं ही खुद का शत्रु था किंतु ये मालूम था कि ये शत्रुता भी मुक्त होगी और फिर किसलय खिलेंगी|| 😊 मुस्कुराते रहिए 😊 ✍️ सुमित #DCF
Usha Dravid Bhatt
कैसी ये प्यास है किसकी तलाश है? कभी न खत्म होने वाली ये तलाश, अन्तश् के किसी कौने में सिमटी हुई , असीमित दर्दीली चुभन, आकार इस अनन्त फैले मरुस्थल की तरह, न मिटती है न थकती है ना ही विस्मृति की ओर ले जाती है , बता नहीं सकता ये मन , वह उस तड़प से हृदय के चित्कार पर विराम नहीं सह सकता वह तलाश ,वह दर्द ,वह अतृप्त प्यास तपती रेत में , एक पग को सौ - सौ पगों से नापते हुए एक बीतराग अपने ही उस अनमोल रत्न को तलाश करने निकला इस विशाल फैली मरु भूमि में , थरथराते पग धराता , तलाशता उसे , जिसे कस्तूरी की तरह उर में बसा के रखा है जानते हो क्यूं , क्योंकि उसने इस जर्जर मरुस्थल को , दो बूंद अमृत पिलायी थी , फिर से उस अमृत की चाह में मेरी विदीर्ण काया भटक रही है कभी न खत्म होने वाली तलाश में । ये मेरी असीमित अतृप्त प्यास कभी न मिलने वाले हिरण की तलाश ।। अतृप्ता की तलाश