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Jiten rawat

nojoto #Shayari #thought मैं #अदना सा इंसान  हूँ, तेरी तरह कोई #शहज़ादा तो नहीं, मुझे #कुचल_कर कई #बढ़े हैं,कहीं यही तेरा #इरादा तो नहीं। #मुहब्बत करता  हूँ  #सब_से ,दिल लगाने का #वादा तो नहीं, दिल में #इंसानियत है,हाँ तेरी तरह #दौलत #ज्यादा तो नहीं। #writer #JitenRawat #शायरी

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मैं अदना सा इंसान  हूँ, तेरी तरह कोई शहज़ादा तो नहीं,
मुझे कुचल कर कई बढ़े हैं,कहीं यही तेरा इरादा तो नहीं।
मुहब्बत करता  हूँ  सब से ,दिल लगाने का वादा तो नहीं,
दिल में इंसानियत है,हाँ तेरी तरह दौलत ज्यादा तो नहीं। #nojoto
#shayari
#thought
मैं #अदना सा #इंसान  हूँ, तेरी तरह कोई #शहज़ादा तो नहीं,
मुझे #कुचल_कर कई #बढ़े हैं,कहीं यही तेरा #इरादा तो नहीं।
#मुहब्बत करता  हूँ  #सब_से ,दिल लगाने का #वादा तो नहीं,
दिल में #इंसानियत है,हाँ तेरी तरह #दौलत #ज्यादा तो नहीं।
#writer #jitenrawat

A@DiTyA'S WORD

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मौसम की तरह तुम किसी की नज़रों में 
गिरकर भी अगर तुम आगे बढ़े...

तो क्या 🔔 आगे बढ़े...

संदीप दहिया

#OpenPoetry बेअदब न हो बधाई न जीत सा अहसास हो, दिलों को जोड़ने से देश होगा,बस एक कागजी फरमान न हो,अपनेपन का हो सन्देश  न व्यंग न उपहास हो।
हम हिमालय की गोद में चोटी से लेकर घाटी तक,हम ठहरे हुए समुन्द्र से नदी सतत बहती जाती तक, हम हल जोतते कन्धों से गोलियां खाती छाती तक, हम एक रेखा से बंधे, बटे हुए भांति भांति तक। ताकत के वहम मे बह न जाये ये भारत की भावना, जो अपने हैं नही वो लाजमी दुश्मन नही, लकीरों को मिटा सकें जो मन से कुछ इस तरह प्रयास हो।।
हम आज तक हैं खड़े, आगे बढ़े जब के सब हैं गिर चुके हम लड़े नही हैं लोभ वस या जमीं की चाह में, साथ जो चले थे वो थक कर गिर चुके हैंर राह में अपना गवां सब दूसरों की चाह में,बस ये भावना आगे बढ़े के लालच न हो सन्यास हो। #370 #कश्मीर #भाईचारा

Varun Savita (वर्ण)

परछाईं

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rabwrites

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में - सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो - बढ़े चलो बढ़े चलो।

- जयशंकर प्रसाद #heartbeatsforindia

Satyam Devu (मृदुल)

#loveyou #preyasi मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ❤️ #कविता

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हाँ, मैं  तुमसे  ही  बोल रहा  हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हु. 
माटी से जुड़ा हुँ मैं, ख्वाब अर्श का लिए हुए,,
पीछे कब मुड़ा हुँ मैं ? राह, मंजिल-ए-तलब लिए,,-(1)

ठोकरों से मैं जूझकर, कभी लड़ा मैं जान-बूझकर,,
मैं झुक गया वहाँ कहीं, जहाँ हार में जीत सी दिखी. -(2)

है वो मंजिल प्रकाश का, जो दिखा वो अर्श में,,
ज्ञान का है वो सागर, जो लहरा रहा तरंगें पवन में,,-(3)

सम्मान मैं लिए हुए, तिरस्कार भी, मैं सह गया,,
ख़्वाब बड़े नए लिए हुए, कुछ हार मैं भी सह गया,,-(4)

हवा के जरिए मैं बहता जाऊँ, 
सोचा 'ज्ञान के सागर' में डूबकियाँ लगा जाऊँ,,-(5)

हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ. - (6)

अपने दिल के जज्बातों को छुपा रहा हूँ, 
क्या मैं यही जिंदगी चाहता था, 
जिसे जीता चला जा रहा हूँ. 
हाँ, मैं आज भी मुस्करा रहा हूँ. -(7)

ऐ हवा, तुम हो इस मेहफिल में आज भी,
चाहे हमारी लफ्जों को, आवाज़ मिले ना मिले,
पत्तों की सर्सराहट हो न हो, में तो मुस्कुरा रहा हूँ.-(8)

तुम्हारी सर्सराहट से तो दुनिया काँप जाती है,
बढ़े-बढ़े इमारतें भी ढह जाती है, 
मैं तो मामुली सा, छोटा सा पौधा हूँ, 
जिधर चाहो लचा दोll-(9)

हाँ, मैं तुमसे ही बोल रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ, 
हाँ, मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ll-(10) #loveyou #preyasi
मैं आज भी मुस्कुरा रहा हूँ ❤️

रजनीश "स्वच्छंद"

क्रोध।। ये गज मतवाला झूम रहा, लिए आंख लाल है घूम रहा। अपनी करनी पे डाल ये पर्दा, सर अपना बस धुन रहा। छः दोषों में एक दोष है, #Poetry #kavita

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क्रोध।।

ये गज मतवाला झूम रहा,
लिए आंख लाल है घूम रहा।
अपनी करनी पे डाल ये पर्दा,
सर अपना बस धुन रहा।

छः दोषों में एक दोष है,
पतन कहो जो ये क्रोध है।
आँख पे पट्टी डाल के बैठा,
कहाँ चिंतन और कहाँ शोध है।

क्रोध की अग्नि दवानल है,
भष्म करे घरबार ये सारा।
जगह मान की चिंता किसे फिर,
घर हो या कोई चौवारा।

पवृति असुर सी प्रबल हुई है,
दांत बढ़े और सिंग है निकला।
रिश्ते नाते उम्र कहाँ फिर,
सूचित भाव हो इंग है फिसला।

फ़नकाढे उन्माद था बैठा,
वाणी विष से ओतप्रोत थी।
आंखों पे आवरण एक था छाया,
मन मे जलती बस अहं ज्योत थी।

क्रोध जो बुद्धि हर लेता है,
अविवेकी और विनाशी हुआ।
शीतम वाणी और शुद्ध विचार,
विलुप्त हुआ प्रवासी हुआ।

उत्तेजित लहु का कण कण था,
पर राह चुनी जो अनुचित थी।
जो कदम बढ़े एक बार किसीके,
विध्वंस धार वो समुचित थी।

जब शांत हुई ये ज्वाला थी,
चर चुकी थी चिड़िया खेत रही।
सब धार जो मुट्ठी भिंची थी,
मानवता तो सरकती रेत रही।

परिणामों की तुम शोध करो,
इससे पहले कि क्रोध करो।
तमगुणों का तुम प्रतिरोध करो,
तुम मानव हो इतना बोध करो।

©रजनीश "स्वछंद" क्रोध।।

ये गज मतवाला झूम रहा,
लिए आंख लाल है घूम रहा।
अपनी करनी पे डाल ये पर्दा,
सर अपना बस धुन रहा।

छः दोषों में एक दोष है,

Ajay Amitabh Suman

ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। इस कविता में ये दर्शाया गया है कि कैसे एक व्यक्ति अपनी नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास एक नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। इस कविता को पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करता है, तो कवि अपने प्रयास को सफल मानेगा। आफिस में भुचाल आ गया , लो फिर से चांडाल आ गया। आते हीं आलाप करेगा, अनर्गल प्रलाप करेगा, हृदय रुग्ण विलाप करेगा,

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 ये एक नकारात्मक व्यक्ति के बारे में एक नकारात्मक कविता है। इस कविता में ये दर्शाया गया है कि कैसे एक  व्यक्ति अपनी नकारात्मक प्रवृत्ति के कारण अपने आस पास एक नकारात्मकता का माहौल पैदा कर देते हैं। इस कविता को पढ़ कर यदि एक भी व्यक्ति अपनी नकारात्मकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करता है, तो कवि अपने प्रयास को सफल मानेगा।

आफिस में भुचाल आ गया ,
लो फिर से चांडाल आ गया।

आते हीं आलाप करेगा,
अनर्गल प्रलाप करेगा,
हृदय रुग्ण विलाप करेगा,

Prashant Shankar

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हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती -
स्वयंप्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती -
अमर्त्य वीर पुत्र हो, दृढ़-प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ हैं , बढ़े चलो बढ़े चलो।

असंख्य कीर्ति-रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह-सी।
सपूत मातृभूमि के रुको न शूर साहसी।
अराति सैन्य सिंधु में , सुबाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो जयी बनो , बढ़े चलो बढ़े चलो।

- जयशंकर प्रसाद

Deependra Singh

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इस रंग बिरंगे जीवन में नई राह बनाने बढे चलो।
जो पाने का संकल्प लिया उनको पाने को बढ़े चलो।
ऐसा नही मुश्किल न आये और दिल न तेरा घबराये
पर हर मुश्किल आसान बना कुछ कर जाने को बढ़े चलो
नए रंग सजाने बढ़े चलो कुछ कर दिखलाने बढ़े चलो।
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